मार्खेज़ : सोई हुई सुंदरी और हवाई जहाज़ : सुशांत सुप्रिय



Sleeping Beauty and the Airplane’ गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज़ (6 March 1927: 17 April 2014) के 1992 में प्रकाशित कहानी संग्रह ‘Strange Pilgrims’ में संकलित है. प्रस्तुत हिंदी अनुवाद Edith Grossman के अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित है.

मार्खेज़ की कहानियां अपने पहले वाक्य से ही आपको अपने सम्मोहन में बाँध लेती हैं, मार्खेज़ का ख़ुद का भी यह मानना रहा है कि पहला वाक्य कथा की नियति निर्धारित कर देता है. इस कहानी का नैरेटर युवा स्त्री के सौन्दर्य के सम्मोहन में है. फिर ..

इसका अनुवाद कवि-कथाकार सुशांत सुप्रिय ने किया है. उनकी कहानियों के अनुवाद की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं. 
 



गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज़
सोई हुई सुंदरी और हवाई जहाज़                  
अनुवाद : सुशांत सुप्रिय





ह सुंदर और फुर्तीली थी. पाव-रोटी के रंग की उसकी त्वचा बेहद मुलायम थी. उसकी आँखें हरे बादामों की तरह थीं और कंधों तक आ पहुँचे उसके बाल काले और सीधे थे. उसके इर्द-गिर्द एक प्रभा-मंडल था, किंतु वह इंडोनेशिया से लेकर एंडीज़ पर्वतमाला वाले देशों तक कहीं की भी लगती थी. उसने सुरुचिपूर्ण ढंग के कपड़े पहने हुए थे. उसने वन-बिलाव के खाल की जैकेट पहनी हुई थी. बढ़िया रेशम का ब्लाउज़ पहना हुआ था, जिस पर नाज़ुक फूलों की कढ़ाई बनी हुई थी. साथ ही उसने प्राकृतिक सन के कपड़े की पतलून पहन रखी थी. और धारी वाले उसके जूते बोगेनवीलिया के रंग के थे. मैंने आज तक इतनी संदर युवती नहीं देखी थी. जब मैं हवाई जहाज़ का ‘बोर्डिंग-पास’ लेने के लिए क़तार में लगा हुआ था, मैंने उसे किसी शेरनी की तरह चुपके से गुज़रते हुए देखा. मैं पेरिस के चार्ल्स दे गौले हवाई अड्डे से न्यू यॉर्क के लिए उड़ान भरने वाले हवाई जहाज़ में बैठने जा रहा था. वह कोई अलौकिक, दिव्य सुंदरी थी जो पल भर के लिए अस्तित्व में आई और अपनी झलक दिखला कर हवाई अड्डे की भीड़ में खो गई.

इस समय सुबह के नौ बज रहे थे. सारी रात बर्फ़बारी होती रही थी और शहर की सड़कों पर भीड़ आम दिनों की अपेक्षा अधिक थी. राज-मार्ग पर वाहन धीमी गति से चल रहे थे. सड़क के किनारे माल ढोने वाले लम्बे ट्रक खड़े थे. कारें बर्फ़ में ही रेंग रही थीं. लेकिन हवाई अड्डे के भीतर अब भी वसंत ऋतु जैसा सुहाना मौसम था.

मैं हॉलैंड की एक वृद्ध महिला के पीछे क़तार में खड़ा था. उस महिला ने अपने ग्यारह सूटकेस के वजन को लेकर काउंटर पर बैठी क्लर्क से एक घंटे तक बहस की. मैं ऊबने लगा था जब मैंने पल भर के लिए उस अलौकिक सुंदरी को देखा जिसे देखकर मेरी साँसें थम-सी गईं. इसलिए मुझे यह पता नहीं चला कि उस वृद्ध महिला और क्लर्क के बीच का विवाद कैसे ख़त्म हुआ. फिर टिकट देने वाली क्लर्क मुझे आसमान से वापस ज़मीन पर ले आई जब उसने मेरा ध्यान कहीं और होने पर मुझे झिड़का. बहाना बनाते हुए मैंने उससे पूछा कि क्या वह ‘पहली नज़र में प्यार’ पर यक़ीन करती है. “बिल्कुल,” वह बोली, “और किसी तरह से प्यार होना असंभव है.”

उसकी निगाहें कम्प्यूटर-स्क्रीन पर जमी रहीं और उसने मुझसे पूछा कि मुझे धूम्रपान करने वाली या न करने वाली, किस तरह की सीट चाहिए.

“कोई भी सीट चलेगी,” मैंने जानबूझकर दुर्भावना से भर कर कहा , “बस मुझे ग्यारह सूटकेस वाली उस महिला के बग़ल वाली सीट नहीं दीजिएगा.”

उसने एक सस्ती मुस्कान देते हुए मुझे सराहा किंतु अपनी निगाहें उस चमकती स्क्रीन पर टिकाए रखीं.

“एक अंक चुनिए. तीन, चार या सात.”
“चार.”
उसने एक विजयी मुस्कान दी.
“मैं पंद्रह वर्षों से यहाँ काम कर रही हूँ. आप पहले शख़्स हैं जिसने अंक सात नहीं चुना.”

उसने मेरे बोर्डिंग पास पर मेरा सीट नंबर लिख दिया और मेरे बाक़ी दस्तावेज़ों के साथ उसे मुझे लौटा दिया. मुझे मेरे काग़ज़ पकड़ाते हुए उसने अपनी अंगूरी रंग की आँखों से पहली बार मुझे देखा. यह तब तक के लिए सान्त्वना जैसा था जब तक मैंने दोबारा उस सुंदरी को नहीं देखा. चलते समय उस क्लर्क ने मुझे बताया कि हवाई अड्डा बंद कर दिया गया था और सभी उड़ानें देरी से उड़ने वाली थीं.

“कितनी देरी से ?

“केवल ऊपर वाला जानता है, “उसने मुसकुराते हुए कहा.” आज सुबह रेडियो ने बताया कि यह साल का सबसे बड़ा बर्फ़ीला तूफ़ान है.”

(Silvana de Faria, met Marquez at a French airport in 1990, an incident that she believes provided the inspiration for his 1992 story Sleeping Beauty and the Airplane)

वह ग़लत थी. दरअसल वह पिछले सौ बरसों का सबसे भयावह बर्फ़ीला तूफ़ान था. लेकिन पहले दर्ज़े के प्रतीक्षा-कक्ष में वसंत इतना वास्तविक था कि गुलदानों में ताज़ा गुलाब खिले हुए थे. यहाँ तक कि रेकॉर्डेड संगीत भी उतना ही उत्कृष्ट और शांति प्रदान करने वाला लग रहा था जितना उस संगीत के रचयिताओं ने सोचा होगा. और तभी अचानक मुझे ख़्याल आया कि यह जगह उस सुंदरी के लिए उपयुक्त आश्रय-स्थल थी. मैंने उस प्रतीक्षा-स्थल के अन्य क्षेत्रों में उस सुंदरी को ढूँढ़ा और मैं अपनी निर्भीकता पर चकरा गया. लेकिन वहाँ प्रतीक्षा कर रहे अधिकांश लोग वास्तविक जीवन में मिलने वाले पुरुष थे जो अपना समय अंग्रेज़ी अख़बार पढ़ने में बिताते थे जबकि उनकी बीवियाँ किसी अन्य पुरुष के बारे में सोच रही होती थीं. वे काँच की विशालदर्शी खिड़कियों में से बर्फ़ में जमे पड़े हवाई जहाज़ों को देख रही होती थीं. या वे बर्फ़ से घिरे कारख़ानों या रोइये के विशाल मैदानों को तबाह कर देने वाले खूँखार शेरों के बारे में सोच रही होती थीं. दोपहर होते-होते वहाँ बैठने की कोई जगह नहीं बची और वहाँ उमस और गर्मी इतनी असहनीय हो गई कि मैं ताज़ा हवा में साँस लेने के लिए छटपटा कर वहाँ से भाग खड़ा हुआ.

बाहर मैंने अभिभूत कर देने वाला एक दृश्य देखा. हर तरह के लोगों की वजह से प्रतीक्षा-कक्षों में भीड़ हो गई थी. लोग दमघोंटू गलियारों में और यहाँ तक कि सीढ़ियों पर भी बैठे हुए थे. बहुत से लोग अपने पालतू जानवरों के साथ ज़मीन पर ही बैठे हुए थे. उनके बच्चे वहीं थे और उनकी यात्रा का सामान भी वहीं पड़ा था. शहर से सम्पर्क भी बाधित हो चुका था, और पारदर्शी प्लास्टिक का यह महल तूफ़ान में फँसी अंतरिक्ष की किसी विशालकाय संपुटिका जैसा लग रहा था. मैं अपने मन में इस विचार को आने से नहीं रोक सका कि वह परम सुंदरी भी इस पालतू भीड़ में कहीं फँसी हुई होगी. इस स्वप्न-चित्र ने मुझे प्रतीक्षा करने के लिए नया संबल प्रदान किया.


दोपहर के भोजन-काल तक हम सब समझ गए थे कि यह प्रतीक्षा लम्बी होने वाली थी. सात रेस्त्रां, कैफ़ेटेरिया और शराबखानों के आगे लम्बी क़तारें थीं और तीन घंटों के भीतर ही सभी दुकानें बंद कर देनी पड़ीं क्योंकि उन में मौजूद खाने-पीने की हर चीज़ ख़त्म हो चुकी थी. वहाँ मौजूद बच्चों को देखकर ऐसा लगता था जैसे पूरी दुनिया के बच्चे वहीं आ गए हों. वे एक साथ रोने लगे और लोगों के झुंड से पसीने की तेज़ गंध आने लगी. यह सहज-बोध का समय था. इस समूची दौड़-भाग में जो एकमात्र चीज़ मुझे खाने के लिए मिली, वह थी वनीला आइस-क्रीम के दो अंतिम कप. ये मुझे बच्चों की एक दुकान में मिले. बैरे मेज़ों पर कुर्सियाँ रख रहे थे क्योंकि ग्राहक जा चुके थे. मैं धीरे-धीरे अपनी आइस-क्रीम ख़त्म कर रहा था. सामने एक आईना था जिसमें अपनी छवि देखते हुए मैं उस सुंदरी के बारे में सोच रहा था.

न्यू यॉर्क की जिस उड़ान को सुबह ग्यारह बजे उड़ना था, वह रात के आठ बजे उड़ पाई. जब तक मैं हवाई जहाज़ में चढ़ पाया, पहले दर्ज़े के अधिकांश यात्री अपनी सीटों पर बैठ चुके थे. एक परिचारिका मुझे मेरी सीट तक ले गई. तभी जैसे मेरे दिल ने धड़कना बंद कर दिया. मेरी बग़ल में खिड़की के साथ वाली सीट पर वही परम सुंदरी अपना स्थान ग्रहण कर रही थी. वह एक निपुण यात्री लग रही थी. यदि मैंने कभी यह बात लिखी तो कोई भी मेरी इस बात पर यक़ीन नहीं करेगा— मैंने सोचा. मैंने किसी तरह हकलाते हुए अनिश्चितता भरे स्वर में उसका स्वागत किया किंतु उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया.


वह इतने आराम से वहाँ बैठी थी जैसे वह अगले कई बरसों तक वहीं रहने वाली थी. उसने अपनी हर चीज़ को क़रीने से सही जगह पर रखा और अपनी सीट को आदर्श घर जैसा बना लिया जहाँ हर चीज़ उसकी पहुँच के भीतर थी. इस बीच एक परिचारक ने हमारा स्वागत शैम्पेन से किया. मैंने सुंदरी को शैम्पेन देने के लिए एक गिलास उठाया किंतु समय रहते ही मुझे ऐसा न करने का अहसास हो गया. उसे केवल एक गिलास पानी चाहिए था. उसने परिचारक से पहले न समझ में आने वाली फ़्रांसीसी भाषा में, और फिर उससे कुछ प्रवाही अंग्रेज़ी में कहा कि उड़ान के दौरान उसे किसी भी कारण-वश सोते हुए से न जगाया जाए. उसकी ऊष्म, गंभीर आवाज़ में पूर्व-देश के वासियों जैसी उदासी घुली हुई थी.

MÁRQUEZ AND HIS WIFE-MERCEDES BARCHA
(MÁRQUEZ AND HIS WIFE-MERCEDES BARCHA)
जब परिचारक पानी लेकर आया तो सुंदरी ने प्रसाधन के सामान से भरा एक छोटा डिब्बा अपनी गोदी में रख कर खोल लिया. उस डिब्बे के कोने ताँबे के थे और वह दादी-माँ के छोटे-से बक्से जैसा लगता था. उस डिब्बे में रंग-बिरंगी गोलियाँ मौजूद थीं और सुंदरी ने उस डिब्बे में से दो सुनहरी गोलियाँ निकालीं. वह अपना हर काम सुव्यवस्थित और विधिवत ढंग से करती थी. ऐसा लगता था कि जन्म से लेकर अब तक उसके साथ कोई अनहोनी घटना नहीं घटी थी. अंत में सुंदरी ने खिड़की को ढँक दिया और अपनी सीट को पीछे की ओर धकेल कर थोड़ा नीचे कर लिया. फिर उसने खुद को कमर तक कम्बल से ढँक लिया और बिना अपने जूते उतारे हुए उसने मेरी ओर पीठ कर ली. फिर वह बिना किसी रुकावट के, बिना लम्बी साँस भरे, और बिना अपनी जगह में कोई बदलाव किए सो गई. न्यू यॉर्क तक पहुँचने में आठ लम्बे घंटों और बारह मिनटों का समय लगा और वह सुंदरी सारा समय सोती रही.

वह एक लम्बी यात्रा थी. मैं हमेशा से यह मानता आया हूँ कि एक सुंदर युवती से अधिक सुंदर प्रकृति की और कोई रचना नहीं हो सकती. मेरे लिए एक पल के लिए भी बग़ल में सोई सुंदरी के सम्मोहन से बच पाना असम्भव था. वह किसी पुस्तक की जादुई पात्र-सी थी. जैसे ही हवाई जहाज़ ने उड़ान भरी, पुराना परिचारक ग़ायब हो गया. उसकी जगह एक नया परिचारक आ गया और वह सुंदरी को उठाना चाहता था ताकि वह उसे साज-सिंगार का सामान और संगीत सुनने के लिए इयर-फ़ोन दे सके. मैंने सुंदरी के निर्देश को दोहराया जो उसने पिछले परिचारक को दिया था किंतु यह परिचारक स्वयं सुंदरी के मुँह से सुनना चाहता था कि उसे रात का भोजन भी नहीं चाहिए था. परिचारक सुंदरी के निर्देशों के बारे में निश्चित होना चाहता था. उसने मुझे झिड़क दिया क्योंकि सुंदरी ने ‘व्यवधान न डालें’ वाली सूचना-पट्टिका अपने गले में नहीं लटकाई हुई थी.

मैंने अकेले ही रात का भोजन किया. यदि सुंदरी जगी होती तो मैं उसे क्या कहता, यह सोचते हुए मैं खाना खाता रहा. उसकी नींद इतनी पक्की थी कि एक बार तो मुझे यह परेशान कर देने वाला ख़्याल आया कि शायद उसने नींद की गोलियाँ नहीं ली थीं बल्कि आत्म-हत्या करने के इरादे से गोलियाँ ले ली थीं. मैंने अपना हर जाम उस सुंदरी के नाम पिया. “हे परम सुंदरी, तुम्हारी सेहत के नाम !”

रात का भोजन ख़त्म होने के बाद हवाई जहाज़ के भीतर रोशनी कम कर दी गई और स्क्रीन पर एक फ़िल्म चला दी गई जिसे कोई नहीं देख रहा था. हम दोनों विश्व के अँधेरे में एक-दूसरे की बग़ल में अकेले थे. शताब्दी का सबसे भयावह बर्फ़ीला तूफ़ान ख़त्म हो चुका था. अटलांटिक महासागर के ऊपर उड़ रहा हवाई जहाज़ विशाल और पारदर्शी लग रहा था. जैसे सितारों के बीच वह हवाई जहाज़ गतिहीन-सा टँगा हुआ हो. फिर मैंने सुंदरी को इंच-दर-इंच कई घंटों तक निहारा. जीवन के एकमात्र चिह्न जो मैं उसमें ढूँढ़ पाया वे उसके माथे पर से गुज़रने वाली सपनों की परछाइयाँ थीं, जो समुद्र के ऊपर से गुज़रने वाले बादलों जैसी थीं. अपने गले में उसने इतनी पतली चेन पहन रखी थी जो उसके गले की सुनहरी त्वचा के सम्पर्क में आ कर अदृश्य लग रही थी. उसके सुंदर कान अन-छिदे थे. उसके नाखून स्वस्थ और गुलाबी रंग के थे. अपने बाएँ हाथ में उसने सादा फीता पहन रखा था. चूंकि वह बीस वर्ष से अधिक की नहीं लग रही थी, मैंने खुद को इस विचार से सांत्वना दी कि वह शादी की अँगूठी नहीं थी बल्कि किसी अल्पकालिक सम्बन्ध की निशानी थी. “यह जानना कि तुम सो रही हो, निश्चित, सुरक्षित, हे त्याग की वाहिका, हे पवित्र देवी, हथकड़ी जैसी मेरी बाँहों के इतने क़रीब.”

झाग भरे शैम्पेन को याद करते हुए मैंने यह सोचा और मुझे जेरार्डो डिएगो का गीत याद आ गया. तब मैंने अपनी सीट को नीचे की ओर झुका कर पीछे धकेला और मेरी सीट सुंदरी की सीट के बराबर स्तर पर आ गई. फिर हम दोनों एक-दूसरे के इतने पास इकट्ठे सोते रहे जितने पास पति-पत्नी भी अपने बिस्तर पर नहीं सोते.

सुंदरी की साँसें भी उतनी ही मीठी थीं जितनी उसकी आवाज़ थी और उसकी त्वचा से उसके नाज़ुक सौंदर्य की ख़ुशबू फूट कर बाहर आ रही थी. यह अविश्वसनीय लग रहा था. पिछली वसंत ऋतु में मैंने यासुनारी कावाबाटा का एक उपन्यास पढ़ा था. वह क्योटो के प्राचीन काल के मध्य वर्ग से संबंधित था. उस उपन्यास के मुख्य पात्र हर रात शहर की सबसे सुंदर युवतियों को नग्न और नशे में देखने के लिए लाखों रुपए खर्च करते थे. वे मुख्य पात्र प्रेम की कष्टदायी अवस्था में उसी बिस्तर पर नग्न युवतियों को देख कर तड़पते हुए अपना समय व्यतीत करते थे. वे नशे में धुत्त उन नग्न युवतियों को जगा या छू नहीं सकते थे. वे ऐसा करने का प्रयास भी नहीं करते थे क्योंकि उनके आनंद का सार उन नग्न युवतियों को उस अवस्था में केवल सोते हुए देखना था. उस रात जब मैं उस सुंदरी को सोते हुए देख रहा था तब मैं न केवल वृद्धावस्था की उस परिमार्जित सुशीलता को समझ पाया बल्कि मैंने उसे पूरी तरह जिया भी.

“कौन जानता था,” शैम्पेन से तीव्र हो चुके अपने घमंड की वजह से मैंने सोचा , “कि मैं इस बढ़ी हुई उम्र में उम्र में एक प्राचीन जापानी बन जाऊँगा.”

मुझे लगता है, शैम्पेन के नशे और स्क्रीन पर चल रही फ़िल्म के मूक विस्फोटों की वजह से मैं कई घंटे सोया. जब मैं जगा तो मेरा सिर दर्द से फट रहा था. मैं उठ कर शौचालय गया. मेरी सीट से दो सीट पीछे वही ग्यारह सूटकेस वाली महिला भद्दे ढंग से अपनी सीट पर ऐसे पसरी हुई थी जैसे वह रण-भूमि में भुला दी गई कोई लाश हो. उसकी पढ़ने वाली ऐनक और मनकों की एक माला सीटों के बीच के गलियारे में गिरी हुई थी. मैंने उन गिरी हुई चीज़ों को नहीं उठाने की ख़ुशी का मज़ा लिया.

शैम्पेन के नशे से उबरने के बाद मैंने खुद को शीशे में देखा. मैं बदसूरत और घिनौना लग रहा था. मैं हैरान रह गया कि प्रेम की तबाही इतनी भयानक हो सकती है. हवाई जहाज़ ने बिना चेतावनी के अचानक अपनी ऊँचाई खो दी. फिर वह सँभला और सीधी उड़ान भरने लगा जबकि उसमें हर जगह ‘कृपया अपनी सीट पर वापस जाएँ’ के चिह्न चमकने लगे. मैं जल्दी से इस उम्मीद में शौचालय से बाहर निकला कि इस वायुमण्डलीय विक्षोभ की वजह से सुंदरी अब उठ गई होगी और अपने डर पर विजय प्राप्त करने के लिए उसे मेरी बाँहों के आश्रय में आना पड़ेगा. जल्दबाज़ी में मैं उस ग्यारह सूटकेस वाली हालैंड की महिला की गिरी हुई ऐनक को लगभग कुचल ही देता और यदि ऐसा हुआ होता तो मुझे ख़ुशी होती. लेकिन मैंने अपने बढ़े हुए कदम वापस खींच लिए, गलियारे में गिरी हुई उसकी चीज़ों को उठाया और उसका अहसान मानते हुए उसकी चीज़ें उसकी गोद में रख दीं कि उसने मुझ से पहले सीट नम्बर ‘चार’ की संख्या नहीं चुनी थी.

सुंदरी की नींद अपराजेय थी. जब हवाई जहाज़ स्थिर हुआ तब मुझे किसी बहाने से सुंदरी को हिला कर जगा देने के अपने लालच को रोकना पड़ा. दरअसल उड़ान के अंतिम घंटे में मैं उसे जगा हुआ देखना चाहता था चाहे वह इस तरह जगाए जाने से बेहद नाराज़ ही क्यों नहीं हो जाती. इस तरह मैं अपनी आज़ादी और सम्भवत: अपनी युवावस्था वापस पा लेता. किंतु मैं ऐसा नहीं कर सका. “लानत है” मैंने बेहद तिरस्कार से भर कर खुद से कहा , “आख़िर मैं वृषभ राशि में पैदा क्यों नहीं हुआ ?

जैसे ही हवाई जहाज़ हवाई अड्डे पर उतरने लगा, सुंदरी अपने-आप उठ गई. वह इतनी सुंदर और तरोताज़ा लग रही थी जैसे वह गुलाबों के बगीचे में सो कर उठी हो. और तब जा कर मुझे यह अहसास हुआ कि जो लोग हवाई जहाज़ में एक-दूसरे के बग़ल में बैठ कर यात्रा करते हैं वे वर्षों से शादी-शुदा जोड़ों की तरह सुबह जगने के बाद एक-दूसरे को ‘सुप्रभात’ नहीं कहते. सुंदरी ने भी यही किया. सबसे पहले उसने अपना नक़ाब उतारा. फिर उसने अपनी चमकीली आँखें खोलीं, अपनी सीट को सीधा किया, कम्बल को एक ओर किया और दूसरी ओर गिर आए अपने बालों को सँवारा. तब उसने प्रसाधन के सामान वाला छोटा डिब्बा अपनी गोद में खोल लिया और जल्दी से अनावश्यक रूप में खुद को सँवारा. इस सब में इतना समय निकल गया कि उसे तब तक मेरी ओर देखने का समय नहीं मिला जब तक हवाई जहाज़ का दरवाज़ा नहीं खुल गया. फिर उसने वन-बिलाव के खाल वाली अपनी जैकेट पहनी, और लगभग मेरे पैरों पर चढ़ती हुई और ‘पारम्परिक लातिन अमेरिकी स्पैनिश भाषा में ‘माफ़ कीजिए’ कहती हुई वह चली गई. उसने मुझे ‘अलविदा’ नहीं कहा. उसने मुझे इस बात के लिए ‘धन्यवाद’ भी नहीं दिया कि मैंने हम दोनों की रात्रिकालीन यात्रा को सुखद बनाने के लिए कितना कुछ किया था. वह सीधे न्यू यॉर्क के अमेज़न जंगल की आज की धूप में ग़ायब हो गई.
___________

सुशांत सुप्रिय

A-5001, गौड़ ग्रीन सिटी,वैभव खंड,
इंदिरापुरम्, ग़ाज़ियाबाद - 201014
(उ. प्र.)

मो : 8512070086/ ई-मेल : sushant1968@gmail.com

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  1. स्वप्निल श्रीवास्तव5 जून 2020, 10:41:00 am

    किसी स्त्री के सौंदर्य का अनोखा बखान अन्यत्र दुर्लभ है । यही है मार्खेज का जादू । इस हिंदी भाषा में जितनी स्वाभाविकता से सुप्रिय ने अनूदित किया है , उसके लिए सुप्रिय को सप्रेम बधाई ।

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  2. तेजी ग्रोवर5 जून 2020, 11:38:00 am

    पहले से ही कहानी पढ़े हुए होने से अनुवाद के ज़ायके में इज़ाफ़ा होना स्वाभाविक ही था। लगभग ढाई महीने के साहित्यिक उपवास के बाद इस पाठ को पढ़ा गया। लेकिन ढाई माह का ज़ख्म टीसता रहेगा ताउम्र।

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  3. कहानी की यात्रा से अभी लौटा। मार्खेज उस लड़की को देखने की इच्छा जगा गए। क्या वर्णन है। अनुवाद एक नदी की तरह था। बहुत बधाई सुप्रिय। इस जादू को फिर दिल में बसा लिया। मार्खेज तुम सितारा हो। तुम्हारी चमक हर बार नई है।

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  4. स्त्री की बेरुखी के बावजूद उसके सौंदर्य का इतना महीन और दिलचस्प चित्रण तथा नैरेटर का गहरा आत्ममंथन मार्खेज की कलम का कमाल है।
    इस श्रेष्ठ रचना के बहुत अच्छे अनुवाद के लिए सुशांत जी को धन्यवाद और इसके प्रकाशन हेतु अरुण जी को साधुवाद।

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  5. पहली बार ये कहानी पढ़ी है आज।स्त्री की सुंदरता तो बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है सच मे मार्खेज ने।अनुवाद बहुत अच्छा है सुशांत सर को हार्दिक बधाई,और अरुण सर प्रकाशन के लिए आपका बहुत बहुत आभार

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  6. मनोविश्लेषण करती एक दिलचस्प कहानी। मार्खेज की लेखनी और सुशांत जी के अनुवाद को शुक्रिया

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  7. बढ़िया कहानी व ज़बरदस्त अनुवाद !

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  8. मार्खेज़ की कलम का जादू। अनुवाद का भी जादू कम नहीं। बहाकर ले जाता है। पता ही नहीं चलता कि मूल नहीं अनुवाद पढ़ा है। बधाई - - हरिमोहन शर्मा

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  9. सुशांत जी का अनुवाद कहीं से लगता ही नहीं अनुवाद हो बल्कि लगता है हम मूल कहानी ही पढ़ रहे हैं .......बधाई

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  10. बहतरीन प्रयास। धन्यवाद सुशांत जी व अरुण जी।

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  11. अंजू राजेश जिंदल5 जून 2020, 8:54:00 pm

    कहानी का दिल से किया गया अनुवाद सच में दिल को भा गया

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  12. इस थीम पर न जाने कितनी कहानियाँ मिलती हैं पर यह लेखक के संयम और सौंदर्य मुग्धता के कारण अद्बुत है। सहयात्री के इसी विषय पर राजेन्द्र यादव की एक कहानी 'मरा हुआ चूहा है' बहुत पहले पढ़ी थी। सौंदर्य से अधिक यह काम कुंठा पर टिकी रहती है। जबकि मार्खेज किसी भी तरह से सौंदर्य और आकर्षण की सहजता को बचाये रहते हैं। क्रश पर यह एक सुंदर कहानी है। बहुत रचनात्मक अनुवाद के लिए सुशान्त सुप्रिय को बहुत बधाई। समालोचन को भी बहुत आभार ऐसी सुंदर कहानी पढ़ाने के लिए।- आनंद पांडेय

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  13. Sawai Singh Shekhawat6 जून 2020, 8:13:00 am

    बेहद ख़ूबसूरत कहानी और उतना ही बढ़िया अनुवाद भी-मार्खेज का जादू बरकरार है यहाँ!

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  14. वाह। कहानी के बढ़िया बने रहने में अनुवाद ने कहीं कोई खलल नहीं डाला। शुक्रिया मित्र।

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  15. कहानी का अपना जादू तो है ही, सुशान्‍त जी के अनुपम अनुवाद ने इसे और चमकदार बना दिया है, शुक्रिया सुशान्‍त सुप्रिय जी।

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  16. वाह!मार्खेज ने सौंदर्य के आकर्षण को सहजता से उकेरा है. हिंदी में अनुवाद अच्छा है।

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  17. बहुत सुन्दर और प्रभावी अनुवाद। एक अच्छी कहानी की सोहबत के लिए आभार।

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  18. शिव किशोर तिवारी7 जून 2020, 8:33:00 pm

    सीधी-सादी, माॅम की कहानियों-जैसी एक कहानी है। दक्षिण अमेरिकी स्पेनिश-भाषी वाचक एक लड़की के सौंदर्य से मंत्रमुग्ध होता है। वह उसे जापानी समझता है। पर वह निकलती है ठेठ उसी के देस की। व्यंग्य यह है कि लड़की वाचक को शायद इसलिए ज़्यादा मोहित करती है कि उसकी जातीयता रहस्यावृत है।
    अनुवाद अच्छा हुआ है। सुशांत जी प्रतिष्ठित अनुवादक बन चुके हैं ।

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  19. मार्खेज़ का जादू हमेशा की तरह अदभुत बना रहता है। अनुवाद भी बहुत प्रवाहमय है।

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  20. कहानी अनुवाद में पढ़कर मज़ा आ गया। पहले वाक्य से जो पकड़ती है, आखिर तक जकड़े रहती है।

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  21. लगातार दूसरी बार सुशांत प्रिय का अनुवाद पढ़ा. मज़ा आ गया.
    दूसरी अन्य कहानियों का भी इंतज़ार रहेगा.

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