सहजि सहजि गुन रमैं : शैलेन्द्र दुबे

कृति : Gigi-scaria



कवि चित्रकार शैलेन्द्र दुबे का एक संग्रह ‘हमने ख़ुशी के कुछ दिन तय किये’ २०१५ में प्रकाशित हुआ था. शैलेन्द्र की कविताएँ अपनी भंगिमा में मुखर नहीं है पर अपने अर्थात में वे गहरी हैं. प्रकाशित कविताओ में वह मनुष्य द्वारा अर्जित अभिव्यक्ति के प्रखरतम रूप शब्दों से होते हुए कविता तक जाते हैं. ये कविताएँ सोच-विचार के तलघर तक जाती हैं, इनमें एक दार्शनिक रुझान हैं. इन कविताओं को उपलब्ध कराने के लिए समालोचन रुस्तम सिंह के प्रति आभार प्रकट करता है.



शैलेन्द्र दुबे की कविताएँ               




(एक)

पलक झपकते ही
सारा शब्द-महल
ढह गया
आँखों के सपने
बह गये
अन्तर अवाक्
मुख-नेत्र खोले
झरता रहा

शब्द-महल
कितने नाजुक हैं
भाई
अब नहीं बनाऊंगा
अपनी ही करुणा को
आँख
नहीं दिखाऊंगा

मैं
मेरा जल जाये
आत्म-प्रसन्नता बह जाये
अब शब्दों को कष्ट
नहीं दूँगा
वे प्रिय, आत्मीय हैं
आपसे ज्यादा मेरे
उन्हें व्यर्थ नहीं जाने दूँगा.






(दो)

मेरी नाल आज भी उस मिट्टी में
दबी हुई है
जन्म-मरण-कर्तव्यबोध
हिंसात्मक अहिंसक स्नेह
प्रेम भी,
प्रातः की सुवासित नम वायु
का
सजीव धड़कना भी

वृक्ष अन्य मौसम को
अन्य भूभाग पर
जड़ समेत
रोंपता है,
मिट्टी-कण, नमी छूट जाते हुए
बिलखते हैं

रच-रच कर ही प्राण पाती
जिजीविषा


  


(तीन)

समय
छिद्र से बहा था
बह रहा है
बह गया

बचे (अवशेष) में
स्थूल आशायें, इच्छायें
मछली-सी फड़फड़ा रही हैं

अनंत आकाश भी
जीवन के इस
हृदय-विदारक खेल में
न चाहकर भी
भागीदार होता है.






(चार)

विचार-आलोढन
सतह पर
क्या फेंकता है
कहना कठिनतर है,
ज्वालामुखी और अन्तःकरण
समानधर्मी हैं.






(पांच)

थकाने के लिये जरूरी नहीं
सिर्फ श्रम

अनेकों बिम्ब-प्रवाह की
बाढ़ में
सीधे-साधे सरल शब्द
हाथ ऊँचाये
बचाओ-बचाओ
चीख रहे हैं

कवि-गण अपनी कश्तियों में
डूबने-उतराने के
मनोहर दृश्य देख
ख़ुशी से आँखें भींच रहे हैं

स्व-आह्लाद समस्त दुखों को
रौंद रहा है
आती-जाती लहरों का
रूद्र-रूप
कौंध रहा है

हे कविगण!
उद्दाम वेग की धारा में
अपने-अपने अहं सिरा दो
कोई निहत्था शब्द
जो
ढंक-टंक सकता कविता में
अपनी कश्ती उधर घुमा दो
दे हाथ स्वयं
उन दीनों को
तुम ही उनको

पार लगा दो.
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शैलेन्द्र दुबे
(11 अक्टूबर, 1964)
कवि, चित्रकार

बहुवचन, साक्षात्कार, पुरोवाक, समकालीन भारतीय साहित्य, उद्भावना, हंस, प्रेरणा, प्रतिलिपि (वेब-पत्रिका) तथा अनेक अन्य पत्र-पत्रिकाओं में कवितायें प्रकाशित. गद्य-कविता “सुग्राह्यता” सहित कुछ अन्य कवितायें भारतीय कविता के स्वीडी संकलन INNAN GANGES ‘FLYTER’ IN I NATTEN में प्रकाशित. वर्ष 2015 में प्रथम कविता संग्रह “हमने ख़ुशी के कुछ दिन तय किये” (सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर) से प्रकाशित.

वर्ष 1997 से चित्रकला में भी सार्थक हस्तक्षेप. अनेक सामूहिक चित्रकला प्रदर्शनियों में भागीदारी के अलावा उज्जैन की वाकणकर कला दीर्घा तथा दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में एकल प्रदर्शनियाँ. वर्ष 2003 में भारत भवन वार्षिकी चित्रकला प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक चित्र पुरुस्कृत.

इन दिनों RAJDHANI MANDIR INC, CHANTILLY, VIRGINIA, USA में कार्यरत.
संपर्क –         13930 ROCKLAND VILLAGE DRIVE,
CHANTILLY, VIRGINIA 20151 USA
ईमेल - s_dubey1@hotmail.com
मोबाइल -       703-677-5443

6/Post a Comment/Comments

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  1. शैलेंद्र दुबे हमारे समय के अनूठे कवि हैं ।।

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  2. Bahut badiya kavitayen. Inhen chhaapne ke liye shukriya Arun ji.

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  3. Murlidhar Chandniwalla16 जन॰ 2018, 5:46:00 pm

    सहृदय कवि और चित्रकार भाई शैलेन्द्र दुबे की कविताएँ गहरी संवेदना वाली कविताएँ हैं। वे अपने समय के जागे हुए और चेतनाशील रचनाकार होने के साथ-साथ मनुष्य की अस्मिता के कवि हैं। बड़ी बात यह है कि ऐसा कवि अपने मित्र-कवियों के साथ रिश्तेदारी निभाने वाला होता है। कविवर शैलेन्द्र जी भविष्य के कवि हैं,इसलिये हम अपनी सम्भावनाएँ उनमें देखते रहते हैं कभी-कभी। वे चिरायु हों,निरंतर गतिशील हों। हार्दिक मंगल कामनाएँ।��

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  4. अरुणजी लोग कहते हैं दिन बन गया मै कहूँगा आज की रात बहुत बढ़िया सपने आने वाले हैं, रात्रि का १२.२० हो रहा है और बाहर -3 डिग्री ठण्ड है आज, आपको सप्रेम नमस्कार, आभार और समालोचन उत्तरोत्तर बढ़ता जाये यही कामना हैं, पुनः आपको आभार सर,

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  5. ये कविताएँ समालोचन पर देख अच्छा लगा। बहुत कम कविताएँ ऐसी रह गई है अब जिन पर देर तक ठहरना जरूरी लगता हो।

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  6. हे कविगण!
    उद्दाम वेग की धारा में
    अपने-अपने अहं सिरा दो
    कोई निहत्था शब्द
    जो
    ढंक-टंक सकता कविता में
    अपनी कश्ती उधर घुमा दो
    दे हाथ स्वयं
    उन दीनों को
    तुम ही उनको

    पार लगा दो.
    -----------सुंदर सोच

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