माइकल मधुसूदन दत्त (१८२४-१८७३) बांग्ला कविता में मुक्त छंद के
प्रणेता रहे हैं, और इसका असर हिंदी में भी पड़ा. प्रारम्भिक हिंदी
साहित्य बांग्ला साहित्य से बहुत प्रभावित था यहाँ तक कि हिंदी के पितामह भारतेंदु
की प्रेमिकाएं भी बंगाली थीं. माइकल मधुसूदन दत्त का जीवन उथल-पुथल भरा था. वे ईसाई बने और विदेशी मूल की महिला से विवाह किया. अंग्रेजी में लिखने के बाद बांग्ला में मेघनाथ वध जैसी अद्वितीय कृति की रचना की.
उनके पत्रों को आधार बनाकर उनके जीवन पर आधारित यह नाटक लिखा है-
इंग्लिश की सुपरिचित लेखिका द्वय- नमिता गोखले और मालश्री लाल ने जिसे हार्पर
कोलिंस ने सुंदर ढंग से छापा है.
इसकी चर्चा कर रहीं हैं वरिष्ठ लेखिका- रेखा सेठी
माइकल मधुसूदन दत्त (१८२४-१८७३) बांग्ला कविता में मुक्त छंद के
प्रणेता रहे हैं, और इसका असर हिंदी में भी पड़ा. प्रारम्भिक हिंदी
साहित्य बांग्ला साहित्य से बहुत प्रभावित था यहाँ तक कि हिंदी के पितामह भारतेंदु
की प्रेमिकाएं भी बंगाली थीं. माइकल मधुसूदन दत्त का जीवन उथल-पुथल भरा था. वे ईसाई बने और विदेशी मूल की महिला से विवाह किया. अंग्रेजी में लिखने के बाद बांग्ला में मेघनाथ वध जैसी अद्वितीय कृति की रचना की.
उनके पत्रों को आधार बनाकर उनके जीवन पर आधारित यह नाटक लिखा है- इंग्लिश की सुपरिचित लेखिका द्वय- नमिता गोखले और मालश्री लाल ने जिसे हार्पर कोलिंस ने सुंदर ढंग से छापा है.
इसकी चर्चा कर रहीं हैं वरिष्ठ लेखिका- रेखा सेठी
Betrayed By Hope
पत्रों में माइकल मधुसूदन दत्त
साहस और अवसाद का घनीभूत द्वन्द्व
रेखा सेठी
वर्ष 2020 की महामारी और निराशा के
माहौल में किताबों की वैकल्पिक दुनिया अपनी उपस्थिति से पाठकों में जीवित होने का
एहसास जगाती रही. इन पन्नों पर उभरते पात्रों के सुख-दुख हमारे संकुचित संसार को
विस्तृत करते रहे. जनवरी में जिस किताब ने ध्यान आकर्षित किया और जो अब भी ज़ेहन पर
छाई हुई है वह माइकल मधुसूदन दत्त के जीवन और साहित्यिक सफर पर केंद्रित नाटक है.
नमिता गोखले तथा मालश्री लाल द्वारा पाँच अंकों में रचे गए नाटक 'बिट्रेड बाय होप' में माइकल मधुसूदन दत्त के जीवन के कई
रंग एक साथ उभरने लगते हैं.
मुझे अपनी एम.ए की साहित्य के इतिहास की कक्षाएँ याद आने लगीं. प्रो. कृष्णदत्त पालीवाल भारतीय नवजागरण पढ़ाते हुए भारतीय साहित्य में युगान्तकारी परिवर्तनों के लिए माइकल मधुसूदन दत्त के साहित्यिक ऋण को रेखांकित करना कभी नहीं भूलते थे. ‘मेघनाद वध काव्य’ की कंठस्थ पंक्तियों से वे माइकल की प्रतिनायक छवि को साकार कर देते. वह क्या था जिसने माइकल के लिए राम की अपेक्षा मेघनादवध की कथा को अधिक संवेद्य बनाया?
बांग्ला भाषा में, मुक्त छंद में ऐसी अविस्मरणीय रचना
करते हुए दत्त किस विद्रोह की घोषणा कर रहे थे? मधुसूदन दत्त जैसे धर्मनिष्ठ नाम के
साथ 'माइकल' का होना धार्मिक आस्था के किस विखंडन का प्रतीक है? इस किताब को देखते ही स्मृति के द्वार
फिर से खुल गए. इतिहास के पन्नों से ‘साहस और अवसाद’ के घनीभूत द्वन्द्वपूर्ण
क्षणों को पकड़ने की जिज्ञासा से इस पुस्तक के प्रति एक विशेष आकर्षण उत्पन्न हुआ
और इसे पढ़ना एक विलक्षण अनुभव रहा.
नमिता गोखले तथा मालश्री लाल ने इससे
पहले भी अनेक पुस्तकें साथ-साथ संपादित की हैं. सीता और राधा पर केंद्रित पुस्तकों
में साहित्य और संस्कृति का अनूठा मेल बनता है. ये पुस्तकें सीता और राधा के
माध्यम से भारतीय स्त्रीत्व को समझने का अवसर बनती हैं. उनकी हर किताब एक यात्रा
जैसा साझा प्रयास है. यात्रा करता यात्री उन रास्तों का हिस्सा भी होता है और
द्रष्टा भी. संलिप्तता और निर्लिप्तता का जो भाष्य बनता है वह पाठक के लिए उस
परिप्रेक्ष्य का संकेतक है जो संभवतः पहले नहीं देखा गया. इस तरह की पुस्तकों का
महत्व उनके चयन और संकलन की दृष्टि के कारण विशिष्ट हो जाता है. इस नाटक में भी वह
दृष्टि बरकरार है. नाटक का आधार न कथा है, न ही पारंपरिक अर्थ में पात्र एवं चरित्र. लेखक ने माइकल मधुसूदन
दत्त के पत्रों को उनके जीवन के घटनाक्रम की प्रस्तुति का आधार बनाया है.
बांग्ला भाषा के प्रतिष्ठित कवि और नाटककार दत्त का जीवन साधारण नहीं रहा. उनका जीवन स्वयं में एक नाटक है. उनके जीवन में तरह-तरह के हादसे होते हैं और उनसे बाहर निकलने के उनके अपने तरीके हैं. ये तरीके भावुकतापूर्ण, आवेश भरे कहे जा सकते हैं लेकिन उनके मूल में एक साहसी व्यक्ति का विरोध है और कवि का संवेदनशील हृदय जो दुनिया बदल देना चाहता है. वह हर बार केवल अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की ज़िद्द ठाने हुए दिखता है.
जमींदार पिता जब कम उम्र के बेटे का
ब्याह कर देना चाहते हैं तो उससे बचने के लिए वह ईसाई धर्म अपना लेता है. उस समय
अपनी इच्छा से और अपने समय से विवाह करने की आज़ादी उसे केवल ईसाई धर्म में ही संभव
दिखती है. उसकी नज़र में यह धर्म की जकड़न से जीवन को मुक्त करने का अभियान है.
दूसरी तरफ वह अंग्रेजों की अँग्रेज़ियत से प्रभावित है. मिल्टन, शैली और बायरन को पढ़ते हुए वह स्वयं
को उस पंक्ति में देखता है. यह असलियत भी उस पर जल्दी खुल जाती है कि औपनिवेशिक
शासन में हिंदुस्तानी सदा गुलाम ही रहेंगे. बाद में, अपनी अस्मिता की तलाश उसे अपनी भाषा (बांग्ला) से जोड़ती है. वह भाषा
जिसमें उन्होंने सृजनात्मक युगांतर उपस्थित किया.
माइकल मधुसूदन दत्त का यह जीवन
आशा-निराशा का धूप-छाँही खेल है. वह बार-बार हारता है और फिर उठ खड़ा होता है, दुगने साहस और सुखद भविष्य की आशा के
साथ. अपने लौकिक समय में भयंकर गरीबी, बेरोज़गारी, व
भटकन झेलते हुए भी वह साहित्य की दुनिया में कुछ नया और ऐतिहासिक रचने के स्वप्न
को छोड़ नहीं पाया. हर बार वह उम्मीद के सहारे उठा और हर बार छला गया लेकिन माइकल
का आत्मविश्वास कभी कम नहीं हुआ. उनकी विलक्षण प्रतिभा बहुत बाद में पहचानी और
सराही गई. 'बिट्रेड बाय होप' माइकल मधुसूदन दत्त के उसी उथल-पुथल
भरे जीवन का ब्यौरा है जो अपने मित्रों, साथियों, शुभचिंतकों
को लिखे पत्रों से उभरता है.
इस पुस्तक की रचना का भी अपना इतिहास
है. पुस्तक की भूमिका तथा प्राकथन में दोनों लेखिकाओं ने साझा किया कि दत्त का
जीवन व लेखन लंबे समय से उनकी चेतना में बसा रहा है. 2004 में नमिता गोखले ने
बांग्लादेशी विद्वान गुलाम मुर्शीद की दो पुस्तकों की समीक्षा की थी. उनमें से एक
माइकल मधुसूदन दत्त की जीवनी थी और दूसरी उनके पत्रों का संग्रह. नमिता का कहना है
कि उन पुस्तकों को पढ़ते हुए पाँच दृश्यों के नाटक का स्वरूप मेरे मन में तैयार हो
गया था. मालश्री लाल ने भी विलियम रैडीची द्वारा ‘मेघनाद वध काव्य’ के अंग्रेज़ी
अनुवाद की समीक्षा की और उस के माध्यम से इस विद्रोही कवि की अंतरात्मा में झाँकने
का अवसर उन्हें मिला.
दस से पंद्रह साल तक माइकल मधुसूदन
दत्त का व्यक्तित्व उनके मन में जगह घेरे रहा निश्चय ही इस कवि में ऐसी अनेक
विलक्षणताएँ थीं जिनके प्रभाव की गिरफ्त से मुक्ति इस पुस्तक की रचना के बाद ही
संभव हुई होगी.
माइकल मधुसूदन दत्त का जीवन उतना ही
नाटकीय रहा जितना कि उनके काव्य और नाटक रहे हैं. उनका जन्म 1824 में अविभाजित
बंगाल के संभ्रांत कायस्थ परिवार में हुआ. इस नाते वे अपार संपत्ति के अकेले
उत्तराधिकारी होते लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था. उन्होंने कोलकाता के हिंदू
कॉलेज तथा बिशप कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की. वे लैटिन, ग्रीक तथा अंग्रेज़ी भाषा के अच्छे
ज्ञाता थे. इनके अतिरिक्त जर्मन और फ्रेंच भी जानते थे. भारतीय भाषाओं में बांग्ला
उनकी मातृ भाषा थी और संस्कृत, फारसी, तमिल, तेलुगु– वे इन सभी भाषाओं को जानते थे.
वे हृदय से भावनात्मक, ऊर्जस्वी
तथा रोमानी प्रवृत्ति के थे. अंग्रेज़ी के रोमांटिक कवियों से विशेष रूप से
प्रभावित हुए. अंग्रेज़ी और अंग्रेज़ियत दोनों के प्रति आकर्षण कुछ समय तक उनके मन
पर बना रहा. अपने प्रारंभिक साहित्यिक जीवन में उन्होंने अंग्रेज़ी में रोमांटिक
कविता लिखने की कोशिश की और निजी जीवन में भी लीक से हटकर निर्णय लिए. जैसे 1843
में ईसाई धर्म अपनाकर वे माइकल मधुसूदन दत्त बन गए.
समय से उस दौर में यह निजी चुनाव
व्यक्तिगत फैसला या निजी चुनाव भर नहीं था. यह उनकी विद्रोही प्रवृत्ति का बहुत
बड़ा प्रमाण था और इसी वजह से उन्हें हिंदू कॉलेज भी छोड़ना पड़ा. बाद में
उन्होंने अपने इच्छा से जिन महिलाओं से प्रेम किया या विवाह किया व विदेशी मूल की
थीं. 1847 में दत्त नौकरी की तलाश में मद्रास चले आये थे. यहीं उन्हें
एंग्लो-इंडियन रबैका-थॉमसन से प्यार हुआ और शादी हुई. उनके चार बच्चे भी हुए लेकिन
फिर ज़िंदगी की जद्दोजहद में प्रेम डूब गया और न जाने कब दोनों के रास्ते अलग हो गए.
1858 में अमेलिया हेनरिएटा का उनके जीवन में प्रवेश हुआ. दोनों के बीच विवाह हुआ
या नहीं या कोई नहीं जानता. दोनों आजीवन साथ रहे.
(namita gokhale) |
इस पुस्तक के प्रकाशन तथा भूमिका में क्रमशः मालश्री लाल तथा नमिता गोखले ने माइकल मधुसूदन दत्त के जीवन और साहित्य के महत्व को प्रतिस्थापित किया है. उनकी साहित्यिक यात्रा का उत्कर्ष जीवन के बीहड़ में उठते ज्वारभाटों से बना है. एक संपन्न परिवार के राजकुमार सरीखे पुत्र को अपने विद्रोही स्वभाव का बड़ा मूल्य चुकाना पड़ा. किसी भी स्थिर आय के बिना जीवन भर विपन्नता का संघर्ष भी बना रहा. दत्त का जीवन भटकन, अस्थिरता, उलझन और संघर्षों के बीच अपनी प्रतिभा में विश्वास से दीप्त अहं का महाख्यान है. उद्दाम नदी के वेग की तरह वह सब कूल-किनारे तोड़ डालना चाहता है. अपनी सीमाओं को संभावनाओं में बदलने के लिए प्रतिबद्ध दिखता है. कलकत्ता से मद्रास, मद्रास से फिर कलकत्ता.
बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड और
बाद के वर्षों में एक अच्छे जीवन की आकांक्षा में फ्रांस- दत्त का अनुभव क्षेत्र
बड़ा था. उस समय देश और दुनिया में कई तरह की हलचलें हो रहीं थीं. भारत में यह
नवजागरण का समय था और ईश्वरचंद्र विद्यासागर उनके गहरे मित्र थे जिन्होंने कई बार
उनकी मदद भी की. माइकल ने इन सभी परिवर्तनों को अपनी रूह से महसूस किया. उनका
जुनून सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों से दूर साहित्य की दुनिया में ही स्थिर रहा.
अपने रचना कर्म का प्रारंभ उन्होंने
अंग्रेज़ी भाषा में किया. 1849 में ‘द कैप्टिव लेडी’ शीर्षक से लंबी कविता लिखी.
उनकी अंग्रेज़ी रचनाओं पर रोमांटिक कवियों का प्रभाव था. भाषा और अभिव्यक्ति के
श्रेष्ठ प्रयोग के लिए सराही जाने के बावजूद इस रचना का वैसा प्रभाव नहीं हुआ.
1856 में कलकत्ता में अंग्रेज़ दर्शकों की सुविधा के लिए उन्हें रामनारायण तारकरत्न
के नाटक ‘रत्नावली’ का अंग्रेज़ी अनुवाद करने के लिए बुलाया गया. यह उनके साहित्यिक
जीवन की दिशा में परिवर्तन का प्रेरणा बिंदु बना. इसके बाद उन्होंने बांग्ला में
लिखने का निश्चय किया और बहुत कम समय में पाँच नाटक शर्मिष्ठा, पद्मावती आदि तथा काव्य में
तिलोत्तमासंभव, वीरांगना, ब्रजांगना आदि की रचना की. इन सभी
रचनाओं के स्रोत संस्कृत साहित्य में थे.
दत्त की कीर्ति का दृढ़ आधार 1861 में
प्रकाशित इनका काव्य ‘मेघनादवध’ रहा. सही-गलत, धर्म-अधर्म की परिभाषाओं से मुक्त इस काव्य में लक्ष्मण के प्रति
मेघनाद के उद्गार उसके सच को प्रतिष्ठित करते है. उसे नये नायक के रूप में
प्रस्तुत करते हैं. इतिहास सदा विजेता की दृष्टि से लिखा जाता है लेकिन कवि उन्हीं
घटनाओं को विक्षत मानवता की दृष्टि से देखता है. भावना की सच्चाई व संवेदनात्मक
गहराई से निसृत काव्य जातीय स्मृति में सदा के लिए अंकित हो जाता है. राजा राम के
धार्मिक वैभव के लोक में, उनके भाई लक्ष्मण द्वारा छले जाने की पीड़ा मेघनाद के चरित्र को नया
आलोक प्रदान करती है.
माइकल मधुसूदन दत्त उसी तरह स्वयं को
सब ओर से छले गए,
हारे
हुए योद्धा के रूप में देखते हैं. उनकी सहानुभूति का पात्र नायक नहीं, प्रतिनायक है. ‘बिट्रेड बॉय होप’ इसी
छले गए कवि के जीवन की प्रतिलिपि है. यूँ तो दत्त का जीवन स्वयं में काफी
मेलोड्रामा लिए हुए है. लेकिन यहाँ नाटककारों ने ड्रामा को उभारते हुए मेलोड्रामा
से बचने की कोशिश की है.
(malashri lal) |
जैसा पहले कहा इस नाटक का आधार दत्त के
लिखे हुए पत्र हैं. पत्रों में घटनाओं का लेखा-जोखा होता है और उन परिस्थितियों से
गुज़रते व्यक्ति की मन: स्थिति भी. वह अपने आप में उस व्यक्ति के जीवन का साक्ष्य
हैं. दत्त के पत्र उनके जीवन को समझने का मुख्य आधार हैं, उन्हीं पर केन्द्रित यह नाटक हमारे
सामने इतने बड़े साहित्यकार को समझने की कुंजी बन जाता है. अधिकांश पत्र गौरदास
बशक को लिखे गए हैं जो हिंदू कॉलेज के ज़माने से दत्त के सहपाठी और मित्र रहे. बेशक
कवि या साहित्यकार तो नहीं थे. वे अंग्रेज़ राज में नौकरशाह थे जिनकी बंगाल की सांस्कृतिक विरासत में प्रमुख भूमिका
रही. पूरे नाटक का रचना विधान इन पत्रों के पाठ से बनता है.
इस नाटक के रचना विधान को कुछ अलग ढंग
से देखना होगा. यूँ तो यहाँ मंच पर घटने वाला घटना विधान न्यूनतम है. पत्रों के
पाठ और उन पर टिप्पणी के लिए सूत्रधार की संकल्पना की गई है. पाठ के आधिक्य के
कारण वाचन पर अधिक बल है. इस नाटक के पाठ की अनेक सफल प्रस्तुतियाँ हुई भी हैं
लेकिन इसकी नाट्यत्मकता मात्र इतनी नहीं है. आजकल तकनीकी ने नाटक के रंग विधान को
जिस तरह बदला है उसकी अपार संभावनाएँ इस नाटक में हैं.
नाटक के खुलते ही उस समय के कलकत्ता का
विजुयल पृष्ठभूमि बनता है और स्वर की सत्ता आती है दत्त की अपनी मातृभूमि को पुकारती
तथा कपोतक्षा नदी का आवाहन करती कविता के साथ. यह दृश्य और स्वर, उस समय को दर्शक के मानस पटल पर अंकित
कर देते हैं. पूरे नाटक में मुख्य पात्र दो ही हैं. स्वयं माइकल मधुसूदन दत्त तथा
सूत्रधार. बांग्लादेश ढाका में रहने वाली शोध छात्रा रुबीना रहमान की परिकल्पना
सूत्रधार के रूप में की गई है जो अपनी टिप्पणियों, विचारों तथा जिज्ञासाओं को जोड़कर इन पत्रों के माध्यम से दत्त के
जीवन को नाटक के कथाविन्यास में ढालती है. दत्त के मित्र गौरदास यानी गौर तथा
पत्नी रबैका की छायाएँ कभी-कभी मंच पर दिखती हैं और एक दृश्य में साहित्य समीक्षक
तथा बेथुन, दत्त की अंग्रेज़ी रचनाओं पर टिप्पणी
करते दिखते हैं.
नाटक का रचना विधान सही मायनों में
सीधा और सरल है. यह सरलता अभिनेताओं और निर्देशक के लिए चुनौती है. साधारण में
असाधारण को प्रस्तुत करने की चुनौती. सूत्रधार के रूप में स्त्री स्वर की
विलक्षणता के साथ और भी कई नई संभावनाएँ अनावृत हो रही हैं. माइकल की कहानी
अविभाजित बंगाल के समय में स्थित है. अपनी अस्मिता व अपने जुड़ाव की उलझन दूसरी
संस्कृति के संपर्क और टकराहट से उत्पन्न होती है लेकिन रुबीना रहमान के लिए इस
संबंध और ‘अन्यता’ के अलग मायने हैं. भाषा की परंपरा में वे स्वयं को उसी श्रृंखला
में पाती है लेकिन मातृभूमि और राष्ट्रीयता का सवाल उलझा हुआ है. जो उसके इतने
करीब है वह ‘अन्य’ कैसे हो सकता है और जो अन्य या दूसरे के रूप में संबोधित है वह
इतना अपना कैसे?
पूरा
नाटक एक अत्यंत भावुक साहित्यकार और व्यक्ति को बौद्धिक समीक्षाओं से समझने का है.
उसके ‘जीवन से भी बड़े प्रभाव’ को सम्यक मूल्यांकन की दृष्टि से पाने और समझने का
प्रयास है. दत्त स्वयं भी अपने जीवन की समीक्षा करते रहे. अपनी कविता ‘आत्म-विलाप’
में वे अपना तर्पण करते हैं, जिसका मूल भाव है –
मैं बहुत बार सोचता हूँ,
आह, मैंने
क्या पाया
छला गया उम्मीद से?
जीवन-नदिया बहती जाए
मृत्यु-महासमुद्र की ओर
मैं इसे कैसे लौटाऊँ?
हर दिन वृद्ध-निर्बल होती काया
उम्मीद फिर भी बनी हुई है! कैसी पीड़ा है-
मधुसूदन दत्त ने उम्मीद के इस छल को
अपनी दुर्बलताओं व अपनी महानता में एक साथ जिया. वे नायक भी थे और प्रतिनायक भी.
उनको लेकर सरल रेखीय, एक
पक्षीय निर्णायक नहीं हुआ जा सकता. यह नाटक उस जीवन के महाख्यान को उसी अंत की ओर
संकेतित करता है. पुस्तक के अंत में पोस्ट स्क्रिप्ट की तरह विद्वान साहित्य
समीक्षक जवाहर सरकार का एक लेख भी है. इस सब को मिलाकर, यह नाट्य रूप दोनों लेखिकाओं की ओर से
आधुनिक भारतीय साहित्य के निर्माता, युग पुरुष माइकल मधुसूदन दत्त के जीवन व लेखन के सम्मान में
शुभकामनाओं भरा नमन है. उससे भी अधिक (दत्त की जीवन शैली के अनुरूप) नमिता और मालश्री
द्वारा दत्त के नाम उठाया गया जाम- रेज़िंग
ए टोस्ट तू द मैन - एम एम डी (नाटक में माइकल मधुसूदन दत्त का संक्षिप्त नाम).
____
reksethi@gmail.com
9810985759
Painting courtesy (Michael Madhusudan Datta, by the Bengali portrait painter Atul Bose (1898-1977), exhibited in the Victoria Memorial, Kolkata, India)
Betrayed by Hope: A play on the life of Michael Madhusudan Dutt
Namita Gokhale and Malashri Lal
HarperCollins Publishers, India.
ed-२०२०, ₹३९९
समीक्षा पढ़ने के बाद नाटक पढ़ने की तीव्र इच्छा हो रही है। दत्त जी का जबर्दस्त प्रभाव हिन्दी साहित्य पर रहा है। 'सरस्वती' के किसी अंक में मैंने एक लम्बा आलेख दत्त जी पर देखा था। 'सरस्वती' के अतिरिक्त अन्य पत्रों में भी दत्त जी पर खूब लिखा-पढ़ा गया है। हम हिन्दी वालों के लिए इस नाटक का अनुवाद होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंएक भूल है - नाम में माइकेल मद्रास
जवाब देंहटाएंमें जोड़ा - शायद ऐंग्लो इंडियन से विवाह के पूर्व। क्रिश्चियन होने के बाद भी कलकत्ता में माइकेल नाम नहीं जुड़ा था।
माइकल मधुसूदन दत्त के जीवन पर आधारित नाटक की बहुत प्रभावशाली भूमिका
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 01-04-2021 को चर्चा – 4,023 में दिया गया है।
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
सुनील गंगोपाध्याय के प्रथम आलो में जिस तरह माइकेल मधुसूदन दत्त को चित्रित किया गया है वह भूलता नहीं है। निश्चित ही माइकेल मधुसूदन का जीवन बहुत प्रश्न जगाने वाला और अपने आप में रोचक रहा है। नाटक अवश्य ही पठनीय होगा।
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