युवा कथाकार चन्दन पाण्डेय ने महेश वर्मा की कविताओं पर समालोचन में ही एक जगह
लिखा है – “एक घटना याद पड़ती है. मान्देल्स्ताम को पढ़ते हुए अन्ना अख्मातोवा ने अभिभूत
और परेशान, दोनों, होकर लिखा था कि इस कवि की जीवनी लिखी जानी चाहिए. वजह कि सभी बड़े कवियों (जिनमें
पुश्किन और ब्लॉक भी शामिल थे) की प्रेरणा या शिल्प का स्रोत मालूम पड़ जाता है पर मान्देल्स्ताम
का नहीं. उस स्रोत को जानने समझने के लिए मान्देल्स्ताम का सम्पूर्ण जीवन जानना जरूरी
लगा होगा. यही ख्याल महेश वर्मा की कविताओं को पढ़ते हुए आता है.”
इन
कविताओं को पढ़ते हुए आपको क्या लगता है?
महेश
वर्मा की कुछ नयी कविताएँ
ऐसे ही रुकी रहो वर्षा
ऐसे ही रुकी रहो वर्षा
इन्द्रधनुष और मटमैले
पानी की बातचीत
होने तक
कुछ स्थगित मुलाकातों
के बारे में सोचो
कुछ उदासियों के बीच
धूप खिलने दो
तुम्हारे अनवरत को
कहीं दर्ज करने के लिए भी
थोड़ी सांस चाहिए होगी,
रुको वर्षा
रुको कि हरेपन का एक
संक्षिप्त तोता
कुछ चीखता गुज़र पाए
तोते के हरेपन
और उसकी लाल चोंच भर
रुको ना वर्षा
एक सबसे बेचैन इंतज़ार
भर रुको
रुको अंतिम कमीज़ के
सूखने भर
गीले अखबार में गीले
हो गए
लगातार बारिश के
समाचार पर
हंसने के लिए रुको
वर्षा
ऐसे ही रुकी रहो.
मुझे एक नज़्म
मुझे एक नज़्म
उन लमहों की याद में
लिख रखना चाहिए
जब मेरी रगों ने महसूस
किया
कि तुम्हारे हाथ
किसी गैरदोस्ताना शै
में बदल गए हैं
वो कोई और उंगलियाँ,
कुछ दूसरी लकीरें
हथेली पर
और कोई नाखून
मैं उस जगह को घूर घूर
कर देखता हूँ
वो एक मुकम्मल ग़ज़ल की
जगह थी
जहां मेरे नाम की लकीर
हुआ करती थी.
(दो)
मैंने आंसुओं
चुम्बनों और
शिद्दतों को
बुझते देखा उन हाथों
की पुश्त पर
हथेली पर, उँगलियों पर
एक सूर्यास्त होता
देखा
एक दिल डूबता हुआ
मैंने एक नाउम्मीद रुत
का चेहरा देखा देर रात
मुझे वो आखिरी लम्हे
ठीक से याद नहीं मौला
कि उन्हें तुमने
छुड़ाया था हौले से
या मैंने ही छोड़ दिया
था धीरे से.
(तीन)
उसमें मौसमों का तवील
अफसाना गूंजना चाहिए
अगर वाकई वो नज़्म लिखी
जाए
ताकि बाद के किसी बरस
मुझे मौसमों से अपना
रिश्ता याद रहे.
जब धूप, बारिश और हवा
की छुवन
भूल जाए रूह
तो एक कोई जगह हो
जहाँ पुरानी रुत धड़कती
मिले.
(चार)
मुझे याद नहीं
कि धूप की बात चलने पर
तुमने क्या कहा था
याद नहीं कि बारिश का
कोई मायने तुमने बताया
हो
एक बार तो मैं अपना
नाम ही भूल गया था
मुझे दिक्कत आ रही है
तुम्हारे हाथों का
अक्स
ज़ेहन में बनाने में
मुझे ऐसे भी लिख रखनी
चाहियें
छोटी से छोटी तफसीलें
कोई नज़्म उनसे बने ना
बने .
दूसरी बातें
छूने और अनछुआ रह जाने,
चूमने और पता न लगने
देने के
सबसे पुराने खेल में
चक्करदार घूमते
हमने ढेर सी दूसरी
बातें कहीं
विवाह में कंघी करने
की रस्म से लेकर
मां से शिकायत करने की
मैं अपने अकेले होने
के विवरण में डूब ही जाता
अगर न तुम्हारी करवट
उबार लेती,
फिर अपने सपने कहने
लगा
और थोड़ा सा उदास अतीत,
तुमने सादादिली के
यादगार किस्से सुनाये
अनछुआ रहने और छू जाने
की इच्छा में
तपते
कमरे की टीन छत,जैसे
दहकती आँख धूप की.
पसीने , पानी और हवा
करने के उपक्रमों समेत
ढेर से दूसरे काम हम
करते रहे
दूसरे वाक्य कहते रहे.
हमने दूसरों की
वासनाएं एक दूसरे के सामने रक्खीं
दूसरों के सपनों की
प्यास में
तड़पते रहे रेत पर
दूसरी ढेर सी तड़पों की
ओर ध्यान बंटाते
कभी शाम उतर आती कभी उतर
आता खून
ढेर सी दूसरी यातनाओं
में डूबते उबरते
हमने दूसरे कई वाक्य
कहे.
अधूरा चुम्बन
एक टुकड़ा चाँद की तरह
अटका था
याद के दरख्त पर, चाँद
ही की तरह
कभी उदासी, कभी तंज से
देखना :मूं फेर लेना
एक उम्र वहीं रुक गई
थी
टूटकर
वहीं रुकी थी सांस
इच्छा और अधखुली आँखें
वहीं रुकी थीं
बीच से बहता जाता था
काल
उसने धूपदार दोपहर को
भी चुंधिया दिया हो
आवाजों को सोख लिया हो
आकाश की स्तब्धता ने
आती जाती रही ऋतुएं
हवाएं, बारिश और दूसरे
क्षरण
कभी लगता कि आधे चाँद
और अधूरी दोपहर में निस्बत है
कभी लगता कि टूट गिरी
वह टहनी
जिसपर कि चाँद अटका
था.
(दोपहर याद आती है तो
कठफोड़वे की आवाज़ याद आती है)
कठफोड़वे की आवाज़ याद आती है)
अच्छी कविताएँ महेश भाई की। बधाई।
जवाब देंहटाएंदिल को स्पर्श करने वाली कविताएं। चंदन ने मान्देल्स्ताम और अख्मातोवा के हवाले से बहुत वाजिब सवाल उठाया है कि इस कवि की प्रेरणा या शिल्प के स्रोत की तलाश होनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंक्रिस्टोफर कॉडवेल की एक पंक्ति याद आती है कि कविता वह है जो पढते हुए पाठक के मन में घटित होती है। महेश की ये कविताएं भी पढते हुए हमारे भीतर घटित होती हैं।
"दूसरी बातें" अपूर्व मर्म वाली कविता, कोई अगर न टोके, करवट का उबार वर्तमान में पुनः न स्थापित करे तो की कैसे अकेला होने के विवरण में डूब सकता है, इसका सही माप देती हुई लगी यह कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत नयी बात है सचमुच ।महेश वर्मा को खोज कर पढ़ना पड़ेगा ।उन्मुक्तता का जादू देख रही हूं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविताएं. बार-बार पाठ को उकसातीं. ऐसी कविताएं लिख कर ही वह मुदित-मगन इत्मीनान मिलता होगा जो कवि की तस्वीर में दिखाई पड़ रहा है.
जवाब देंहटाएंमहेश जी की कविताएं चुम्बक कविताएं हैं. सुंदर कविताएं.
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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