tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post1458256457720270985..comments2024-03-18T14:45:15.993+05:30Comments on समालोचन : कथा-गाथा : जाने भी दो पारो : प्रचण्ड प्रवीरarun dev http://www.blogger.com/profile/14830567114242570848noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-75521552775237442582019-09-04T15:52:50.646+05:302019-09-04T15:52:50.646+05:30जिस अंदाज में आज के दिन पूरे देश को सिरे से थर्रा ...जिस अंदाज में आज के दिन पूरे देश को सिरे से थर्रा दिया गया है, बुद्धिजीवियों को चाहिए कि वे प्रचंड प्रवीर की इस कहानी के शिल्प को अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में अपनाएं. यह संयोग ही है कि थोड़ी देर पहले मैं ओम थानवी के द्वारा शेयर किया गया रोमिला थापर का वह व्याख्यान सुन रहा था, जिसमें वो 'इंटेलेक्चुअल्स' के सिर पर छाये मोदी (गोदी) संकट पर पूरे पैंतालिस मिनट गरजी थीं. एंकर ओम थानवी ने बताया कि अतीत में इस संकट की जानकारी अशोक वाजपेयी, कृष्णा सोबती और अपूर्वानंद ने अवार्ड वापसी के माध्यम से दे दी थी. मगर उसके बाद चाहे नोटबंदी हो, जीएसटी हो या धड़ल्ले से विरोधियों को जेल की हवा खिलाने का सिलसिला, सिलसिला तो उसी धड़ल्ले से चलता ही रहा है. किसने 'गोदी' को रोक लिया? आज की खबर के अनुसार उत्तराखंड के पूर्व-सीएम हरीश रावत के स्टिंग को भी घेरे में ले लिया गया है. यानी एक इशारा और. जनाक्रोश को बुझाने के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल की कुर्सी मोदी जी ने सौंप दी है, उनके पास गुणगान के लिए 'गोदी जी' हैं ही. <br />लब्बो-लुआब यह कि बुद्धिजीवियों की आकाशचारी बातों से तो उन्हीं लोगों का भला होता है, क्योंकि खग जाने खग की ही भाषा. हम जैसे छोटे लेखकों की समझ में प्रचंड की भाषा ही आती है. और आम आदमी की समझ में भी यह नया स्टंट :'जाने भी दो पारो!' batrohihttps://www.blogger.com/profile/07370930712240772275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-69389420019421185442019-09-04T09:07:16.154+05:302019-09-04T09:07:16.154+05:30अगर हम यथार्थ को वही और उतना ही नहीं मानते जितना क... अगर हम यथार्थ को वही और उतना ही नहीं मानते जितना कि वह कहानियों में आता रहा है तो यह एक बेहतरीन कहानी है। <br />इसका खिलंदड़ अंदाज़ एक कैमफ़्लाज है जिसमें देवदास और पारो 'जाने भी दो यारो' के तमाम स्टंट अपना कर भी फिर उसी नियति में गिर पड़ते हैं।<br />Naresh Goswaminoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-19417949922342082092019-09-03T19:26:10.669+05:302019-09-03T19:26:10.669+05:30शानदार बस इतना ही कह सकता हूँ।शानदार बस इतना ही कह सकता हूँ।Praneethttps://www.blogger.com/profile/13677194447494261732noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-25453587733042222182019-09-03T11:03:40.937+05:302019-09-03T11:03:40.937+05:30प्रचंड प्रवीर की कहानियां हिंदी की मुख्यधारा के कथ...प्रचंड प्रवीर की कहानियां हिंदी की मुख्यधारा के कथालेखन के लिए चुनौती की तरह हैं । उन्होंने अलहदा रास्ता चुना है । यह कहानी अभी पढ़नी है ।कॄष्ण कल्पितnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1027279009513442421.post-5932996100281620372019-09-03T11:01:17.216+05:302019-09-03T11:01:17.216+05:30जाना नहीं दिल से दूर की कहानियां पढीं हैं । समालोच...जाना नहीं दिल से दूर की कहानियां पढीं हैं । समालोचन पर पहले भी कुछ पढ़ा है। इसमें संदेह नहीं कि प्रचंड प्रवीर बीहड़ और बयाबान में घुसकर प्रयोग करते हैं।प्रज्ञा पांडेयnoreply@blogger.com