नवनीत पाण्डेय (December 26, 1962) का ‘सच के आस-पास’ शीर्षक से कविता संग्रह प्रकाशित है. ‘1084वें री मा’ नाम से महाश्वेता देवी के चर्चित बांग्ला उपन्यास का राजस्थानी में उन्होंने अनुवाद किया है. इसके साथ ही नाटक, कथा साहित्य आदि में भी उनकी गति है.
आकार में छोटी पर असर में बड़ी उनकी १२ कविताएँ आज आपके लिए.
नवनीत पाण्डेय की कविताएँ
राजा को सबसे अधिक प्रिय है
१.
तुम्हारी पोल
खुल चुकी है
कब मानोगे!
काठ की हांडी
जल चुकी है
कब जानोगे!.
२.
तुम जो
तुम हो
तुम क्या हो
बताओ तुम!
३.
वह जो
वह है
वह नहीं दिखता
जो है वह.
४.
धूप खड़ी रहती है
नित धूप में
तलाशती छांह
जो उसे
कभी
कहीं नहीं मिलती.
५.
राजा ने मुनादी
करायी है
प्रजा को देनी
होगी परीक्षा
कि वह उसकी
प्रजा है
वह उसके राज की
ही प्रजा है
जांचा जाएगा
उसके गले में
राज- राजा का
बिल्ला
है कि नहीं
लिया जाएगा
डीएनए
शिक्षालयों में
जाएंगे
राजा के वफादार
सिपाही
पूछेंगे
शिक्षकों से
वे पढ़ा रहें है
कौन से पाठ
कोतवाल पकड़ेंगे
सरेआम
डाल देंगे
कारागृह में
बेगुनाहों को
राजा का मानना
है
निर्भय राज के
लिए
प्रजा में भय
जरूरी है
प्रजा को
राजा का हुकुम
मानना ही होगा
जो भी हुकुमउदुल
नाफरमान हैं
उसके लिए सीधे
सीधे
सजा ए मौत या
देश निकाले का
फरमान है.
६.
मैं एक चेहरा हूं
जिसे तुम देखते हो नित
पहचानते हो
पुकारते हो
दिए हुए नाम से
यह नाम
जो केवल मेरे चेहरे का नहीं है
मेरे जैसे कई चेहरों का होगा
चेहरो पर नाम एक हैं
लेकिन फिर भी
सबके चेहरे अनेक हैं.
७.
एक और एक
दो
ग्यारह
जीरो
कुछ भी हो सकता है
सही गणित आनी चाहिए.
८.
तुम्हारी हंसी
तुम्हारी हंसी है
नहीं हंस सकता मैं
कभी भी
तुम्हारी हंसी.
९.
तुम में
तु
म
दोनों जुड़ते हैं
तब होते हो तुम
तुम.
१०.
हरा देखते देखते
हरा हो गया मैं
भरा हो गया मैं.
११.
राजा कहता है
खुद को वैरागी
राजा को आता भी
नहीं
कोई राग
लेकिन राजा ने
तो
पाले हुए हैं
कई राग
राजा को सबसे अधिक प्रिय है
देश राग
राजा जब भी
दिखता है
उसके होठों पर
होता है
देश राग
सब सुनते हैं
सुन कर हंसते
हैं
क्योंकि जब राजा
गाता है
उस में देश राग
के सुर नहीं लगाता है
गलत समय गलत
आलाप
तान, राग उठाता है
वर्जित सुर
लगाता है
फिर भी गाता
जाता है
खुद ही वाह वाह
करता है
गाल फुलाता है.
१२.
मैं एक देह हूं
तुम भी एक देह
बाकी जो कुछ भी है
एक मरीचिका.
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नवनीत पाण्डेय
सम्पर्कः ‘प्रतीक्षा’ 2- डी- 2, पटेल नगर, बीकानेर- 334003 मो.न. 9413265800
e-mail : poet.india@gmail .com
उम्दा रचनाएं। सहज सम्प्रेष्य। 1, 5, 6, 7 और 11 नम्बर वाली कविताएँ ख़ास पसंद आईं। 5 और 11 में राजा हैं और हम प्रजा भी, अतएव, ये कविताएँ ख़ास में भी खासमखास लगीं।
जवाब देंहटाएंछोटी कविताएं उनकी रंगमंचीय 'संवादी' अभिव्यक्ति हैं । चुटीली , भाषा का नपा तुला प्रयोग । अभिव्यंजना और व्यंग्य का तडका इन कविताओं को 'घाव करैं गम्भीर' की कटेगरी मे ले आता है । बहुत बहुत धन्यवाद । नवनीत जी का चुटीला संसार दिखाने के लिए
जवाब देंहटाएंनवनीत जी की कविताएं प्रभावित करती है। ‘सच के आस-पास’ शीर्षक से कविता संग्रह के बाद ‘छूटे हुए संदर्भ’ तथा ‘जैसे जिसके धनुष’ दो संग्रह कवि के प्रकाशित हुए हैं।
जवाब देंहटाएंआकार में छोटी होने के बावजूद भी बड़े सघन अर्थों वाली कविताएं हैं। खासकर राजा वाली कविता। इन कविताओं में एक विलक्षणता जो दिखाई दे रही है वह ये कि बिना राजा का नाम लिए कई कविताएं राजा को चेतावनी देती नज़र आ रही हैं। उदाहरण के लिए पहली कविता देखिए.......
जवाब देंहटाएं'तुम्हारी पोल
खुल चुकी है
कब मानोगे!
काठ की हांडी
जल चुकी है
कब जानोगे!'
यह कविता राजा को होशियार करती है कि तुम्हारी पोल खुल चुकी है अब, बहुत हैरान कर चुके तुम। हम प्रजा ज़रूर हैं पर हमारी आँखे खुली हैं। हमें तुम्हारी सारी करतूतें साफ़ साफ नज़र आ रही हैं कि कैसे तुम जब चाहते हो एक और एक मिला कर ग्यारह कर लेते हो ।
या फ़िर एक अन्य कविता कि
''तुम्हारी हंसी
तुम्हारी हंसी है
नहीं हंस सकता मैं
कभी भी
तुम्हारी हंसी''
इस हंसी में भी किसी क्रूर राजा की हंसी का बिम्ब दिखाई देता है जिसकी नकल आम जनमानस के लिए संभव नहीं। इसलिए नहीं हंस सकता मैं कभी भी ....तुम्हारी हंसी।
नवनीत पांडेय जी को बधाई.....
बढ़िया है भाई
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