कथा - गाथा : नीलम कुलश्रेष्ठ








रत्नागिरी की सुहानी शिन्दे का तकिया कलाम है – ‘पकड़ कर चलो तो’. एक साथ हाथ पकड़कर चलने से ही संघर्ष में सफलता मिलती है यह उसे उसके पिता ने समझा दिया था. 

मुंबई की अपनी खास हिंदी में कथाकार नीलम कुलश्रेष्ठ ने बिल्डर के खिलाफ एक स्त्री की कथा लिखी है.

  

पकड़ कर चलो तो                                 
नीलम कुलश्रेष्ठ 




मी सुहानी ----तुमने सामने फ्लैट वाली आशा मैडम को बोला होगा मेरे कू् भेजने को बर्तन भाड़ा करने को ----कटका  करने को. क्या है कि तुम कल ही मुंबई आया और आपका ईशा मैडम की बाई छुट्टी ले  गया, इशा मैडम ऑफिस गया तो काम कौन करेगा ? मी  आज का दिन  इदर  काम  करेगा, बरोबर ?”


मी पास वाली झोपड़पट्टी मे रहती. इधर अक्खा बिल्डिंग वाला लोग मुजे पिचनाता और तो और ईशा मैडम का बाबा अपनी आया के साथ आशा मैडम के घर आता है, वो भी मुजे पिचनाता है. मेरे को  तो आशा मैडम का बाबा इतना   पिचनाता है किसी से खाना नही खाता. दोपहर में मी ही उसे  उसको बालकनी में खुर्सी पर बिठाकर खाना खिलाती. अब तुम  जानो बांद्रा में बड़ा बड़ा अस्पताल है--पकड़  कर चलो तो --हिंदुजा--लीलावती-- तो हर टाइम कोई ना कोई  एंबुलेंस उदर सड़क से ही निकलता है--- पकड़  कर चलो तो -------दिन भर में चालीस -पचास एंबुलेंस निकलताईच  है ----हॉर्न  मारता पीं--पीं ---पीं ---. मी बाबा को डराती कि देख  पुलिस वाली गाड़ी हॉर्न बजाती आई-- - वो डरकर खाना खा लेता है गपागाप ----ही ---ही ---ही. मी बहुत टेनसन्  में चल रही लेकिन फिर भी तुमारा काम करेगा. पकड़ कर चलो तो --- इनसान  ही इनसान के काम आता है .
             

त पूछो  टेनसन की ----हम झोपड़पट्टी वालों का घर ही कोइ छीने तो कैईसा लगे, मी बताती पकड़ कर चलो तो ---कोई साठ एक बरस हुआ हमको उस खोली में रहते --- ही ---ही ---ही---मी अपनी बात नही करेली, मेरी उमर तो चालीस के उपर पकड़  कर चलो तो चार बरस उपर है. ही ---ही ---ही---लगती नही न, मेरे सास ससुरा को उदर रहते साठ एक बरस हुआ, जो सरकार बाद में पैदा हुई क्या अब वो जमीन उसकी हो गई ?हम लोग एक टाइम  खाना खाकर, कभी भूखा सोकर उदर बसर किया तो ज़मीन  हमारी   छीनने का हक उस बिल्डर को कौन दिया ?”


"ब मी तुमको ठीक से समझाती झोपड़पट्टी  वालों के लिए सरकार नया क़ानून बनाया कि कोई बिल्डर उनकी ज़मीन पर बिल्डिंग बनायेगा  तो कुछ फ्लैट झोपड़पट्टी वालो को  देनाहिच पड़ेगा तो सरकार बरोबर किया --------बहुत अच्छा किया ..पकड़ कर चलो तो हमारी झोपड़पट्टी में छ; सौ खोली है तो बिल्डर ने मालूम क्या  किया कि दस माले की बिल्डिंग खड़ा किया. दो सौ खोली वालों को उसमें इच फ्लैट दिया ----चलो बहुत बरोबर किया -------अच्छा किया लेकिन मालूम चालाकी क्या खेला कि उन दो सौ लोगो का बिजली का बिल, पानी के बिल व सफाई वाले के बिल का अपने नाम लिखान कर लिया ---लो बोलो ?”


"चालाकी  क्या हुआ ? -- तुम बिल्डिंग वाला कैसे समझ सकते हो?अरे वो बिल्डर हर एक फ्लैट वाला से सादे तीन हज़्ज़ार मेंटेनेंस का दर महीने नक्की करके  मांगता है. अब  बोलो फ्लैट में रहने वाला  झोपड़पट्टी  वालो की  मर्ज़ी है कि वह् अपने बच्चो का पेट भरे या बिजली  जलाये. अगर रुपया इतना  बिल्डर को  दर माह देगा तो. बच्चो को क्या खिलायेगा? पकड  कर चलो तो अब बचे कितने घर ? पूरे चार सौ  तो  बोलो-------वो  बिल्डर  हमको  तोड़ना  चाहता है तोड़ना  बोले तो हमको अलग अलग एरिया मे अलग अलग बिल्डिंग मे सत्तर खोली वालो को एक बिल्डिंग मे घर देना चाहता है. तुम सोचो  हम अलग अलग  एरिया मे रहेगे तो मीटिंग कैइसे करेंगे ? कैइसे बिल्डर की गलत बात  के खिलाफ लडेंगे ?सोचो ---सोचो कैइसे हमे वो तोड़ना चाहता है ?.


म उसको  कमप्लेन किया कि हम इस एरिया को छोड़ कर किदर भी नही जायेगा ---किदर भी नही . अब तुम देखो बिल्डर क्या किया-------कि बाजूवाली  अपनी  दस माले की बिल्डिंग से अपने गुंडों से  हम सबकी खोली पर रात मे जब सब सो जाते पत्थर फिंकवाता कभी काँच की बोतल फिंकवाता, खोली की छ्त कोई सीमेंट की तो होती नहीअब तुम सोचो  एक शराब की काँच की बोतल खोली की छत फाड़कर नीचे चली गई और मालूम उदर खोली में नीचे छ ; माह का बच्चा सो रहा था, वो  बच्चा  मरते से बचा , मान लो खोली  का बच्चा हो , आदमी हो या औरत      हो अगर उसकी जान चली गई तो बिल्डर वो बिल्डिंग की तरहा मानस बना सकता है ? नहीना !तो क्यों हमारी जान पैसे की वास्ते लेने को करता है ?मी तो तीन दिन जेल भी रह आई  .


मी तुम को बताती ,मी बिल्डर के कारण जेल गई थी .बिल्डर बोलता है की हम किसी गुंडा मवाली को नही जानता है  .तुम लोग  के पास सबूत क्या है कि हमारा गुंडा मवाली एइसा काम किया. लो बोलो----अक्खा मुंबई जानता है बिल्डर लोग का काम बिना गुंडा मवाली के चल ही नही सकता . हम झोपड़पट्टी वालो को हमारी ही ज़मीन से डंडा लेकर बे दखल करने का काम कौन करता है ?पकड़ कर चलो तो -- यहीइच गुंडा लोग. हम लोग भी सयाना हो गया है . हम लोग खोली के उपर छिपाकर एक केमेरा लगाया------अरे वही केमेरा जो छिपकर फोटो बनाता है ----क्या बोले तो--तो---हाँ, सी सी डी केमेरा .


लो बोलो तुम्हारी बातो मे मी भूल गई कि मी जेल क्यो गई थी ,एसाईच हुआ कि हम लोग को पता होता कि हमारी झोपड़पट्टी मे प्रसंग होता तो ये बिल्डर राखशस माफिक  विघ्न डालता . हम लोग नवरात्रि मे बस्ती को लाइटो से सजाया , झंडी लगाया और हम लोग माताजी की फोटो के आगे  गोल गोल  गरबा फिरता था. लड़को की ड्यूटी केमेरे के पास लगाया  जैसे ही कोई मवाली बाजूवाली बिल्डिंग से पत्थर या बोतल फेंकता , दो चार लड़का लोग जाकर उसे उसके फ्लेट से बाहर र्खींच लेता . तुम सच जानो लड़का लोग ने उस दिन पांच मवाली को केमेरे से पकड़ा.  पकड़ कर   चलो तो -----.हम पचास औरत लोग गरबा  छोड़कर , वो  केमेरा लेकर , उन पांचो को लेकर पुलिस स्टेशन ले गया ----हाँ,हाँ  बीस बाइस मरद लोग  भी साथ था .


क्या बोले तुम आंटी !बिल्डर पकड़ा गया ? अरे पुलिस कम गुंडा लोग है ? उस बिल्डर ने पुलिस को पइसा खिलाकर के केस पलटी कर दिया. पुलिस ने केमेरा का सबूत मिटा दिया और हम पर उल्टा केस कर दिया कि हम औरतो  ने बिल्डर के आफिस के पांच आदमियो को पत्थर मारे, लो बोलो ---. एफ आई आर पर औरत लोग साइन किया था तो सब  पचास औरत को अंदर कर दिया. एक पेपर वाला पत्रकार हमारे साथ था. उसकी पिटाई करके उसको अंदर डाल दिया. पत्रकार के सगे वाले तो  उसे जमानत देकर छुड़ा ले  गये पर हम गरीब की कौन जमानत करे?


मी  रत्नागिरी की है उदर गांव मे जब सबको पता लगा की मी जेल गई है तो पकड़कर चलो तो मेरी  मा,चाचा, बहिन, बहिनोई और भाई भाभी सब टिकिट का पैसा उधार लेकर रोते रोते इडर मुंबई आ गया लेकिन हम गरीब   लोग-------जमानत कौन दे ?तो बोलो, आशा मेडम मेरे को मिलने जेल आई, मैने पोबलम बताया तो उन्होने पांच हजार रुपया दिया, दूसरे घर से तीन हजार रुपया पगार का मिला तब मेरी जमानत हुई, मी तीन दिन बाद जेल से बाहरआई .


"क्या   कहा मी लीडर  के माफिक   बोलती ? ही -----ही------ही-----मी अपनी झोपड़पट्टी के महिलामंडल की सेक्रटरी हू, भाषन तो देना ही पड़ता है. मी तुम को    बताती की मेरी बाइस बरस  की बेटी कम्पूटर  पर काम करके. रुपिया कमाती है. लो बोलो वो क्या बोलती  की मम्मी तू मेइक के सामने भाषन वाषण देती है तू साड़ी चटक पहनाकर, बालो का उंचा जूड़ा बनायाकर . तभी मी तुमको लीडर माफिक लगती .


नारे !मी पड़ी लिखी किदर भी नही. मेरा  जनम ही इदर मुंबई का है . मेरा बाबा बस्ती के कोरट का काम करता था, मुझे साथ ले जाता. वो बांद्रा कोरट के सामने झोपड़पट्टी वालो के लिये सरकारी माड़ का आफिस  है. बस उदर ही वो मुझे ले जाता था. मी बचपन  से देखी, बरोबर  देखी की हम झोपड़पट्टी वालो को बिल्डर कईसा जीने को नही देते. मी अपने बापू से सीखी कईसा सरकार से अपने हाक के लिये लड़ा जाता है. मेरा बापू ने अपनी बस्ती सब गरीबो के नाम लिखान करवाकर ही दम  लिया --------लो बोलो .


क्या कहा कि पकड़ के  चलो तो मेरा तकिया कलाम ?तकिया बोले तो ?-----ओ------पिल्लो ----पिल्लो तो मी लगाती नही, मेरा गर्दन दुखने को आता है. कलम  यानि पेन उससे तो मी बस बस्ती के पेपर पर साईन कर लेती   --- ओ ------इसका मतलब ये भी नही ?.”


----अब मतलब समझ मे बात आई . मेरा बापू समझाता था कि हम झोपड़पट्टी वाला बिल्डर की व सीमेंट की बिल्डिंग मे रहनेवालो की नजर मे सिर्फ कीड़े मकोड़े है ----चींटिया है. जैसे अपुन बाल्टी पानी से चींटियो के झुण्ड को पानी की बाल्टी से पानी डालकर बहा देते  है.


“`यासा नही है ? ऐइसा ही  है. तुम फिलिम मे तो देखी होगी ----पंद्रह बीस बड़ी बड़ी काली मूंछवाला गुंडा लोग लाठी लिये , कानून का आर्डर लिये  , बुलडोज़र से झुग्गी कुचलता, साफ़ करता चलता है . देखते देखते अक्खा घर बर्बाद , ज़मीन सपाट. चाहे मरद लोग हाथ पाँव जोड़कर मना कर रहे हो , औरते रो रोकर बेहोश हो रही हों लेकिन बुलडोज़र चलेगा तो चलेगा ..



मी सही कही ना ? तुम फिल्मों में  जरूर देखी होगीएसे ही ये लोग हमारी झोंपडियो को नही, हम पर ही बुलडोज़र चलाकर हम सबको इस जमीन से ही साफ कर दें--------- नही , नही कुछ  को तो  बचाकर रक्खेंगे नही तो सीमेंट  वाले घरों में बर्तन भांडा  व कटका कौन करेगा ? इसलिये हम गरीब लोगो को एक दूसरे का हाथ पकड़ कर रखना चाहिये, हाथ पकड़कर चलना चाहिये----मेरा बापू बचपन से ही यहीच मुझको सिखाया. कलक्टर आफिस में धरना देना हो या सड़क पर झंडा लेकर जुलूस निकालना हो मेरे बापू झोपड़पट्टी वालों से कहते--- बरोबर कहते कि  एक दूसरे का हाथ पकड़कर  चलो तो  मेरो को भी  पकड़कर चलो तो-----बोलने की आदत पद गई -----मी सही  कहा न ! मी कसम खाई है कि उस   बिल्डर  की अकल ठीक करेगा बरोबर अकल ठीक करेगा -----अपना हक लेकर रहेगा ---------नही  तो  मेरा  नाम रत्नागिरी की सुहानी शिन्दे नही .

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नीलम कुलश्रेष्ठ
2-503,आकाशनिधि अपार्टमेंट/ रेदिओ मिर्ची टावर रोड/ अहमदाबाद -380015

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  1. दी, मुबारक!कहानी पसंद आई।

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  2. शीर्षक- पकड कर चलो. ...सब कुछ गहराई से आमन्त्रित करता है ...सहयोग नही प्रतिबद्धता भी है..संधर्ष के लिऐ....अंतिम व्यक्ति के अधिकार मिलने से लेकर....अन्तहीन..सामाजिक तानबाने की विचलित करने वाली..परेशानियो से निजात पाने तक.....निहायत..ही बढिया...कहानी..

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  3. बहुत सुंदर नीलम । भाषा-शैली , बिल्डर्स की मनमानीऔर असंवेदनशीलता, सभी असरदार है ।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-12-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2200 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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