ग़ज़ल कविता का ऐसा ढांचा है जो ब-रास्ते फारसी से
होते हुए दुनिया की अधिकतर भाषाओँ में मकबूल है. हिंदी को यह तोहफा उर्दूं की
सोहबत से हासिल है या यूँ कहें की जब
हिंदी और उर्दूं एक थे और हिन्दवी आदि नामों से उन्हें जाना जाता था, तब शेरों और
ग़ज़लों को दोनों एक साथ गाते-गुनगुनाते थे. यह लत तभी की है. हिंदी में गजलें खूब
कही जा रही हैं.
पेशे
खिदमत है गौतम राजरिशी की गज़लें
गौतम राजरिशी की गज़लें
बात
रुक-रुक कर बढ़ी, फिर हिचकियों
में आ गई
फोन
पर जो हो न पायी, चिट्ठियों में आ
गई
सुब्ह दो
ख़ामोशियों को चाय पीते देख कर
गुनगुनी-सी
धूप उतरी, प्यालियों में आ
गई
ट्रेन
ओझल हो गई, इक हाथ हिलता रह
गया
वक़्ते-रुख़सत की उदासी चूड़ियों में आ गई
अधखुली रक्खी रही यूँ ही वो नॉवेल गोद में
उठ के पन्नों से कहानी सिसकियों में आ गई
चार दिन होने को आये, कॉल इक आया
नहीं
चुप्पी मोबाइल की अब बेचैनियों में आ गई
बाट जोहे थक गई छत पर खड़ी जब दोपहर
शाम की चादर लपेटे खिड़कियों में आ गई
रात ने यादों की माचिस से निकाली तीलियाँ
और इक सिगरेट सुलगी, उँगलियों में आ गई
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कुछ करवटों के सिलसिले, इक रतजगा ठिठका हुआ
मैं नींद हूँ उचटी हुई, तू ख़्वाब है चटका हुआ
इक लम्स की तासीर है तपती हुई, जलती हुई
चिंगारियाँ सुलगी हुईं, शोला कोई भड़का हुआ
इक रात रिमझिम बारिशों में देर तक भीगी हुई
इक दिन परेशां गर्मिए-जज़्बात से दहका हुआ
कुछ वहशतों की वुसअतें, पहलू-नशीं कुछ उलफतें
है उम्र का ये मोड़ आख़िर इतना क्यूँ बहका हुआ
ये जो रगों में दौड़ता है इक नशा-सा रात-दिन
इक उन्स है चढ़ता हुआ, इक इश्क़ है छलका हुआ
जानिब मेरे अब दो क़दम तुम भी चलो तो बात हो
हूँ इक सदी से बीच रस्ते में तेरे अटका हुआ
दिल थाम कर उसको कहा “हो जा मेरा !” तो नाज़ से
उसने कहा “पगले ! यहाँ
पर कौन कब किसका हुआ ?”
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हवा
ने चाँद पर लिखी जो सिम्फनी अभी-अभी
सुनाने
आई है उसी को चाँदनी अभी-अभी
कहीं
लिया है नाम उसने मेरा बात-बात में
कि
रोम-रोम में उठी है सनसनी अभी-अभी
अटक
के छज्जे पर चिढ़ा रही है मुँह गली को वो
मुँडेर
से गिरी जो तेरी ओढनी अभी-अभी
थी
फोन पर हँसी तेरी, थी गर्म चाय हाथ
में
बड़ी
हसीन शाम की थी कंपनी अभी-अभी
मचलती
लाल स्कूटी पर थी नीली-नीली साड़ी जो
है
कर गई सड़क को पूरी बैंगनी अभी-अभी
सितारे
ले के आस्माँ से आई हैं ज़मीन पर
ये
जुगनुओं की टोलियाँ बनी-ठनी अभी-अभी
है
लौट आया काफ़िला जो सरहदों से फ़ौज का
तो
कैसे हँस पड़ी उदास छावनी अभी-अभी
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gautam_rajrishi@yahoo.co.in
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 26/10/2014 को "मेहरबानी की कहानी” चर्चा मंच:1784 पर.
सिम्फनी और सिम्फनी ..
जवाब देंहटाएंरेफ्रेशिंग ग़ज़लें.
जवाब देंहटाएंअब ज्यादा तर गज़लें शब्दों के इन्ही लिबासों के साथ आएगी !अगर आप फ़ारसी और उर्दू मिश्रित गजल लिखोगे तो पड़ने वालो की तादात ,अंगुलियों पे गिन सकते हो !खालिस उरदू में लिखोगे तो तादात थोड़ी बढ़जाएगी पड़ने वालो की !नई पीढ़ी को तो गौतम राज जी जैसा लिखा है वो ज्यादा पसंद आएगा !उन्हें बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी गज़लें हैं ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व सुंदर !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
गौतम जी की कलम जादू सा उकेर देती है पढने वालों के इर्द-गिर्द ... फिर शब्दों के ताने बाने से बाहर आना मुश्किल हो जाता है ... बहुत ही खूबसूरत, उम्दा गजलें ....
जवाब देंहटाएंकहते हैं के गौतम का है अंदाज़-ए-बयाँ और....
जवाब देंहटाएंट्रेन ओझल हो गई, इक हाथ हिलता रह गया
जवाब देंहटाएंवक़्ते-रुख़सत की उदासी चूड़ियों में आ गई
रात ने यादों की माचिस से निकाली तीलियाँ
और इक सिगरेट सुलगी, उँगलियों में आ गई
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इक लम्स की तासीर है तपती हुई, जलती हुई
चिंगारियाँ सुलगी हुईं, शोला कोई भड़का हुआ
दिल थाम कर उसको कहा “हो जा मेरा !” तो नाज़ से
उसने कहा “पगले ! यहाँ पर कौन कब किसका हुआ ?”
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अटक के छज्जे पर चिढ़ा रही है मुँह गली को वो
मुँडेर से गिरी जो तेरी ओढनी अभी-अभी
मचलती लाल स्कूटी पर थी नीली-नीली साड़ी जो
है कर गई सड़क को पूरी बैंगनी अभी-अभी
Aha aha aha...Gautam tum sher kaho ho ki karamaat karo ho...
LAJAWAB...BEMISAL...CLASS
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंअच्छी कोशिश है. लेकिन ग़ज़ल महज शब्दों का चमत्कार भर नहीं होती है. उसमें कुछ बात भी पैदा होनी चाहिए. शायर छ्न्दसिद्ध हैं. लफ्जों में मानी भरने की कोशिश करेंगे तो बहुत अच्छी बात कह पाएंगे
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