स्वेतलाना एलेक्सिएविच ( साहित्य के २०१५ का नोबेल पुरस्कार ) : साक्षात्कार

फोटो : साभार M. Kabakova












8 अक्टूबर 2015 को साहित्य के नोबेल पुरस्कार की घोषणा के बाद स्वेतलाना एलेक्सिएविच के साथ जूलिया ज़ाका का टेलीफोन साक्षात्कार. रूसी भाषा में बातचीत का वाया इंग्लिश यह हिंदी अनुवाद सरिता शर्मा ने किया है.



"मैं उदासीन इतिहासकार नहीं हूँ. मेरी भावनाएं हमेशा उससे जुड़ी होती हैं."         
स्वेतलाना एलेक्सिएविच



जूलिया ज़ाका :  
हैलो!  नोबेल पुरस्कार की आधिकारिक वेबसाइट Nobelprize.org से मैं जूलिया ज़ाका,   आपको इस वर्ष के साहित्य के नोबल पुरस्कार प्राप्त करने की बधाई देते हुए मैं सम्मानित महसूस कर रही हूँ.

स्वेतलाना एलेक्सिएविच
बहुत- बहुत धन्यवाद!

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जूलिया ज़ाका
शायद आपको पहले से ही पता चल चुका होगा कि आपको पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, क्या आपको इसकी जानकारी है?

स्वेतलाना एलेक्सिएविच :  
हाँ, मुझे इस बात का पता है, लेकिन अभी भी यह विश्वास करना मुश्किल है कि यह सच है! (हंसते हुए)

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जूलिया ज़ाका
हम यह जानते हैं कि इस वक्त आप संवाददाता सम्मेलन के लिए निकल रही हैं.

स्वेतलाना एलेक्सिएविच
हाँ, टैक्सी मेरा इंतजार कर रही है

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जूलिया ज़ाका
आशा है मेरे कुछ सवालों के जवाब के लिए आप 2-3 मिनिट दे सकेंगी.  इस साक्षात्कार को अभिलिखित किया जाएगा और बाद में वह इस वर्ष के अन्य पुरस्कार  विजेताओं के  साक्षात्कार के साथ हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध होगा.

स्वेतलाना एलेक्सिएविच
हां, जरूर.

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जूलिया ज़ाका :
पुरस्कार को लेकर आप कैसा महसूस कर रही हैं ? या इस तरह के सवाल पूछना अभी ज़ल्दबाज़ी तो नहीं.

स्वेतलाना एलेक्सिएविच
(हंसते हुए) सच में ऐसा है, मगर मैं बता सकती हूँ कि अभी कैसा लग रहा है. बेशक, यह एक खुशी की बात है, इसे छिपाना अजीब होगा.

लेकिन इसके साथ इसने मुझे बेचैन भी कर दिया है, क्योंकि इसने रूसी साहित्य के सभी नोबेल पुरस्कार विजेताओं- जोल्जिनिसिन, बुनिन, पास्टरनाक आदि की महान परछाइयों को पुनर्जीवित कर दिया है. बेलारूस को कभी कोई पुरस्कार नहीं मिला. निश्चित रूप से यह उत्सुकता भरा अहसास है और अब न तो किसी तरह की थकान और न ही निराशा मेरे स्तर को कभी गिरने देगी. लम्बा रास्ता तय कर लिया है, बड़ा काम किया जा चुका है और कुछ नया किया जाना मेरा इंतज़ार कर रहा है.

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जूलिया ज़ाका : 
शुक्रिया, इन खूबसूरत लफ़्ज़ों के लिए. अब आपकी लेखन शैली पर बात करते हुए जानना चाहती हूँ कि किन वजहों से प्रभावित होकर आपने पत्रकारिता के दृष्टिकोण को अपनाया?

स्वेतलाना एलेक्सिएविच
पता है, आधुनिक दुनिया में सब कुछ इतनी तेजी से और अधिकता से घटित होता है कि न तो कोई एक व्यक्ति और न पूरी संस्कृति ही इसे समझने में सक्षम है. दुर्भाग्यवश, यह बहुत तेजी से हो रहा है. टॉल्स्टॉय की तरह बैठकर इस पर सोचने के लिए बिल्कुल समय नहीं है जिनके विचार दशकों में जाकर अधिक परिपक्व हुए थे. मेरे सहित हर व्यक्ति, बस यथार्थ के एक छोटे से भाग को समझने की कोशिश कर सकता है, अनुमान ही लगा सकता है. कभी-कभी मैं अपने मूलपाठ के 100 पृष्ठों में से केवल 10 पंक्तियों को छोड़ देती हूँ, कभी- कभी बस एक पृष्ठ. और ये सब टुकड़े मिलकर आवाजों के उपन्यास में एकजुट होकर हमारे समय को प्रतिबिम्बित करते हुए हमें बताते हैं कि हमारे साथ क्या हो रहा है.

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जूलिया ज़ाका
आपने अभी एक अद्भुत रूपक "आवाजों के उपन्यासका उपयोग किया है और मेरा अगला सवाल इससे जुड़ा हुआ है. आपने बहुत ज्यादा पीड़ा देखी है और अपने लेखन में भयंकर
प्रमाण देखे हैं. क्या इसने इंसान को देखने के आपके तरीके को प्रभावित किया है?

स्वेतलाना एलेक्सिएविच
इस सवाल के जवाब में थोड़ा वक्त लग सकता है लेकिन मैं बताना चाहूंगी कि जिस संस्कृति का मैं हिस्सा हूँ वह लगातार ऐसी ही दशा और दर्दनाक हालातों में है.

कुछ ऐसा जो  जो अन्य संस्कृतियों में समझ से बाहर और असहनीय है, वह हमारे लिए सामान्य स्थिति है. हम इसी में रहते हैं, यही हमारा वातावरण है.  हम हमेशा पीड़ितों और जल्लादों के बीच रहते हैं. हर परिवार में, मेरे अपने परिवार में ... 1937 का साल, चेरनोबिल, युद्ध है. वह बहुत कुछ बता सकता है, हर किसी के पास ये कहानियां हैं..., हर परिवार आपको दर्द के इस उपन्यास के बारे में बता सकता है. और ऐसी बात नहीं है कि यह मेरा दृष्टिकोण है या इन स्थितियों में लोग जैसे सोचते हैं वह मुझे पसंद है. नहीं, यह हमारा जीवन है.

ऐसे व्यक्ति की कल्पना करो जो पागलखाने से निकलकर इसके बारे में लिख रहा है. क्या मुझे उस व्यक्ति को यह कहना चाहिए "सुनो, तुम इसके बारे में क्यों लिख रहे हो?" प्रिमो लेवी की तरह, जिसने यातना शिविरों के बारे में लिखा और खुद को उनसे अलग नहीं कर सका, या जालामोव की तरह जिसे पकड़कर यातना शिविर में ले जाया गया और वहां मार दिया गया, वह और किसी चीज के बारे में लिख ही नहीं पाता था. मुझे खुद संदेह होता रहता है कि हम कौन हैं, हमारे दुख को आजादी में क्यों नहीं बदला जा सकता है. मेरे लिए यह महत्वपूर्ण सवाल है. स्लाव चेतना हमेशा प्रबल क्यों रहती है? हम अपनी आजादी को भौतिक लाभ में क्यों बदल देते हैं? या डर में, जैसा कि हमने पहले किया था?

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जूलिया ज़ाका
आप किसके लिए लिख रही हैं?

स्वेतलाना एलेक्सिएविच : मेरे विचार से अगर मैं इन सवालों को खुद समझ सकूं तो मेरे लिए किसी और से बात करना आसान होगा. जब मैं किसी दृश्य में होती हूँ या लिख रही होती हूँ तो यही महसूस करना चाहती हूँ कि मैं अपने करीबी दोस्तों से बात कर रही हूँ.

मैं उन्हें बताना चाहती हूँ कि मैंने इस जीवन में क्या अनुभव किया है. मुझे न्यायाधीश की भूमिका कभी स्वीकार्य नहीं है, मैं उदासीन इतिहासकार नहीं हूँ. मेरी भावनाएं हमेशा उससे जुड़ी होती हैं.

मुझे इस बात की फ़िक्र है कि हम दहशत के रास्ते पर कब तक चल सकते हैं, इंसान कितना सहन कर सकता है. इसलिए काव्यगत त्रासदी मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है. यह महत्वपूर्ण है जब कोई कहता है कि उसने ऐसी डरावनी किताबें पढ़ी हैं और वह बेहतर महसूस करता है, कि पाठक के आँसू बहें और ये आँसू निर्मल थे. आपको ये सब चीजें ध्यान में रखनी चाहिए और लोगों को सिर्फ आतंक से व्याकुल नहीं करना चाहिए.

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जूलिया ज़ाका : 
धन्यवाद और एक बार फिर से हमारी बधाई स्वीकार कीजिये. हमें आपसे दिसंबर में यहाँ स्टॉकहोम में मिलकर खुश होगी !

sarita12aug@hotmail.com
स्वेतलाना एलेक्सिएविच
अलविदा धन्यवाद!

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जूलिया ज़ाका
अलविदा!
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(साभार : Nobelprize.org , अनुवाद- सरिता शर्मा, पुनरीक्षण- अपर्णा मनोज )


(Telephone interview with Svetlana Alexievich, following the announcement of the 2015 Nobel Prize in Literature, 8 October 2015. The interviewer is Julia Chayka, and the following transcript is an English translation of the conversation in Russian.)

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  1. आप हमेशा बेहतरीन काम करते है,सरिता शर्मा जी को,आपको औरअपर्णा जी को धन्यवाद एक प्यारा,संक्षिप्त,ईमानदार..और राय बनाने में मदद करने वाली बातचीत पढवाने के लिए...इससे स्वेतलाना के काम और उसकी गहराइयों का और ज्यादा पता चलता है...ये सब हम तक पंहुचाने के लिए आपको एक बार और धन्यवाद...

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  2. स्वेतलाना का साक्षात्कार पढ कर यह जाना कि बेलारूस में सामान्य स्थितियाँ नहीं रहीं , बल्कि एक आतंक की छाया में वहाँ के लोग रहते हैं । क्या सोवियत यूनियन से उन्हें यह अवसाद विरासत में मिला है , यह स्पष्ट नहीं हुआ।

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  3. सरिता ने बहुत सुंदर अनुवाद किया है. बधाई सरिता .
    स्वेतलाना के यहाँ आवाज़ें प्रमुख प्रसंग हैं. बेलारूस ने जिस सांस्कृतिक साम्राज्यवाद की पीड़ा झेली उसमें कई आवाजें दफ्न हैं. स्वेतलाना इसलिए आवाजों की शैली को अपनाती हैं. अपनी एक-एक पुस्तक के लिए वह 500 से 700 लोगों के बीच घूमती हैं और उनके दिलों में झांकती हैं. वह चुप रहने वालों में से नहीं हैं और उन चुप्पियों को तोड़ती हैं जिनका सीधा सम्बन्ध जीवन से है. उन्हें सनातन मानव की तलाश है इसलिए वे केवल घटनाओं तक नहीं रुक जातीं. वह जिंदगी के लिए आलोचना ,बारीकियों और विस्तार को नहीं ढूँढतीं बल्कि वह उस जिंदगी को तलाशती हैं जिसे आलोचना, बारीकियों और व्यापकता की जरुरत है. वह उस जैविक मनुष्य तक पहुँचने का प्रयत्न करती हैं जो चेर्नोबिल, युद्धों, आत्महत्याओं में खो चुका है.
    उनकी पहली पुस्तक 'The Unwomanly Face of the War' है. जिसमें दस लाख से भी अधिक औरतें हैं, द्वितीय विश्व युद्ध है और युद्ध की रंगभूमियाँ हैं. पंद्रह से तीस साल की औरतें हैं - कोई टैंक की ज़िम्मेदारी लिए है, कोई बंदूकधारी है, पायलेट है, मशीन गन लिए है. पूर्व युद्धों की तरह वे दृश्य में केवल नर्स या डॉक्टर की तरह दिखाई नहीं देतीं. किन्तु विजय के बाद ये आवाजें कहाँ लुप्त हो जाती हैं? आदमी भूल जाता है जीत के नशे में कि औरतों से उसनें इस विजय को चुराया है. इस किताब में औरतें युद्ध के उन पक्षों को दुनिया के सामने उजागर कर रही हैं, जिन पर पुरुष चुप्पी लगा जाता है. पुरुष के आख्यान में उत्पीड़न है पर औरतों के आख्यान में उन सभी का सामूहिक दर्द शामिल है जो रुसी हैं; जो जर्मन हैं ..जो जवान हैं और आलू की तरह युद्ध के मैदान में जीवनशून्य पड़ें हैं. यह उत्पीड़न से आगे की कहानी है. केवल आंकड़े नहीं हैं. आवाजों की ये कहानियां यहीं समाप्त नहीं होतीं. युद्ध के बाद एक और लड़ाई शुरू होती है. अपनी फौजी पहचान का वे क्या करें! वे अपने लड़ाकू होने को क्यों छिपा लेना चाहती हैं? उनके दर्द कहाँ जाएँ? उनके अभी विवाह होने बाक़ी हैं! यहीं से दूसरी कथा शुरू हो जाती है.
    दूसरी किताब है -'The Last Witnesses: the Book of Unchildlike Stories'. ये 7 से 12 वर्ष के मनुष्य होने की युद्ध स्मृतियाँ हैं. आप इस उम्र के इन्सान को बच्चा कहते हैं. बच्चों की ज़ुबानी युद्ध के दृश्य हैं. दोस्तोवस्की ने कहा था कि वह अच्छाई भी कैसी अच्छाई है जो बच्चों के आसुओं से तुमने कमाई है.
    बच्चों की गवाहियाँ हैं. आप कौनसे न्यायाधीश को बैठाएंगे फैसला सुनाने के लिए!
    'Boys in Zinc' यह तीसरी पुस्तक है. दस साल की रुसी और अफगानी लड़ाई का दस्तावेज़! कहीं फौजी हैं, कहीं उनके अफसर. हमारे लिए ये कहानियां बोध के बाहर की कहानियां हैं. आपको विधवाएं बोलती दिखाई देंगी. दृश्य में बच्चे आयेंगे. और पूर्व -पश्चिम का वह विभाजन! कैसा विभाजन है? किसका दिया हुआ है? क्यों लड़ाइयाँ ? क्यों हम इस समय में हैं? वहां जो समय चल रहा है, वह आपके समय से एकदम अलग है . यह वह कलेंडर भी नहीं है जिसमें आप सुकून से हैं. 200 साल पीछे लौट गया है समय यहाँ. मानव होने की ये तमाम दास्तानें क्या 9/11 से अलग हैं! एक दिन की घटना और दुनियां कहाँ चली गई! एक दिन में सब बदल गया. दुनिया पीछे चली गई. हथियारबंद दुनिया.
    अगली पुस्तक है -The Chernobyl Prayer: Chronicles of the Future. सोचिये कि आपको इस चेर्नोबिल की दुनिया में अगरचे रहना पड़ जाए. आप किस ब्लड फार्मूला के साथ जीवित रहेंगे? आपकी पीढियां किस जेनेटिक कोड को लेकर बड़ी होंगी? क्या होगा आपका माहौल? वही जानी-पहचानी जगह, वही पेड़-पौधे, वही इकहरा आपका आसमान ...पर सब कुछ पलट गया आपका. अपनी सुरक्षा में आपके पास यह चेर्नोबिल है! आपको चाहिए? आपके भय का कोई नाप-जोख. क्या फर्क है उस गुलाग और होलोकास्ट में? समय के साथ रिश्ता ही बदल जाता है. आपके शब्द इस समय को कैसे भरेंगे? समय की खाई बहुत बड़ी है और आप सभी की ज़ुबान बहुत छोटी.21वीं शती में भी चेर्नोबिल लिखा जा रहा है और न जाने कितनी पुश्तें इसे अभी और लिखेंगी.
    ये दास्तानें, ये आवाजें, ये भाषाएँ, ये प्रसंग ..ये महज साहित्य नहीं है. ये महज इतिहास भी नहीं है. ये किसी संस्कृति की बयानबाज़ी भी नहीं है.......पीडाओं की भाषाएँ आसान हैं पर उनके दिल में उतर कर, उनकी ऊँगली पकड़कर चलना, उन्हें समझना, उनके बीच रहना बहुत कठिन.
    शुक्रिया समालोचन .
    मैंने स्वेतलाना के ब्लॉग 'वॉइसेस फ्रॉम बिग यूटोपिया' के आधार पर एस. पी जी के लिए लिखा है.

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  4. अरुण देवजी शुक्रिया. नॉन फिक्शन लेखक को नोबेल पुरस्कार मिलने की खबर से कई लेखकों को निराशा महसूस हुई होगी. लेकिन जब मैंने यह साक्षात्कार पढ़ा तो पता चला स्वेतलाना एलेक्सिएविच अपने लेखन को लेकर बहुत गंभीर हैं. लोगों की सामूहिक पीड़ा को इतिहासबद्ध करने और उनकी कहानियों को पाठकों तक पहुँचाने के लिए उनकी प्रतिबद्धता सराहनीय हैं. अपर्णा मनोज ने इनकी कृतियों पर सुन्दर टिप्पणियां की हैं. उसके लिए अपर्णा को बधाई और शुक्रिया.

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  5. आपने तत्काल हिंदी में कुछ पढने के लिए उपलब्ध करवाया. शुक्रिया.

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  6. Aabhaar Samalochan!!
    Shevatalana Ji ko Haardik Badhai!!
    - Kamal Jeet Choudhary

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  7. Congratulations on another outstanding job, Sarita. You do a great service of bringing world literature to India. Well done!

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  8. स्वेतलाना एलेक्सिएविच के उपन्यासों पर अपर्णा जी की टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है, उन्हें धन्यवाद. अनुवाद बहुत अच्छा है, शुक्रिया सरिता जी. शुक्रिया समालोचन.

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  9. हिंदी के पाठकों के लिए इतनी बेहतरीन सामग्री देने के लिए आपका आभार. अनुवाद का प्रवाह स्वाभाविक और सहज लगता है.

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  10. bahut hi sahaj anuwad....dhanyawad....swetlana ji ko hamare samne hamari trah prastut karne ke liye.....

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