मंगलाचार : घनश्याम कुमार देवांश








 



आज आपके समक्ष प्रस्तुत है युवा कवि घनश्याम कुमार देवांश की कुछ कविताएँ. उन्हें उनकी कविता पाण्डुलिपि 'आकाश में देह'  के लिए  भारतीय ज्ञानपीठ का वर्ष 2016 का नवलेखन पुरस्कार मिला है. 



घनश्याम कुमार देवांश की कविताएँ                         






सभ्यता, चूहे और मनुष्य


मैं मनुष्य को चूहों में बदलते देख रहा हूँ
चूहे जिन्हें अनाज के सिवा कुछ नहीं चाहिए
उनकी अनंत कालजयी भूख
उनके दांतों में समा गई है
जिसे लिए वे भटक रहे हैं
हालाँकि ये सही है कि उनसे बचने को
पाली गई हैं मोटी, फुर्तीली, चालाक बिल्लियाँ
लेकिन ये बिल्लियाँ एक दिन नाकाम साबित होंगी
आदमी को चूहों से बचाने में

वे आदमी की शक्ल में चूहे हैं
जो चूहों को मारकर खा रहे हैं,
क्या तुम्हें ये देखकर खौफ नहीं होता
क्या तुम्हारी हड्डियों में कंपकंपी नहीं पैदा होती,
चूहों के भूखे नुकीले दांतों को देखकर
क्या तुम्हें सिहरन नहीं होती

यदि नहीं, तो इसे स्कूलों के सिलेबस में शामिल करो,
चूहों के बीच जाकर रहो और सोचों कि उनकी भूख
का जिम्मेदार कौन है
बंद करो पत्थरों पर चूना लगाकर दीवारें गढ़ना,
बंद करो घरों के अहाते में
खूंखार कुत्ते और बिल्लियाँ तैनात करना,
उनके बिलों पर जहर मिली
आटे की गोलियाँ डालना बंद करो
मनुष्य होकर मनुष्यनुमा चूहे
भूनना बंद करो

मैं देखता हूँ करोड़ों अरबों चूहे दल बांधकर
सुरंगे खोद रहे हैं
वे पूरे अमरीका और यूरोप में छा गए हैं,
वे नई दिल्ली और गुडगाँव के सीवरों में अपने पैने
दांत लिए आलीशान इमारतों की
बुनियाद खोद रहे हैं
संभल जाओ इससे पहले एक सुरंग तुम्हारी कालीन के पीछे
या किताबों की अलमारी में आकर खुले
वे सब कुछ चबा जाएंगे
तुम्हारे किचन की एक-एक रोटी
तुम्हारे जिस्म की एक-एक बोटी
देखना, तुम्हारे घर के ड्राइंग रूम में
एक लाश पड़ी होगी जिसे चूहे कुतर रहे होंगे
और तुम ये सोचकर अपने को जगाने की कोशिश कर
रहे होंगे कि ये बस एक बेहूदा सपना है

सबकुछ कुतरकर खा लेने के बाद वे तुम्हारी तरफ बढ़ेंगे
तब तुम अपना आखिरी हथियार चलाओगे
तुम उन्हें संविधान और कानून
की पोथियाँ दिखाओगे
जिसे आजतक तुम उनसे बचाते आए हो
तुम जोर-जोर से संविधान की धाराएँ पढ़ोगे
लेकिन वह मौत के मर्सिए में बदल जाएगा
वे तुम्हारे सामने एक-एक पन्ना कुतरकर निगल जाएंगे
उनके चेहरों पर एक भयानक
और वीभत्स मुस्कान होगी
जिसके आगे कुछ नहीं बचेगा

तुम्हारी बनाई सभ्यताएँ चूहे लील चुके होंगे
पूरी दुनिया पर सिर्फ चूहे होंगे
उनके दांत होंगे
और होगी उनकी अनंत भूख
तुम पछताने के लिए नहीं रह जाओगे
कि काश तुमने सभ्यता,  अनाज और संविधान को
उनसे साझाकर उन्हें चूहा
हो जाने से बचा लिया होता.





ब्रेकअप
(एक)


उसे उन गलतियों के बारे में कुछ भी पता नहीं था
जो ग्लेशियर की तरह हमारे शरीरों के बीचों बीच
बिस्तर पर जम गई थीं
मैं ग्लेशियर के इस तरफ खड़ा उसकी बर्फीली आँखों
में ताक रहा था और वे सारे सबूत इकठ्ठा
करना चाह रहा था
जो मेरी गलतियों के हिस्से में आने थे
बर्फ का कोई नुकीला टुकड़ा, कोई खंजर कोई पिस्तौल   
या कोई कठोर तिकोना पत्थर
अथवा ऐसी ही कोई मामूली चीज़
जो किसी खरगोश के नन्हें शावक जैसे नर्म, मुलायम और
अबोध प्यार का कत्ल कर देने के लिए काफी होता
इतनी दूर से ये जान पाना बहुत मुश्किल था
कि क्या सबूतों को लेकर इतनी ही बैचैनी उसके भी
भीतर थी या नहीं
क्या उसने भी जुटाए थे मेरे या अपने विरूद्ध कोई सबूत
आखिर इसमें तो कोई दो राय नहीं
कि कत्ल तो हुआ ही था
और मौका ए वारदात पर
हम दोनों के सिवा और कोई था भी नहीं

इस कत्ल के दुःख पर इस रहस्य की बेचैनी भारी
पड़ रही थी कि इसे हम दोनों में से
किसने अंजाम दिया था
जाहिर है बिस्तर पर पड़ी अकेली निर्जीव तकिया तो
यह काम नहीं कर सकती थी
मैं कई रातों उसे कमरे में अकेली सोता छोड़
छत पर नंगे पाँव टहलता रहा था
ऐसा लगता था कि अब मैं
हमेशा इसी तरह बदहवास
चाँद के नीचे टहलता रहूँगा
और वह सोती रहेगी खामोश दीवार से मुँह सटाए
तब मुझे पहली बार लगा था
कि मनुष्य मृत्यु या मृत्यु के
जैसे अन्य किसी भयानक दुःख
से भी अधिक पीड़ित किसी
रहस्य से होता है
ऐसे में वह या तो रहस्य से बचना चाहता है
या समय रहते उसे सुलझा लेना चाहता है
इसी रहस्य की पीड़ा से वह दर्शन से लेकर विज्ञान तक
जन्माने को मजबूर होता है
इसी रहस्य के कोड़े से पीड़ित वह गॉड को एक पार्टिकल में
बदलकर देखना चाहता है
और इसी के चलते टहलते हुए पृथ्वी की परिधि के बाहर
चला जाता है

वह आखिरी बार खामोश थी फोन के दूसरी तरफ
उसकी खामोशी समकालीन दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य थी
मैं डर से जितनी जोर से चीख सकता था
उतनी जोर से चीखा था-
मुझे इस रहस्य से मुक्त कर दो




(दो)

 
वह जो मुझे खो देने के भय से मुक्त हो गई
दुनिया की सबसे बहादुर लड़की साबित हुई
वह जा रही थी मुझसे दूर हमेशा के लिए
अपनी उदासी से आजाद होकर

मैं उससे लड़ा अपनी पूरी बेरहमी के साथ
हाथों में भय, याचना, क्रोध
और अपार दुःख व तनाव के हथियारों को उठाए
मैं दरअसल उसकी आजादी के खिलाफ था
जो अपनी एक मुस्कान तक के लिए मेरे रहमोकरम पर
निर्भर थी
मैं खुश था कि उसके जीवन
में छाया हुआ था बादलों की तरह
मैं जब चाहे उसकी आँखों और
होंठों पर मेह बनकर बरस सकता था
और जब चाहूँ उसे डुबो सकता था अपने प्यार के
अथाह जल में
कभी-कभी जब वह डूब रही होती थी
मैं किनारे खड़ा मुस्कुरा रहा होता था
उसे तैरना नहीं आता था, ये बात
हालाँकि मैं जानता था
फिर भी मैंने ढँक लिया था उसके जीवन में सूर्य को,
मैं चाँद तो क्या  
तारों को भी उस तक
बिना अपनी मर्जी के
नहीं पहुँचने देता था
दरअसल मैं उसे
क्रूरता की इस हद तक
प्यार करता था कि उसके वर्तमान तो क्या
अतीत और भविष्य तक को निगल लेना चाहता था

वह जब भी उदास होती मैं उसका हाथ धीरे
से छोड़कर कहता- क्या मैंने तुम्हारी आजादी
छीन ली है
वह कहीं नहीं जाती
वह मेरी छाती पर गाल टिकाए बूंद दर बूंद
रोती सिसकती
वह मुझे एक गोह की तरह जकड़ती चली जाती
कहती जाती कि तुम मुझे छोड़कर कहीं
चले तो नहीं जाओगे
मैं उसके भोलेपन पर हैरान होता
अपने आप से पूछता- क्या यह कभी संभव है

मुझे नहीं पता चला जब वह पहली बार
मेरे बिना मुस्काई होगी
जब वह एक बर्फीले पहाड़ की चोटी पर
दुनिया की ओर बाँहें पसारे खड़ी हुई होगी
जब उसे पहली बार लगा होगा कि जीवन की कल्पना
मेरे बिना असंभव बात नहीं 
मैं सोचता हूँ वह मेरे जीवन का
कितना भयानक दिन रहा होगा
उस वक्त मैं इस बात से बेखबर कहाँ रहा हूँगा
मेरी किसी बेफिक्र नींद में पहली बार उसका हाथ
मेरे हाथ से फिसला होगा
और मुझे पता नहीं चला होगा
वह अपने जूतों में उस समय सुबह-सुबह
अकेली टहलने निकल गई होगी
फूलों पर टिकी ओस उसे देख मुस्काई होगी
और सूरज ने बजाई होंगी तालियाँ
उसकी आजादी की आहट पर
क्या पता उस दिन उसने प्यार को एक लंबी
बीमारी की तरह देखा हो
और सोचा हो उससे मुक्ति के बारे में 

जब उसने आखिरी बार अपने सूखे
होंठों से मेरे माथे पर चूमा था
उस दिन को याद करके आज सिहरन होती है
कि हमें सचमुच कई बार आभास तक नहीं होता उन चीजों का
कि दरअसल वह आखिरी बार जीवन में घट रही हैं
मैं सचमुच नहीं जान पाया था
जब उसने जाते हुए मुझे आखिरी बार मुड़कर
देखा था
वे आँखें आज भी मुझे अपने कंधे पर रखी मालूम
होती हैं,
मैं उन्हें महीनों पढ़ता रहा लेकिन उनमें
छुपे उस अंतिमको नहीं जान पाया
वह यह सब कर पाई क्योंकि वह एक बहादुर लड़की थी
बहरहाल, इस कहानी की सीख यही है
कि एक बहादुर लड़की से प्यार करना उतना
ही खतरनाक काम है
जितना कि एक कमजोर लड़की से प्यार करना
अंत में, यदि आप गणित में अच्छे हैं
तो प्रमेय लगाकर आसानी से इस नतीजे पर
पहुँच सकते हैं कि
प्यार करना एक बेहद खतरनाक काम है.






पूर्व प्रेमिकाएँ


मेरे बाद
वे उन छातियों से भी
लगकर रोई होंगी
जो मेरी नहीं थीं
दूसरे चुंबन भी जगे होंगे
उनके होठों पर
दूसरे हाथों ने भी जगाया होगा
उनकी हथेलियों को

उनकी लोहे सी गरम नाक की
नोक ने
और गरदनों को भी दागा होगा
उन्होने फिर धरी होगी
मछली की देह
किसी और के पानी में

वे किसी और के तपते
जीवन में भी पड़ी होंगी
पहली बारिश की बूंद सी
उनके सुंदर कुचों ने फिर दी होगी
उठते हिमालय को चुनौती

मुझे नहीं पता
लेकिन चाँद सुलगता रहा होगा
और
समुद्र ने अपने ही
अथाह जल में डूबकर
जरूर की होगी
आत्महत्या की कोशिश
जब उन्हें पता चला होगा.
__________________________________

घनश्याम कुमार देवांश
2 जून, 1986 (गोण्डा, उत्तर प्रदेश) 
स्नातकोत्तर हिन्दी साहित्य, दिल्ली विश्वविद्यालय  
पत्र – पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित
डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म 'गांधी का चंपारण' के लिए स्क्रिप्ट सम्पादन 
संप्रति-
तवांग, अरुणाचल प्रदेश की समाजसेवी संस्था- 'झाम्ट्से गटसल चिल्ड्रेन्स कम्यूनिटी' में दो वर्षों तक अध्यापन कार्य के बाद फिलहाल डी.पी.एस. इंटरनेशनल स्कूल, गुड़गाँव में बतौर हिन्दी अध्यापक कार्यरत
संपर्क-
431, पी एंड टी कॉलोनी
आर. के. पुरम सेक्टर – 6,नई दिल्ली – 110022
फोन -9582532501  / ई मेल ghanshyamdevansh@gmail.com

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  1. अच्छी कविताएं। शुभकामनाएं और बधाई।

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  2. काश तुमने सभ्यता, अनाज और संविधान को
    उनसे साझाकर उन्हें चूहा
    हो जाने से बचा लिया होता.
    So true. I am glad that our new gerenation is thinking about restructuring the society. Its all in our mind. Thank you
    Tayyaba

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  3. बहुत ही सुंदर कविताएं, मन को छूती हुई,

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