अजेय की कविताओं की उत्सुकता से प्रतीक्षा रहती है. वह जीवन
की आपा-धापी और विकास की विकृतियों के बीच अंतिम आदमी के धूप- छाँव के कवि हैं. वह
आदमी किसी दौड़ में शामिल नहीं है. वह
झेंपता हुआ, हकलाता हुआ, खिसियाता हुआ किसी संकटग्रस्त प्रजाति की तरह अस्तित्वगत गरिमा
की तलाश में है. वहाँ गर उम्मीद है तो
प्रकृति से है.
अजेय की कुछ नई कविताएँ.
अजेय की कविताएँ
ई पता : ajeyklg@gmail.com
आखिरी कविता
जिस दिन मैंने लिखा
‘प्रेम’
लोग मुझे घेर कर खड़े हो गए
मैं खतरनाक आदमी बन
गया था.
(17.01.2016)
मैं भी कविता लिक्खूँगा
सोचा मैं भी एक कविता लिक्खूँ
पर मैं इशारों में
डरते हुए
शरमाते और हकलाते हुए
नहीं लिख सका
फिर तय किया कि चलो
एक स्यूसाईड नोट ही लिख
लेता हूँ.
(मई 2017)
कृत्कृत्य
ईश्वर ,
शुक्रिया
तुमने मुझे
प्रसन्न किया.
(मई 1, 2013)
धूप
उसे बैठाया जाए टेरेस
पर
वहाँ पत्तियाँ झूल रही देवदार की
हवा की ठंडक में
उसे चाय के लिए पूछा जाए
आज उस ने अच्छी सुबह
खिलाई है.
(कसौली 18.01.2015)
ऊब
कभी कुछ बिखरा हुआ भी रहने दिया जाए
जीवन को
मसलन
चप्पलों में से एक को छोड़ दिया जाए
औंधा
या साबुन के टुकड़े को
बाथरूम के फर्श पर पड़ा हुआ
और नल को
टपकता हुआ
दिन भर ....
क्या है कि
अनुशासन से
हम जल्दी ही ऊब जाते
हैं.
(चम्बाघाट 09.02.2015)
अनुभव
मैं मौसम हूँ
महसूसो
अनुमान मत लगाओ.
(मई 3, 2013)
काई
पत्थर ने कहा
ले लो मुझ से
यह छोटा सा हरा
और जब भर जाएं जेबें
और मुट्ठियाँ
इसे बाँटना
आगे से आगे.
(20 मई 2013)
कविता
काँपती रहती हूँ
झेंपती
खिसियाती रहती हूँ ...
..........
पहुँच पाती हूँ कभी कभी ही
अपने कवि के पास.
(अगस्त 30 2013)
तापना
तुम एक अच्छी आग हो
तुम्हें तापना है रात भर
चोरों की तरह
भले ही सुबह हो जाए
और मैं पकड़ा जाऊँ !
(सोलन 24.07.2015)
उथली झील के लिए
उतार लिया जाए
बोझ
गुस्सा
और नशा
तितली बना जाए
कुछ पल को
उड़ा जाए तुम्हारी
चमकती सतह के आस पास
तैर लिया जाए तुम में
मछली बना जाए
देख ली जाए तेरी तासीर
ओ उथली झील !
पता लगाया जाए
क्या तुम गहराई से ऊब कर ऐसी हुई हो ?
चौथी जमात में
सुन लड़की
चौथी जमात में
मेरे बस्ते से
पाँच खूबसूरत कंकरों के साथ
एक गुलाबी रिबन
और दो भूरी आँखें गुम हो गईं थीं
कहीं गलती से तेरी जेब में तो नहीं आ गईं थीं ?
(17.08.2015)
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अजेय
१८ मार्च १९६५ (सुमनम, लाहुल-स्पिति,
हिमाचल प्रदेश)
पहल, तद्भव ,ज्ञानोदय, वसुधा, अकार, कथन, अन्यथा, उन्नयन, कृतिओर, सर्वनाम, सूत्र , आकण्ठ, उद्भावना ,पब्लिक
अजेण्डा , जनसत्ता, प्रभातखबर, आदि पत्र -
पत्रिकाओं मे रचनाएं प्रकाशित. कई भाषाओँ में कविताओं का अनुवाद.
कविता संग्रह - इन
सपनों को कौन गायेगा (दखल प्रकाशन)
ई पता : ajeyklg@gmail.com
अजेय की कविताएँ पसन्द आईँ । उन मे कथन की सहजता है । आज के बडबोले कवियोँ से अलग अजय की शैली मेँ मौलिकता है ।
जवाब देंहटाएंवाह, हमारे इस प्यारे दाेस्त काे आपने खाेज निकाला, शुक्रिया भाई. जाने कब से अजेय ग़ायब थे. एक समर्थ कवि की वापसी हुई है.
जवाब देंहटाएंमैंने भी अजेय जी को समालोचना पर अपनी कविताओं पर लिखी टीप से ही जाना । अब पढूंगा अजेय को ।
जवाब देंहटाएंसहज दृष्टि की कविताएँ. हाँ, पानी को टपकता हुआ अब नहीं छोड़ सकते. हमारे ही कृत्यों की वजह से पृथ्वी पर से पीने का पानी खत्म होता जा रहा है. पानी के लिए आपा-धापी अब मचने ही वाली है.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविताएँ हैं। अजय के बारे में सही लिखा। उनके लौटने की हार्दिक प्रसन्नता हुई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविताएँ हैं अजय जी की। जाड़े की नरम, गुनगुनी धूप जैसी। बधाइयाँ!
जवाब देंहटाएंसुंदर कविताएँ । अजेय जी सहज कवि हैं।
जवाब देंहटाएंवाह अजेय भैया की कविताएं जैसे गहरे नींद से जगाती सूरज की किरणें
जवाब देंहटाएंबढ़िया। ठहरी हुईं। यह है अजेय।
जवाब देंहटाएंअजेय जी को पढ़कर मन तृप्त हुआ। छोटी सहज और गहरी कविताएँ और दिल के करीब पहुंचती हुई।
जवाब देंहटाएंअजेय भाई को बहुत दिनों बाद पढ़ा। बहुत अच्छा लगा। समालोचन का आभार। ये कविताएँ भी एकदम नई नहीं हैं पर उनकी नई कविताओं को पढ़ने की जिज्ञासा जागती हुई।
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार । मेरी एकदम नई कविताएं आप को जल्द पढ़ने को मिल सकती हैं @ प्रदीप । साल पांच सात से ज्यादा नहीं लिख पाता। वो भी पब्लिश करने से कतराता हूँ। जैसे कोई अनुकूल अवसर तलाशता रहता हूँ।
जवाब देंहटाएंयों यहाँ प्रकाशित छोटी कविताओ मे से एक इसी साल लिखी गई है ।
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