१० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. आप सबको शुभकामनाएं. भारतीय और वैश्विक स्तर पर हिंदी की स्थिति को परख रहें हैं कवि राहुल राजेश.
सन दो हजार
उन्नीस में हिंदी और आगे
राहुल
राजेश
एक
विभागीय प्रशिक्षण के सिलसिले में बहुत दिनों बाद इस बार चेन्नई आया तो कुछ सुखद
अनुभव हुये. इस बार प्रशिक्षण संस्थान के प्रायः सभी संकाय सदस्य अपने सत्रों के
दौरान हिंदी और अंग्रेजी में बोल रहे थे. इससे भी सुंदर बात यह थी कि वे प्रायः
अपने अंग्रेजी वाक्यों में हिंदी के एक-दो शब्द भी इस्तेमाल करते जा रहे थे! और
ऐसा करते हुए उनके चेहरे पर एक खुशी भी झलक रही थी, एक खुलापन भी झलक रहा
था और एक व्यक्त-अव्यक्त गर्व भी!
वे
अपने व्याख्यान के दौरान अपने अंग्रेजी वाक्यों में बीच-बीच में 'लेकिन', 'तो', 'और', 'फिर से', 'इसलिए', 'इसके लिए',
'हमको मालूम है', 'ऐसा होता है', 'ठीक है' जैसे हिंदी शब्दों का इस्तेमाल ठीक वैसे ही
कर रहे थे जैसे हिंदी वाले प्रायः 'बट', 'देन', 'सो', 'ऐंड', 'यू नो', ‘दिस हैप्पेन्स' आदि
अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल हिंदी बोलते समय करते हैं! और ऐसा करते हुए थोड़ा
गर्व भी महसूस करते हैं! यदि तमिलनाडु जैसे राज्य में हिंदी के प्रति पुराने रुख
में यह बेहद मामूली बदलाव भी देखने को मिल रहा है और लोग यह बदलाव स्वयं ला रहे
हैं और ऐसा करते हुए बिल्कुल सहज हैं तो यह बहुत खुशी की बात है.
इसमें
कोई संदेह नहीं कि ये संकाय सदस्य अपनी नौकरी के सिलसिले में तमिलनाडु के बाहर भी
कुछ वर्ष रह लेने के कारण भी टूटी-फूटी हिंदी तो सीख ही चुके होंगे. लेकिन वापस
अपने राज्य में लौट कर भी हिंदी के न्यूनतम इस्तेमाल से भी न हिचकना हिंदी के
प्रति उनके सहज हो जाने का सुखद प्रमाण तो है ही!
'नो हिंदी से यस हिंदी'
कक्षाओं
के बाद देर शाम को संस्थान से बाहर पैदल निकला तो सोचा, बाहर भी कुछ जायजा लूँ! इसलिए एक ऑटो वाले से पूछा- यहाँ एजी ऑफिस से ब्लू
लाइन मेट्रो एयरपोर्ट तक जाएगी? ऑटो वाले ने सहजता से कहा- हाँ,
जाएगा न! मुझे तसल्ली हुई कि ऑटो वाले ने 'नो
हिंदी' नहीं बोला! इतना तो है कि हिंदी में भी बात करने वाले
बड़े व्यवसायियों को छोड़ दें तो जहाँ सीधे-सीधे ग्राहकी और कारोबारी लाभ जुड़े
हुए हैं, कम से कम वहाँ अब स्थानीय बाशिंदे भी 'नो हिंदी' बोलकर अपना नुकसान नहीं करना चाहते. फिर
भी जहाँ आमदनी का जरिया थोड़ा भी निश्चित है, वहाँ लोग,
खासकर थोड़े निचले तबके के लोग अब भी 'नो
हिंदी' बोलने में नहीं हिचकते! जैसे हमारे हॉस्टल के वार्ड
बॉय ने 'नो हिंदी' कहते हुए ही मेरा
स्वागत किया! मुझे लगता है, यहाँ जो तबका हिंदी के राजनीतिक
विरोध के झांसे में आसानी से आ जाता है, वही तबका हिंदी
सीखने से वंचित रह जाता है!
हाँ, केंद्रीय सरकार के कार्यालयों, बैंकों, कंपनियों आदि के नामपट्ट यहाँ तीनों भाषाओं में यानी तमिल, हिंदी और अंग्रेजी में लिखे गए हैं, यह भी संतोष की
बात है वरना यहाँ भी हिंदी-विरोध का असर दिख ही सकता था! बेंगलुरु मेट्रो के
साइनबोर्डों के मामले में पिछले साल ही ऐसा हुआ था. वापसी में चैन्नै के कामराज
हवाई अड्डे पर भी सुखद अनुभव हुआ. चेक-इन काउंटर पर मैंने हिंदी में बात की तो
एयरलाइन कर्मी ने भी सहजता से शानदार हिंदी में बात की! मुझे यह देखकर अच्छा लगा
और मैंने उसे अपनी खुशी भी जाहिर की तो उसे भी अच्छा लगा! नियमत: सभी निर्देश तो
तीनों भाषाओं में लिखे ही थे लेकिन कुछेक उद्घोषणाएँ हिंदी में भी हो रही थीं तो
और खुशी हुई! हो सकता है, यह सब पहले से ही हो रहे हों पर
मैंने पहले ध्यान न दिया हो. पर ये अनुभव सुखद लगे.
वर्ष
2019 हिंदी के मामले भी कई मायनों में अहम रहा. और इस बर्ष दक्षिण भारत से भी एक
अच्छी खबर आई! वैसे तो दक्षिण में तमिलनाडु ही एक ऐसा राज्य है जहाँ अक्सर हिंदी
प्रतिकूल कारणों से ही सुर्खियों में रहती हैं! और 2019 में भी हिंदी
ने खूब सुर्खियाँ बटोरीं!
हिंदी से नफरत बनाम हिंदी से प्यार
हिंदी
दिवस के अवसर पर 14 सितंबर 2019 को माननीय केंद्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह ने जब
कहा कि हिंदी पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरो सकती है तो सबसे पहले बदस्तूर
तमिलनाडु से ही विरोध का पहला स्वर फूटा कि हम पर हिंदी थोपी जा रही है! फिर तो कई
दिनों तक पूरे देश में हिंदी पर राजनीति होती रही! रजनीकांत से लेकर कमल हासन तक
बयान देते रहे और हिंदी सुर्खियाँ बटोरती रही! स्टालिन की अगुवाई वाले डीएमके ने
हिंदी के खिलाफ 20 सितंबर को विरोध-मार्च निकालने का एलान किया लेकिन जन समर्थन नहीं
जुटा पाने के कारण इस विरोध-प्रदर्शन को रद्द करना पड़ा! यह बात अंततः हिंदी के हक
में ही गई!
दरअसल, तमिलनाडु में भी हिंदी को लेकर दो धड़े हैं. डीएमके हिंदी के विरोध में है
तो एआईडीएमके हिंदी के पक्ष में! इसने तो डीएमके पर यह कहते हुए तंज कसा कि
विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान जब हिंदी के प्रयोग से परहेज नहीं किया तो अब
क्यों? तमिलनाडु में त्रिभाषा नीति (तमिल, अंग्रेजी और हिंदी) लागू करने की वकालत करते हुए एआईडीएमके के एक विधायक
आर. टी. रामाचंद्रन ने इसी 24 जुलाई को यहाँ तक कहा कि जब मेरी बेटी प्राइवेट
स्कूल में हिंदी पढ़ रही है तो राज्य के सरकारी स्कूलों के बच्चों को हिंदी से
वंचित रखना उनके प्रति अन्याय होगा! और सिर्फ वोट बैंक के लिए हिंदी पर राजनीति
करना राज्य की अधिसंख्य आबादी के साथ छल करना होगा!
अभी
पिछले 03 अक्तूबर को मदुरई में मीनाक्षी मंदिर के निकट एक रेस्तरां का नाम हिंदी
में प्रमुखता से प्रदर्शित करने पर उसके मालिक को रामनाथपुरम के एक वकील द्वारा बुरी
तरह धमकाए जाने का वीडियो खूब वायरल हुआ. लेकिन अधिसंख्य लोगों ने इस कृत्य की
भर्त्सना ही की.
तमिलनाडु में बढ़ती हिंदी
अभी
07 दिसंबर को तमिलनाडु सरकार को हिंदी को वरीयता और अधिक महत्व देने का आरोप झेलते हुए इंटरनैशनल तमिल रिसर्च सेंटर, चेन्नै से एक वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल हिंदी को हटाना पड़ा और उसकी
जगह फिर से तमिल को रखना पड़ा. लेकिन वहाँ के संस्कृति मंत्री के. पंडियाराजन ने
साफ-साफ कह दिया कि उन्होंने वैकल्पिक हिंदी की जगह तमिल को फिर से सिर्फ इसलिए रख
दिया ताकि डीएमके इसे बेवजह राजनीतिक मुद्दा न बना पाए! तो स्पष्ट है, तमिलनाडु सरकार में भी हिंदी को लेकर अब सकारात्मक सोच निर्मित हो रही है.
दरअसल, हिंदी वहाँ बस राजनीतिक मुद्दा भर ही है. सामाजिक मुद्दा कतई नहीं. इसलिए
तो इन तमाम राजनीतिक विरोधों के बावजूद, तमिलनाडु में हिंदी
के प्रति रुझान तेजी से बढ़ा है, जिसका संकेत मैंने ऊपर ही
किया है.
08
जून को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक, तमिलनाडु में पिछले एक दशक में स्वैच्छिक रूप से हिंदी सीखने वाले
विद्यार्थियों की संख्या में सतत वृद्धि हुई है. और इसमें 1918 में स्थापित दक्षिण
हिंदी प्रचारिणी सभा और सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों की तेजी से बढ़ती
संख्या अहम भूमिका निभा रही है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी आंकड़ों के
अनुसार, हिंदी सीखने वाले विद्यार्थियों की संख्या 2009-10
में दो लाख थी, जो 2018 में लगातार बढ़ते हुए पौने छह लाख तक
पहुँच गई है! यह इस बात की भी तथ्यात्मक पुष्टि करता है कि राजनीति भले हिंदी से
नफरत करती रहे, लेकिन लोग हिंदी को प्यार करते हैं! दक्षिण
से हिंदी के बारे में इससे अच्छी खबर और क्या हो सकती है!
अमेरिका में भी बढ़ी हिंदी
यहाँ
यह दुहराना सुखद है कि हिंदी सिर्फ दक्षिण में ही नहीं, पूरे भारत में बढ़ रही है और अमेरिका तक में इसने बढ़त बना ली है! 2011 की
जनगणना में उभरे आंकड़ों के अनुसार, 2001 से 2011 के बीच
हिंदी बोलने वाली आबादी, कुल आबादी के 41 प्रतिशत से बढ़कर, 44 प्रतिशत हो गई है.
लेकिन
इससे भी अच्छी खबर यह आई कि अमेरिका में भी हिंदी बोलने वालों की तादाद में अच्छी
खासी वृद्धि हुई है! और यह संख्या नौ लाख तक पहुँच गई है. इस तरह अमेरिका में
हिंदी ने इस तादाद के साथ सर्वाधिक लोकप्रिय देसी (भारतीय) भाषा का दर्जा हासिल कर
लिया है. सन 2010 से इस संख्या में लगभग 2.65 लाख (43.5 प्रतिशत) की वृद्धि हुई है.
हिंदी के बाद वहाँ गुजराती और तमिल क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं.
यूएनओ में भी बढ़ा हिंदी का इस्तेमाल
साल
की शुरुआत में ही संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) से एक अच्छी खबर आई. यूएनओ ने 10 जनवरी, 2019 को यानी विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर
अपने यूएन न्यूज की हिंदी वेबसाइट आरंभ की. इसके साथ ही,
यूएन रेडियो से यूएन न्यूज ऑडियो बुलेटिन भी हिंदी में फिलहाल साप्ताहिक आधार पर
जारी किए जा रहे हैं. यह भी उल्लेखनीय है कि जुलाई, 2018 में
ही यूएनओ ने ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर अपनी सोशल
मीडिया सामग्रियों का हिंदी संस्करण लांच कर दिया था. यह भी अंतरराष्ट्रीय फ़लक पर हिंदी
की एक बड़ी उपलब्धि ही है. इससे यूएनओ में हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने
की राह भी आसान होगी. वैसे अब संयुक्त राष्ट्र महासभा में भी हिंदी के पक्ष में सदस्य-देशों
की संख्या बढ़ी है.
ज्ञात
हो कि राज्य सभा में पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में भारत सरकार ने 25 जुलाई, 2019 को सदन को सूचित किया था कि यूएनओ में हिंदी को एक आधिकारिक भाषा का
दर्जा दिलाने और हिंदी का विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार बढ़ाने की दिशा में किए जा रहे
अपने प्रयासों को तेज करते हुए, भारत सरकार ने मार्च, 2018 में यूएन सचिवालय के साथ फिलहाल दो वर्षों की आरंभिक अवधि के लिए एक
समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. इस समझौते के अनुसार,
विश्व भर के हिंदीभाषी श्रोताओं के लिए यूएन द्वारा सृजित हिंदी सामग्री की मात्रा
और बारंबारता बढ़ाई जाएगी. इस समझौते के सुखद नतीजे आने शुरू हो गए हैं.
सिविल सेवा परीक्षा में भी बढ़ा हिंदी का जलवा
देश
के संघ लोक सेवा आयोग की ओर से जारी एक ताजे आंकड़े के मुताबिक, सन 2019 में सिविल सेवा परीक्षा में सफल हुए 812 परीक्षार्थियों में से 485
परीक्षार्थियों ने हिंदी या क्षेत्रीय भाषा के माध्यम से सफलता हासिल की है. यह
कुल सफल परीक्षार्थियों का लगभग 60 प्रतिशत है. और इससे भी सुखद बात यह है कि
पिछले 30 सालों में पहली बार 50 प्रतिशत से अधिक सफल परीक्षार्थी हिंदी और
क्षेत्रीय भाषाओं से हैं!
इससे
साफ जाहिर है कि देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित मानी जाने वाली इस परीक्षा में हिंदी
और क्षेत्रीय भाषाओं की शानदार वापसी हुई है! साथ ही, हिंदी को बतौर एक वैकल्पिक विषय के साथ परीक्षा उत्तीर्ण करने का रुझान
भी बढ़ा है.
गूगल की भी हिंदी से बढ़ीं उम्मीदें
इस
वर्ष हिंदी के बारे में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से भी एक अच्छी खबर आई.
गूगल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘गूगल असिस्टेंट’ में वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी के बाद हिंदी ही सबसे अधिक इस्तेमाल की
जाने वाली भाषा बनकर उभरी है! इस बात से उत्साहित होकर गूगल कंपनी अपने इस एप को
सभी एंड्रॉयड उपकरणों में सीधे हिंदी में भी उपलब्ध कराने जा रही है. यह भी तो
हिंदी का विस्तार ही हुआ न!
कुल
मिलाकर, 2019 में हिंदी सिर्फ राजनीतिक विवादों के कारण ही
नहीं बल्कि अपनी बढ़ती स्वीकार्यता और बढ़ती पहुँच के कारण भी
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रही. ये सुर्खियाँ हमें फिर
आश्वस्त करती हैं कि सन 2020 भी हिंदी के लिए इनसे भी अच्छी खबरें लेकर आएगा!
राहुल
राजेश
जे-2/406,
रिज़र्व बैंक अधिकारी आवास,
गोकुलधाम, गोरेगांव (पूर्व), मुंबई- 400063.
मो. 9429608159.
राहुल ने देश और दुनिया में बढ़ती हिंदी की सम्यक पड़ताल की है। दक्षिण में हिंदी विरोध की जो उत्तर में अफवाह उड़ाई जाती है, वह इस लेख से निर्मूल साबित होती है। हिंदी रोजगार की भाषा जैसे-जैसे बनती जाएगी उसका विकास अपने-आप होता जाएगा। राहुल ने इस ओर भी संकेत किया है।
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