प्रो. मैनेजर पाण्डेय और मीडिया ट्रायल :










डिजिटल मीडिया किस तरह से एकतरफा और जजमेंटल बना दिया जाता है इसके कई हिंसक उदहारण हमारे समाने हैं. कुछ साल पहले इसी फेसबुक पर खुर्शीद अनवर की घेर कर (आत्म)हत्या  कर दी गयी थी. वह आदमी वैश्विक धार्मिक कट्टरता से लड़ रहा था.

अभी कुछ दिन पहले ही मार्क्सवादी चिंतक और आलोचक प्रो. मैनेजर पाण्डेय की एक तस्वीर और कथित साक्षात्कार के आधार पर, उनके व्यक्तिगत जीवन पर जिस तरह से हिंसक हमले हुए हैं वे अमानवीय और आपराधिक से कम नहीं है.

शुक्र है कि प्रो. मैनेजर पाण्डेय फेसबुक, ट्विटर आदि पर  नहीं हैं नहीं तो संभावित का आप अनुमान लगा सकते हैं.


डिजिटल मीडिया पर जो लोग भी सक्रिय हैं उनसे एक न्यूनतम ज़िम्मेदारी और भाषाई मर्यादा की उम्मीद की  जाती हैं. अगर इस कथित आज़ाद स्पेस का  इसी तरह दुरूपयोग होता रहा है तो संभव है यह आज़ादी भी हम से छीन ली जाए. 

प्रो. मैनेजर पाण्डेय की सुपुत्री रेखा पाण्डेय ने  इस प्रकरण पर यह नोटिश जारी किया है.

प्रो. मैनेजर पाण्डेय और मीडिया ट्रायल                                




दिनांक 27/05/2017 से 05/06/2017 की अपने गाँव की यात्रा के दौरान माँ द्वारा आयोजित भागवत कथा के प्रारंभ के  दिन आयोजन शुरू करवाने के अनुरोध को स्‍वीकार कर बिना किसी तैयारी के पिता जी (मैनेजर पाण्डेय) माँ के साथ बैठ गए. वे अपनी प्रगतिशील सोच के कारण चाहे घर हो या बाहर सदैव धार्मिक अनुष्‍ठानों का विरोध करते रहे हैं, पर माँ आस्तिक हैं. उनकी उम्र इस समय लगभग 74 वर्ष है. गाँव का समाज शहर के समाज से एक अलग सोच रखता है. यह आयोजन शुद्ध रूप से व्यक्तिगत न होकर गाँव-समाज के अनुसार गँवई-समाज का भी था. गाँव के लोगों के सामने माँ के आग्रह को इस तरह अस्वीकार कर देना, उनका अपमान करना भी था. माँ के सम्‍मान को ठेस न पहुँचे इसलिए पिता जी (मैनेजर पाण्डेय) ने माँ का सहयोग किया.

मेरे गाँव का होने के कारण अनुप पाण्‍डेय ने इस घटनाक्रम का गलत फायदा उठाया. वहाँ खड़ी एक किशोरावस्‍था की लड़की को अपना मोबाइल देकर कहा कि जब दादाजी और दादीजी एक साथ बैठें तो एक फोटो खींच लेना और मुझे मोबाईल वापस दे देना. उस बालिका ने वैसा ही किया. ऐसा नहीं है कि अनुप पाण्डेय, पिता जी (मैनेजर पाण्डेय) की सोच, उनके चिन्तन, साहित्यिक उपल्बधियाँ, उम्र या बीमारियों से परिचित नहीं हैं. अनुप को पता है कि वे 76 वर्ष के हैं क्योंकि पिछले वर्ष गाजियाबाद के एक कॉलेज में भी पिता जी का 75वाँ जन्मदिन मनाया गया था और उस आयोजन में अनुप पाण्डेय भी शामिल थे. लेकिन अनुप का दो दिनों के लिए इस उद्देश्य से गाँव आना, फोटो खींचवाकर लाना और फेसबुक पर अपने अनुसार एक कल्पित इंटरव्यू के साथ पोस्ट करना आदि, यह साबित करता है कि यह सब करके वह सिर्फ पिता जी (मैनेजर पाण्डेय) की प्रतिष्ठा और छवि को धूल-धूसरित करना चाहते थे.


फेसबुक के उस पोस्ट को देखकर लोगों की जो प्रतिक्रिया होनी चाहिए वह हुई और साथ ही जिन्हें कुछ भी कह देने के अवसर की तलाश थी उन्हें वह भी मिला. लगभग 40 वर्षों की निरन्‍तर साधना, प्रगतिशील सोच पर 40 मिनट में अपमानजनक टिप्‍पणियों का अंबार सा लग गया और अब भी चल रहा है. गाँव से लौटने के बाद दिनांक 6/6/2017 की सुबह से इस संबंध में आनेवाले अनेकों फोन कॉल्स ने उन्हें अात्मिक और मानसिक रूप से काफी परेशान किया, जिसकी वजह से अस्वस्थ हो गए हैं और चिकित्‍सकों की देखरेख में हैं. 

अनुप सरासर झूठ बोल रहे हैं कि पिता जी (मैनेजर पाण्डेय) से उसकी कोई बातचीत हुई है. अनुप पाण्डेय को फेसबुक पर अपने झूठे बयान और कल्‍प‍ित इंटरव्‍यू का स्पष्टीकरण देते हुए उसे वापस लेना चाहिए. इस झूठ और षडयंत्र के लिए उन्‍हें फेसबुक पर ही माफी मांगनी चाहिए. यदि अनुप ऐसा नहीं करते है तो मैं उन पर अवमानना का मुकदमा तथा आपराधिक और दीवानी कानून के अंतर्गत मुक़दमा दायर करने के लिए बाध्‍य होऊँगी. उनका यह आपराधिक कृत्‍य अपमानजनक, झूठा और कोल-कल्‍प‍ित है. इससे हम सभी काफी आहत हैं.

रेखा पाण्डेय
________
Rekha  pandey
Assistant Professor (Hindi) 
Head Office
Rashtriya Sanskrit Sansthan (Deemed Central University), 
56-57, Institutional Area, Janakpuri
New Delhi, India-110058

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  1. सहमत। किसी की निजता (privacy) का हर हाल में सम्मान और हर हाल में इसकी रक्षा की जानी चाहिए। फेसबुक जैसे किसी भी सार्वजनिक मंच पर मर्यादा और भाषा की मर्यादा का उल्लंघन सर्वथा अनुचित है। किसी भी चर्चा या विमर्श में असहमति जताने की न्यूनतम तमीज़ तो होनी ही चाहिए। और यह सहमत होने की अंध अपेक्षा रखने वालों और असहमत होने का अधिकार रखने वालों पर समान रूप से लागू होती है। तभी अभिव्यक्ति की आज़ादी असल मायाने में सुरक्षित बचेगी। अन्यथा यह एकतरफा हो जाएगी। इस प्रकरण के संदर्भ में मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि यहाँ इस वक्तव्य में पूजा में बैठने को लेकर बचाव की मुद्रा अपनाना (defensive होना) मेरे हिसाब से सही नहीं है। मैं बार-बार दुहराते हुए, फिर दुहराना चाहता हूँ कि कर्मकांडी होने और धार्मिक होने में बड़ा फर्क है। मार्क्सवाद धर्म के पालन का निषेध नहीं करता है। यह धर्मांधता का निषेध करता है। बंगाल तो मार्क्सवादियों का गढ़ रहा है और यहाँ दुर्गा-काली की सबसे अधिक पूजा-आराधना की जाती है! इस पर कोई सवाल क्यों नहीं?

    - राहुल राजेश ।

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  2. रेखा पांडेय को चिंतित नहीं होना चाहिए। दुःख हम जैसे हज़ारों को हुआ है। बहुत ही ओछी हरकत। अनूप की नहीं उनकी जिन्होंने इसे आधार बनाकर पांडेय जी पर निशाना साधा। पर पांडेय जी का कद इससे छोटा नहीं होगा, निश्चिंत रहें।

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  3. बेहद शर्मनाक हरकत की है अनूप पांडेय ने ...जिस सक्रियता से उन्होने तस्वीर और सर का कल्पित बयान पोस्ट किया था उससे अधिक तत्परता उनहें माफी मांगने में दिखानी चाहिये ...फेसबुक की जनता उनकी माफी को भले स्वीकार कर इस प्रकरण को भूल जाये किंतु उनकी यह बदमाशी अक्षम्य है .

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  4. रेखा जब परसों मेरे घर आई थी, तो वह बेहद आहत थी। उसने जो लिखा है, वह सब तो बताया ही था, अनूप पांडेय की धूर्तता के बारे में भी बहुत कुछ साझा किया था

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  5. शर्मनाक , संकीर्ण और शरारती सोच। ऐसे ही लोग होते हैं जिन्हें न सांस्कृतिक बुनावट के बारे में पता है न इनसानी संवेदना के बारे में। सबसे ऊपर मनुष्य सत्य है।

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  6. सच तो यह है कि किसी व्यक्ति के निजी जीवन को तबतक बहसतलब मुद्दा मानने का हिमायती नहीं हूँ जबतक उसके व्यवहार से समाज का कोई नफ़ा-नुकसान नहीं होता. बावजूद इसके निवेदन है कि आदरणीय मैनेजर पाण्डेय को करीब से जाननेवाले अकादमिक बिरादरी के लोगों को अच्छी तरह मालूम है कि वे स्वयं भक्तिकाव्य और ख़ास तौर से सूर-काव्य के अध्येता रहे है और खुद 'भागवत' के अच्छे जानकार हैं.जब कुछ वर्षों पूर्व वे हमारे हैदराबाद केन्द्रीय वि.वि. में कृष्णकाव्य पर केन्द्रित किसी पी-एच.डी की मौखिकी लेने आए थे तब मौखिकी के बाद मेरी उनसे लम्बी चर्चा हुई थी कि भागवत में कहाँ-कहाँ कवित्व के विस्फोट के तहत जनजीवन का उल्लास अभिव्यक्त हुआ है और किन-किन प्रसंगों में अतिरिक्त दार्शनिकता के माध्यम से सामंती मूल्यों का पोषण हुआ है, .वे परलोक सुधारने के लिए किसी कथावाचक से 'भागवत कथा' श्रवण करेंगे यह मेरे लिए अविश्वसनीय है.सच तो यह है कि श्रीरामभद्राचार्य जैसे एकाध भागवत के जानकारों को छोड़कर आज मैनेजर पाण्डेय की तरह भागवत के मर्म को जाननेवाले शायद कम ही मिलें. दूसरी बात यह कि किसी निजी पारिवारिक कार्यक्रम एव धार्मिक अनुष्ठान में परिवार के लोगों के साथ शामिल होना और खुद कट्टर धार्मिक व्यक्ति होना अलग-अलग मामला है.इसके साथ ही याद रहे कि कट्टर धार्मिक व्यक्ति होना इस बात की गारंटी नहीं है कि ऐसा आदमी भक्त होगा और अच्छा मनुष्य भी होगा..इकबाल के शब्दों में "मन अपना पुराना पापी है वर्षों में नमाज़ी बन न सका.'पाण्डेय जी शीघ्र स्वस्थ हों यही कामना है.उनके अनुष्ठान में शामिल होने को उछालनेवाले लोग भारत में प्रगतिशील दृष्टि के विकास में सबसे बड़े बाधक है.

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  7. ये नयी बीमारी लाइलाज हो चली।
    युग पुरुष को नमन।

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  8. संभवत: सन 2010 या 2011 में हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में 'हिन्दी आलोचना और मैनेजर पाण्डेय' विषय पर एक त्रिदिवासीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई थी जिसमें प्रस्तुत प्रपत्र और व्याख्यान 'आलोचना का आत्मसंघर्ष' नाम से वाणी पकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक में संकलित हैं.इस संगोष्ठी में मैंने आदरणीय पाण्डेय जी में अपनी आलोचना सुनने का अपार धीरज देखा था.आशा है कि कि वे इसको भी हँस कर उड़ा देंगें और जल्दी स्वस्थ होकर पुन: अपने काम में लग जाएंगे.

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  9. घटिया लोग इसी तरह की हरकत कर सम्मानित लोगों की अवमानना की कोशिश करते रहते हैं। प्रो. पांडेय की अखिल भारतीय प्रतिष्ठा है और यह प्रतिष्ठा उनके निरन्तर संघर्षों का परिणाम है जो उन्होंने सामाजिक विषमता, जातिवाद, धर्मान्धता आदि के विरुद्ध किया है। हमारे सामाजिक ढांचे में बहुत कुछ ऐसा है या ऐसा करना पड़ता है जो हम नहीं चाहते। यह कोई कुकृत्य नहीं और नहीं कोई अपराध है जिसे लोगों ने तमाशा बना डाला है। उनकी कीर्ति अक्षय है। ऐसी हरकतों से उनको ओछा सिद्ध करना आपराधिक कर्म है। स्थितियों को समझे बिना टिप्पणी करना कत्तई उचित नहीं।

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  10. मैं सहमत हूँ। ऐसा करके कोई किसी के जीवन की बौद्धिक कमाई नहीं छीन सकता। हालांकि लेफ़्टिस्ट लिबरल या बुर्जुआ करार देकर लोेखकों को अपमानित करते रहे हैं। पी सी जोशी उदाहारण हैं।

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  11. रेखा ने बिल्‍कुल ठीक एतराज उठाया है, मैनेजर पाण्‍डेय जैसे सज्‍जन और सम्‍मानित लेखक पर इस तरह की दुर्भावनापूर्ण हरकत वाकई निन्‍दनीय है।

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  12. यह घटिया और स्तरहीन आरोप है। यह विरोध का कोई मुद्दा ही नहीं। उन्होंने अपनी पत्नी का मान रखा जो रखना ही चाहिए था।

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  13. अनूप पांडेय तो जैसा है, वैसा ही रहेगा ; लेकिन जिन लोगों ने हायतौबा मचाई कि एक प्रतिष्ठित मार्क्सवादी साहित्यकार को ऐसा नहीं होना चाहिए,असली अपराध उनका है -- चोट उनकी कुठाँव लगी है।यह पीछे से हमला करना ही कहें,कायरता और अनैतिक कृत्य भी कहें।
    रही बात पांडेय जी की,हमलोग कई दशक से देख रहे हैं -- वे विजेता बनकर ही निकलेंगे। रेखा की चिंता बेहद स्वाभाविक है।

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  14. वे हमारी भाषा के महत्त्वपूर्ण लेखक-विचारक हैं। वे जल्दी स्वस्थ हों, यही कामना है।

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  15. आदरणीय रेखा जी । मैं आपकी प्रतिक्रिया से सहमत हूँ । पाण्डेय जी को बचपन से ही पढते रहने के बाद सिलचर के एक सेमिनार व शाहजहाँपुर में मेरी गहरी मुलाकात हुई । जहाँ इस संबंध में मेरी उनसे बातचीत भी पहले ही हुई थी । मेरा प्रश्न था कि 'आप प्रगतिशीलता और आस्था के संबंध को किस रूप में देखते हैं।'
    वास्तव में यह खोखली मानसिकता और आत्मप्रचार का युग है, जहाँ अपने प्रचार के आगे दूसरे के भावों को बेरहमी से कुचलना अपनी जीत समझी जाती है ।

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  16. इस तरह के फोटो को प्रसारित करके अनूप पाण्डेय, ये कौन हैं? ने अनुचित किया है। किसी दूसरे की तस्वीर गलत इरादे से पोस्ट करना गलत है। उन्होंने जहा जहाँ फोटो डाली वहां वहां माफ़ी मांगनी चाहिए। आदरणीय मेनेजर सर बहुत अनुभवी और प्रतिष्ठित हैं, उनकी छवि कोई क्या गिरा सकता है। यह फोटो जब सबसे पहले मैंने फेसबुक पर कही देखी तो इस पर टिप्पणी करना भी मुझे ज़रूरी नहीं लगा। ऐसे लोग खुद ही एक्सपोज़ हो जाते हैं। मानहानि के मुक़दमे का रास्ता छोड़िये, लेकिन अनूप पाण्डेय इस पर क्षमा अवश्य मांग लें और सीख ग्रहण करे।

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  17. मेरी बात:
    आह! जबसे मैनेजर पांडेय फ़ोटो विवाद हुआ है तब से मैं ये सोच रहा हूँ कि काश मेरे पास टाइम मशीन होता तो मैं पीछे जाकर सबकुछ ठीक कर देता। वे रिश्ते में बड़का बाबूजी लगते हैं; जब गांव की पूजा समारोह का फोटो मैंने उत्साह और बचपने में डाला तो मुझे पता न था कि मेरी सीधी बात को लोग कैसे तोड़ मरोड़ कर तिल का ताड़ बना देंगे। हिंदी के बहुप्रसिद्ध आलोचक पांडेय जी के बारे में ऐसे ऐसे लोगों ने अनर्गल बातें बोलीं जो उनके सामने खड़े होने की हैसियत भी नहीं रखते। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मैं इस विवाद के बाद इतना आहत हूँ कि रात में दो घंटे की नींद भी शायद ले पाता हूँ। हर दिन आत्मग्लानि और क्षोभ से मन बोझिल होता जा रहा है। जब मेरी ये स्थिति है तो बड़का बाबूजी की क्या हालत होगी जो अपने 76 वें साल में हैं। मैं एक बात जो सबको बता दूँ कि उस दिन पांडेय जी से मेरी कोई बातचीत नहीं हुई थी, जो मैंने नासमझी में लिखा वह गाँव के लोगों की राय थी। यही मेरी सबसे बड़ी भूल थी कि मैंने ना मैनेजर पाण्डेय से पूछा और न इस भोलेपन का अंज़ाम सोचा और डाल दिया सोशल मीडिया पर और मौक़ा दे दिया उन सभी लोगों को जो कुंडली मार कर बैठे थे कि जब मौका मिले और तब विष उगल दें. इसी वजह से मैंने सोशल मीडिया से दूरी बना ली है।
    बड़का बाबूजी कितना आहत है ये मुझे इसी से महसूस होता है कि मैं चैन से अपना काम नहीं कर पा रहा हूँ, हमेशा दिल दिमाग़ ग्लानि से भरा रहता है. शायद ये मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी भूल है और सीख भी कि दुनिया बड़ी ज़ालिम है, ये आपको जख़्म भी देती है और नमक भी रगड़ती है। मैं मैनेजर पांडेय (बड़का बाबूजी) से उनके बड़े से परिवार का छोटा नालायक़ लड़के की हैसियत से माफी मांगता हूं कि मेरी नादानी की वजह से उन्हें इतना दुख और क्षोभ झेलना पड़ा। 😢🙏

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  18. रेखा पांडेय जी,
    पूजा में बैठने से मार्क्सवादी आस्था धूल नहीं जाती है और उसके लिए जो स्पष्टीकरण माँग रहे हैं, उन बेचारों के लिए मार्क्सवाद, प्रगतिशीलता बस यही है कि धार्मिक आस्था को त्याग दें और जो इस आस्था को पालते हैं, उन्हें बलात् अपनी आस्था में दीक्षित करें। यह तानाशाही और उस पुरुष वर्चस्व वाद का परिणाम है, जिसमें परिवार में मुखिया पुरुष की मान्यताओं, इच्छाओं और समझ के आगे अन्य सदस्यों की मान्यताओं व समझ का कोई मोल नहीं होता है। आदरणीय मैनेजर पांडेय जी ने लोकतांत्रिक मूल्यों को महत्त्व दिया है । यह कोई बड़े हृदय का व्यक्ति ही कर सकता है कि जिसमें स्वयं का विश्वास नहीं, उसे भी अन्य के सम्मान और भावना के लिए कर लिया जाए। बस, यही कि जो असंयमित टिप्पणियां कर रहे हैं, वे उपेक्षा योग्य हैं।
    प्रवीण पंड्या
    प्रवीण

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  19. मूर्ख है वे लोग जिन्हें मैनेजर पांडे को ब्राह्मणवादी सिद्ध करने के लिए भागवत कथा के फोटो की जरूरत है .जिस मत्सर से पांडे जी तुलसीदास को प्रतिक्रियावादी कहने के कारण मुक्तिबोध पर आक्रमण करते है वही काफी है .जब ज्यां ब्रोदिला ने ९/११ हमले के बारे में कहा कि यह हमला अमेरिका चाहता था तब विवाद हुआ लेकिन वह सच कथन था .उसी तरह यह हमला मैनेजर पांडे चाहते थे .विक्टिमहुड का सुख अद्भुत है .केस से डर से बेनामी टिप्पणी .अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अपनी अपनी परिभाषा है .लेकिन कैसा भी मनुष्य हो उसे बीमार कर देना गलत है .मैनेजर पांडे के विद्वता के कारण नहीं (वह है नही .हेजेमनी प्राय मेरिट के रूप में परिभाषित और पहचानी जाती है ) बल्कि ह्यूमन डिग्निटी के कारण उनके शिफ़ा ए कुल्ली की प्रार्थना है .

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  20. आदरणीय प्रो. मैनेजर पाण्डेय के बारे में उनके विरोधियों द्वारा पिछले दिनों फेसबुक और उसके बाहर जो कुछ भी लिखा और कहा गया है वह उनके शुभचिंतकों के लिए भी बहुत ही दुखद और असहनीय रहा है. आज स्वार्थी लोग उनके बारे जो कुछ भी कह रहे हैं उससे चिंतित होने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए. उनका लेखन, व्यवहार और सम्पूर्ण चिंतन उनके पक्ष को स्पष्ट करने में सक्षम है.

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  21. अरविन्द कुमार16 जून 2017, 9:01:00 am

    मैनेजर पांडे जी को मैं लगभग पिछले पैंतीस सालों से जानता हूं। कई गोष्ठियां, कई समारोह, कई सम्मेलनों में उनके साथ रहा हूं।...मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है।...वे एक महान व्यक्ति हैं। अद्वितीय मार्क्सवादी आलोचक तो हैं ही।

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  22. आपने रेखा जी के प्रतिवाद लगा कर अच्छा किया । बात बेबात किसी बात को इतना तूल दे देना और किसी को अपमानित कर देना कुछ लोगो का शगल है । हम अभी इतने उत्तर आधुनिक नही हुए है कि लोकजीवन के किसी आयोजन से विरत हो जाय । वहः हमारे जीवन।का हिस्सा है । पांडेय जी आदरणीय है और अपने ढंग की बेहतर आलोचना लिखी है । वहः स्वस्स्थ रहे यही कामना है ।

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  23. रेखा पाण्डेय'19 जून 2017, 9:11:00 am

    लइया लगाई बहू बर तर खाढ़! (नाटकीयता की पराकाष्ठा)

    अनूप पाण्डेय का पोस्ट (माफीनामा) देखकर जितना अच्छा लगा उससे ज्यादे दुःख हुआ! प्रसिद्धि की महत्वाकांक्षा इतनी छोटी उम्र में आदमी को इतना गिरा सकता है यह अकल्पनीय है। जिस चालाकी और षणयंत्र के तहत अनूप ने फेसबुक पर अपना पहला पोस्ट शेयर किया उससे कहीं ज्यादा चालाकी से माफ़िनामा तैयार किया। फेसबुक-आंदोलन की सूचना मिलने के बाद मैंने अनूप पाण्डेय को फोन किया। पहले तो उसने फोन नहीं उठाया लेकिन कई बार फोन करने के बाद दिनांक 8/6/2017 को सुबह 10 बजे के आप-पास बात हो पाई। मैंने उससे पूछा कि "तुम्हारी पिता जी कोई बात हुई थी, मुझे Yes और No में उत्तर दो।" उसने कहा कि 'नही।' मैंने कहा कि "फिर तुमने यह सब क्यों लिखा?” उसने कहा कि दीदी गलती हो गई। उसी दिन मैंने उसको यह सुझाव दिया कि "यदि तुम्हें लगता है कि तुमने गलती की है तो अपने फेसबुक पर आज और अभी एक स्पष्टीकरण लिखो और यह भी लिखो कि तुमने जो कुछ लिखा है वह सब झूठ है। यदि तुमने ऐसा नहीं किया तो मैं तुम पर मानहानि का केस करूँगी।" उसको लगा कि मैं सिर्फ ऐसा कह रही हूँ। अतः फेसबुक पर कोई स्पष्टीकरण तो नहीं लिखा लेकिन फोन रखने के कुछ देर बाद उसका एक मैसेज आया जिसमें लिखा था कि "अब चिन्ता की कोई बात नहीं अब स्थिति थोड़ी सुधरी है। अब ज़्यादातर लोग सकारात्मक लिख रहे हैं। रही बात नकारात्मक की तो मैं और मेरे दोस्त सबका बवाब दे रहे हैं।" मुझे नहीं पता कि इस रण में उसके कौन-से दोस्त उसका साथ दे रहे थे। पिता जी का स्वास्थ्य थोड़ा सुधरने के उपरांत मैंने अपने वकील से बात करके समालोचन पर उपर्युक्त पोस्ट डाला। तब अनूप ने बिहार और दिल्ली से न जाने कितने लोगों से मुझे और पिता जी को फोन करवाया। दिनांक 15/6/2017 को सुबह कमलेश मिश्रा (आँखों देखी के पूर्व रिपोटर) ने उसको सुझाव दिया कि " तुम एक लाईन में माफी क्यों नहीं माँग लेते हो।" तब बकौल कमलेश मिश्रा अनूप ने कहा कि "मेरा फेसबुक एकाउन्ट डिएक्टिव है और चार दिन बाद ही एक्टिव हो पाएगा।" लेकिन जब मैंने अपना पोस्ट डाला तब शाम को ही उसका यह नाटकीय पोस्ट आ गया। अब आप स्वयं तय कर सकते हैं कि वह कहाँ खड़ा है।
    सभी साहित्य प्रेमियों और विद्वानों से मेरा विनम्र निवेदन है कि आज हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं उसमें अनेक ऐसे लोग हैं जो हमारी एकता और प्रतिबद्धता को तोड़ने के लिए सक्रीय होते रहेंगें, समाज के ऐसे लोगों से सावधान रहने की जरूरत है।

    --
    Rekha pandey
    Assistant Professor (Hindi)
    Head Office
    Rashtriya Sanskrit Sansthan (Deemed Central University),
    56-57, Institutional Area, Janakpuri
    New Delhi, India-110058

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