बोली हमारी पूरबी : असमिया कविताएँ : समीर ताँती

पेंटिग : Neeraj Goswami SMALL GREEN


समालोचन के स्तम्भ ‘बोली हमरी पूरबी’ में भारतीय भाषाओँ के कवियों का हिंदी अनुवाद   आप पढ़ते रहे हैं.  अभी कुछ दिन पहले  मराठी के युवा कवि रफीक सूरज की कविताओं का हिंदी अनुवाद आपने पढ़ा.  आज असमिया के महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठा प्राप्त कवि समीर तांती की कुछ कविताओं का अनुवाद ख़ास आपके लिए. अनुवाद शिव किशोर तिवारी का है. कविताओं की तरह अनुवाद भी उम्दा है. 

ताँती की कविता उनकी चाय बागानी और गिरमिटिया मजदूर परिवार की पृष्ठभूमि पर लौटकर बार-बार आती है. स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी असम के चाय बागानों के मजदूर अंग्रेजी वक्त की अमानवीय परिस्थितियों में ही जीते हैं. यह दर्द इस कविता में और यहाँ अनूदित अन्य कविताओं में बार-बार प्रकट हुआ है. पर इस कविता में आशा का स्वर है और एक काव्य-दृष्टि की सूचना भी.


समीर ताँती (সমীৰ তাঁতী)
हमय, आहि आसों मोलइ बाट सोवा
समय, आ रहा हूँ,  इंतजार करो मेरा                                      

असमिया से अनुवाद : शिव किशोर तिवारी 




(1)

समय,  इंतजार करो मेरा,

आ रहा हूँ,
दुर्गम गिरि-कंदरा से,
जलमग्न प्रांतर से,
मरुभूमि को पार कर,
समुद्र के किनारे-किनारे
अँधेरे रास्तों से
आ रहा हूँ,
परित्यक्त संतान मैं,
माँ का नाम भारतवर्ष.






(2)

सुर के मतवाले वे सब

मेरे प्राणप्रिय देव-देवी,
ओठों पर हरियाली का गाढ़ा नशा,
चाँदनी भी ठहर जाती है
रंग-बिरंगी धज देख,
तारे बात करते हैं,
क्या सुनो,
क्या सुनो आज?
सपनों के द्वार पर
विराट् जीवन का गान,
दो आँखों में सदी के लिए आमंत्रण.






(3)

समय, इंतजार करो मेरा

तुम्हारे मृतक को जानता हूँ मैं,
उस अनाम प्यास की बात भी जानता हूँ,
जानता हूँ तुम्हारे इंद्रजाल के बारे में,
लोकोत्तर चीजों का खजाना जो,
और जानता हूँ उस अभागे शिशु की बाबत
जिसके ऊपर पहरा दे रहे थे
रास्ते के कुत्ते;
वह जाग गया है
तुमसे प्रश्न पूछने को.







(4)

तुम्हारी रक्तवर्णा नदी को

पार कर
माँ की आँखों के आँसू पोछ
आ रहा हूँ
झोंपड़ियों के पास
झुंड भर नंगे बच्चों को साथ लिए.
देखो क्या मंत्राविष्ट वनस्पति तुम्हारी है,
सुंदर फलों और फूलों का निवेदन,
बाँसुरी बजाती हवा,
विनत घास और पत्ते,
सभी प्रकार के भय से मुक्त कर
सजा रखा है
तुम्हारा सतरंगा तोरण.







(5)

समय, इंतजार करो मेरा,

तुम्हारे लिए ला दूँगा नीहारिका,
धुंध से ढका झरना
पत्थरों का शिल्प,
मशीनों का तत्त्वज्ञान
आँधी की आदिकथा
गणित की बुनियाद
और दूँगा युवतियों के केशों की
मत्त करने वाली गंध,
अक्षरों का नक्षत्र मंडल.







(6)

देखे हैं मेरी माँ की उँगलियों में

आशा के रूप, रंग, शब्द ?
उनमें ब्रह्मांड का स्पर्श है,
ममता की वृष्टि है,
फसलों की मादकता है.
मेरी माँ,
मेरी जन्म की दु:खियारी माँ,
कौन माँ को दे सकता है विषाद अब ?
मैं आ रहा हूँ
हजार सदियों को समेट
शाम के पहले-पहले.





(7)

अंधेरे के युग की यातना सहने के बाद

माँ ने कहा मुझसे,
इस मिट्टी की साधना करो,
सूर्य के साथ चलो,
चाँदनी के देश जाओ,
मृतकों को सम्मान दो,
जीवितों को स्वप्न,
मृत्यु का सामना करो,
समय का हाथ पकड़ो.






(8)

समय इंतजार करो मेरा,

मैं आ रहा हूँ
शब्द के अश्व पर सवार
बादलों को हटाकर,
मृत्यु से जीवन की ओर,
हताशा से आशा की ओर,
हँसो,समय, हँसो,
दिल में बजे वंशी,
महाशून्य मुखर हो,
धुएँ के उस पार तक उड़ जाय
प्राणों का कपोत-दल.
_____________

शिव  किशोर  तिवारी  
(१६ अप्रैल १९४७)
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एम. ए.
२००७ में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त.
हिंदीअसमियाबंगलासंस्कृतअंग्रेजीसिलहटी और भोजपुरी आदि भाषाओँ से अनुवाद और लेखन.

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  1. Arun-ji....you're doing a great job...Sameer along with another poet Sananta Tanti wrote some intense poems of the community they hailed from, some graphic truths...in their 'mature' phase, both got into the 'mainstream' wagon...and both evoke distinctive charm...Sameer Tanti often lapsed into speech act of resistance and refusal...thereby offering us a body of poems that still elicit our interest in context of the socio-political scenario obtaining in the state....congrats, you and the translator...

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  2. कविता के छठे हिस्से की पहली पंक्ति में -- देखे हैं मेरी माँ की उँगलियों में -- की जगह -- देखे हैं अपनी माँ की उँगलियों में -- होगा। कविता शानदार है और उसका अनुवाद भी अप्रतिम। काश ऐसे ख़ूबसूरत अनुवादक जमकर अनुवाद करते और हम हिन्दी वालों का आँचल दुर्लभ असमिया कविता के हीरे-मोतियों से भर देते।

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  3. बड़ी ताज़गी लग रही है इन कविताओं में। वर्तमान के भेड़ियाधसान से अलग कोमल कांत। साथ ही ज़मीन पर उगी हुई। हरी भरी वनस्‍पति की तरह।

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  4. तिवारी जी के अनुवाद बहुत स्वाभविक है । उन्होंने कविता के वेब लेंथ को पकड़ा है ।

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  5. सुन्दर. हमारी भाषाओं के पास अद्भुत साहित्य सम्पदा है. समीर ताँती की कविताएँ एक बड़े फलक पर देश और समाज के प्रश्नों से मुख़ातिब होती हैं. तिवारी जी के समर्थ अनुवाद में इन कविताओं से गुज़रना एक अनुभव है. समीर जी, तिवारी जी और अरुण देव भाई को बहुत धन्यवाद.

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