मंगलाचार : शुभम अग्रवाल


(Naiza Khan : On the Front Line)





याचनाएं
जिनका व्यर्थ होना
निश्चित था.’

पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर २७ वर्षीय शुभम अग्रवाल अपने पहले कविता संग्रह की तैयारी में हैं. शीर्षकविहीन इन कविताओं में मृत्यु, स्मृति, आत्म, अस्तित्व, अलगाव से संवाद की रचनात्मकता दिखती है. ये अंदर की ओर झुकी कविताएँ हैं.  इनमें संयम है.   



शुभम की ११ कविताएँ यहाँ प्रकाशित हो रही हैं. 


शुभम अग्रवाल की कविताएँ                             





१.         
चलते चलते
ठिठक जाती है औरत

सर झुकाये
आगे बढ़ जाता है नवागंतुक

व्याकुल मन
डूब जाना चाहता है प्याले में

श्वासें अगर रुक भी गयीं
तो वह ढूँढ लेंगे

एक अनियंत्रित लालसा

लील लेती है सूर्य को
एक उत्कण्ठा

भटकता मनुष्य
अनुभव करना चाहता है
मृत्यु का.



२.
वेदनाएँ छद्म थीं

अंतस में पड़ा
तोड़ा
या टूटा हुआ
मोरपंख
बिलख रहा था

बिल्ली के दांतों में फंसा
चूहे का बच्चा
निढाल

अंगुलियाँ थिरकते हुए
पहुँच जाती थीं
बाहरी लोक में

यातनाओं में
अस्तित्व का एहसास
न के बराबर था
इसलिए उनमें  होना
कम कष्टदायी था.


३.
गर्म पाँव
चलते है पृथ्वी पर

सीढ़ियों से उतरती है छाया

सहलाती है बालों को

पिपासा जागती है
पर उमड़ नहीं पाती

परिंदे घूमते रहते हैं
पर चुगते नहीं

मेरे जाने की बाट जोहता है
आकाशदीप

जाना किधर को है
स्मरण नहीं होता.



४.
एक धुरी पर आकर
ठहर जाता है समय

उत्सुकता में
बाहर निकालता है मुख
कोई जलप्राणी
और  लुप्त हो जाता है

सरकंडों में कराहती है
बची हुई हवा

जिन बिम्बों में से
उग आये थे कमल,
उनसे अलगाव ही
ले जायेगा मुझे

वैराग्य में भी
नहीं मिल पाती वह

याचनाएं
जिनका व्यर्थ होना
निश्चित था.



५.
उस बिंदु के आगे
नही पहुँच पाता
कष्ट

अधीर मन से
प्रश्न पूछती हैं
खिड़कियाँ

प्रत्यंचा का तनाव
असहनीय हो जाता है

मुट्ठियों में भिंचा हुआ
सत्य
छूट जाना चाहता है

मैं दोहराता हूँ बार बार
अपनी निर्धनता को

जिन घावों के बीच
खोते
और मिल जाते थे हम
उन्हीं घावों के गोलार्द्ध में
घूमते घूमते
चुक जाना था हमें.




६.
क्यारियों में
ठहरा हुआ जल
पी जाते हैं
पशु

वह रास्ता
जो निकलता है मुख से

उसकी लम्बी उँगलियाँ
पैठ जाती हैं
गहरे में

कंठ में पड़े
शब्दों की नियति
आखिर क्या हो सकती है

कपोलों के भाव
परिवर्तित होते होते
पारदर्शी हो जाते हैं

आत्मबोध का क्षण
कहीं नहीं जाता

सूर्य में से
निकला था

सूर्य ही में
लीन हो जायेगा

जीवन.


७.
उस गंध के परे
नहीं पहुँच पाते
विचार

नदी का बहना
और
कविता का स्फुटन
कब आरम्भ हुआ

सुख जितना
दुर्लभ था संसार

मोमबत्तियों में
दोहरायी जाती थी
गाथा

अँधेरे भारी कदम
लौट जाते थे
भविष्य में

केंचुओं की तरह
मुड़ जाता था
विवेक

छुप जाना
किरणों से
होठों से
वक्षों से
एकमात्र ध्येय था.



८.
स्वप्न में
चलता रहता है
काठ का मानस

निकल जाता है
सामने से
प्रेम की कल्पना में
डूबा हुआ तारा

जिन डोरियों से
बंधीं थीं कलाईयाँ

जिन छायाओं में
खड़े थे वृक्ष

मनुष्य
एकाकी
पृथ्वी के छोर पर बैठा
सोखता है
सबकुछ

रचनाएं
जो उसकी थीं
पर नहीं थीं

उपत्यकाएँ
जो उसकी नहीं थीं
पर थीं.


९.
बुख़ार
उठता है नाभि में

उसकी चाल
अनुभव की जा सकती है
प्रतिक्षण

उसको खाते हुए देखना

जबड़ों का चलना

उँगलियों की उड़ान

उसका निजी संसार
जिसके निकट जाना भी
दूभर था

उसकी दृष्टि
ठहरती है अनंत में
फिर लौट आती है
आत्म में

श्वासों को रुकना था
इसी जगह

फूलदानों का आविर्भाव
फूलों के आसपास होना था.



१०.
वृक्षों के घनत्व में
दिखती
लोप होती
चली जाती है
वनकन्या

देह को छूते हुए
उड़ जाता है
चिड़ियों का जोड़ा

त्वचा का रूपांतरित होना

एक दूसरे में
उलझे हुए
सर्पों के झुण्ड

वह राह
जिसकी टोह में
जागती रहती हैं
बन्दर की ऑंखें

उस चेतना से विमुख
चाहता है कोई
बिता देना
जीवन.



११.
एक लड़की
पड़ी हुई कुर्सी पर
झुकी

उसके पाँव
जूतों में
अध घुसे

उंगलियाँ कांपती हैं

देखती हैं
अनस्तित्व को
जाते हुए
 
एक आदमी
पड़ा हुआ धरती पर
देखता है
गाढ़ी ठण्डी सफ़ेद
छत को

एक पहचानी हुई
आकृति
धंस जाती है
और भी अधिक

कल्पना में.
_________________
shubham02agarwal@gmail.com

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  1. सहम के क्षणों में की सेंक में से जन्मी हुई कविताएं जिनके भीतर पक रही है उसकी दुनिया जो विरक्ति के भाव में भी कभी अपने प्रति आसक्त हो उठती है और अनदेखा नहीं करती जगते में बुझते हुए ...सांस लेते दृश्य !

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  2. अनोखी कविताएँ हैं इस लड़के के पास. तेजी मै'म के यहाँ पढ़ी हैं पहले. इस फ़्लेवर की कविता कई-कई बार की पढ़त माँगती हैं.

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  3. नूतन डिमरी गैरोला4 दिस॰ 2017, 9:00:00 am

    Kavi ko bahut badhai ki samalochan me aaye hai ..Shubhkamnayen unki aane vaali pustak ke liye..

    जवाब देंहटाएं
  4. शीर्षकविहीन ही तो है जीवन। जीवन के फैलाव और नैरतन्य के बीच सफ़र करती कविताएं। इन कविताओं का मेटा एलिमेंट आकर्षित करता है।
    अपर्णा

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  5. तेजी ग्रोवर4 दिस॰ 2017, 3:36:00 pm

    मित्रो, आप लोग समय समय पर शुभम की कविताएँ मेरी timeline पर देखते रहे हैं और उन कविताओं को बहुत मन से पढ़ा भी गया है. मेरे लिए ख़ुशी की बात है कि अरुण देव जी ने इन कविताओं को समालोचन में जगह दी है...इस कवि पर बहुतों की नज़र टिकी हुई है, ऐसा मुझे महसूस हो रहा है कुछ समय से. इनकी कविताएँ इससे पहले Premshankar Shukla जी ने पूर्वग्रह के एक अंक छापी हैं.

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  6. रुस्तम सिंह4 दिस॰ 2017, 3:39:00 pm

    अति सुन्दर, अति सूक्ष्म कविताएँ. शुभम के पास नयी आवाज़, नया मुहावरा है.शिल्प में दुर्लभ कसाव है.

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  7. astitva aur manav niyati ke kathin prashno..,anubhavo se sangharsh karti anokhi kavitaye hain.. Rachnamak bechaini ki aatmiy aur prabhshali abhvyakti..kavi shubham ji ko shubhkamnaye..smalochan.arundev ji ko dhnyvad. behtreen kavitao ke liye.

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  8. इन कविताओं में ताज़गी है।...शुभम के अंदर अनंत संभावनाएं हैं।...ढेर सारी शुभकामनाएं।

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  9. विचार और बिंब मौलिक हैं । मानो कवि खुद को किसी वैचारिक प्रदूषण से बचा कररखे हुए है । शिल्प गत अनुकरण भी नहीं है । सीधी ईमानदार कविताएं।

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  10. अच्छी कविताएँ पढ़ मन कृतज्ञ। शुभम के लिए शुभ कामनाएँ।

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  11. कविता मेरी प्रिय विधा है इसी कारण लिखने की नौबत न आ सकी:अच्छी कविता जो शुभम ,आपने लिखी है ।हार्दिक प्रशंसा और बधाई और दुआ कि मामला ऐसे ही चले ।आप ख़ुद को कविता कहने के लिए सदा सहज पायें ,कोशिश की नौबत ही न आए।

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