मैं कहता आँखिन देखी : राज हीरामन











गुजरात केन्द्रीय  विश्वविद्यालय  में आयोजित गोष्ठी (१६-१७ जनवरी/ २०१७), हिंदी कहानी : नई सदी का सृजन और सरोकार’ में पधारे मॉरीशस के वरिष्ठ लेखक राज हीरामन से संवाद का अनुरोध समालोचन ने युवा लेखक संतोष अर्श से किया था.


अब यह महत्वपूर्ण बातचीत आपके समक्ष है. यह भाषा, साहित्य, समाज और राजनीति पर केन्द्रित है.  एक दूसरा देश भारत को कैसे देखता है? यह पढना बहुत दिलचस्प है.  



मॉरीशस के लेखक राज हीरामन से संतोष अर्श की बातचीत        


 मॉरीशस हिंदी का दूसरा देश है. राज हीरामन वहाँ के प्रतिष्ठित लेखक हैं. वे गुजरात एक कार्यक्रम में आए थे. उनके वक्तव्य ने मुझे प्रभावित किया. विचार और उम्र का भेद छोड़ कर मैंने उनसे बातचीत की तो पता चल वे बेहद विनम्र और सहज व्यक्ति हैं. मॉरीशस के अच्छे लेखक तो हैं ही. उनकी एक आँख की रोशनी क्षीण हो चली है लेकिन लेखन का जज़्बा सलामत है. वे बेहद उत्साही और मिलनसार हैं. मॉरीशस के हिंदी साहित्य में भारत से गए गिरमिटियों की संघर्षगाथा है, औपनिवेशिक शोषण की अंतहीन दास्तान है. और सबसे बढ़ कर गाँधी है जिसकी आज भारत को ही नहीं सारे विश्व को ज़रूरत है. उन्होंने बड़े चाव से मेरे प्रश्नों के उत्तर दिये हैं. इस बातचीत में मॉरीशस के हिंदी साहित्य, इतिहास और वहाँ की हिंदी का पुट भी मिलेगा !             


संतोष अर्श : राज हीरामन जी अपने निजी जीवन के बारे में अपने पाठकों को कुछ बताएँ.
राज हीरामन :  दो सौ साल पहले बिहार से मेरे पुरखे ठगकर अँग्रेज़ों द्वारा मॉरीशस के खेतों में काम करने आए थे. उनका जीवन दास से कम नहीं था. उन्हीं की संतान मैं 1 जनवरी, 1953 को त्रिओले में जन्मा हूँ. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा यहीं हुई. मजदूरी की. मेसन का काम किया. पुलिस में भर्ती हुआ. अध्यापक बना. ड्रामा किया. डॉ. धर्मवीर भारती मुझे टाइम्स ऑव इंडिया में पत्रकारिता में प्रशिक्षण के लिए ले गए. धर्मयुग, सारिका, नवभारत टाइम्स, नवनीत, पराग में काम किया. हिन्दी में बी.ए. और एम.ए. किया है. स्वदेश लौट कर राष्ट्रीय रेडियो/टेलीविजन में काम किया. स्वदेश हिन्दी साप्ताहिक का संपादक बना. निजी Radio One में पत्रकारिता की. हिन्दी पाठ्यक्रम पैनल्स का सदस्य रहा. 1986 से लिखना शुरू किया. दिल्ली अब तक मेरी 24 पुस्तकें प्रकाशित कर चुकी है. 2 अँग्रेज़ी और 22 हिन्दी में. कविता, कहानी और लघुकथा लिखता हूँ. अभी सरकार द्वारा प्रकाशित दो हिन्दी त्रैमासिकों, ‘रिमझिम' और 'वसंत' का वरिष्ठ उप संपादक हूँ. स्वदेश और भारत में पचासों शोध-पत्र पढ़ चुका हूँ और सम्मानित हो चुका हूँ. विधुर हूँ. दो बेटियाँ हैं, एक लंदन में रहती हैं और दूसरी पेरिस में.


संतोष अर्श : आपने कविताएँ भी लिखी हैं और कहानियाँ भी ! पत्रकारिता भी की है. आप स्वयं को मूलतः कवि मानते हैं या कथाकार ?
राज हीरामन : कविता की मेरी 10 पुस्तकें प्रकाशित. हैं जब कि 3 कहानी संग्रह और 2 लघुकथा संग्रह छपे हैं. दोनों ही विधाएँ मुझे पसंद हैं और दोनों में अभिव्यक्ति करने का आनंद अलग है. अनुभूति भी अलग है. बावजूद इस सब के मैं कवि हूँ और कवि रहना ही पसंद करूंगा.  


संतोष अर्श : मॉरीशस की साहित्यिक दुनिया में आपका नाम आदर और प्रतिष्ठा के साथ लिया जाता है. आप स्वयं को मॉरीशस की साहित्यिक दुनिया में कहाँ पाते हैं ? आपकी अभी तक की साहित्यिक यात्रा कैसी रही ?

राज हीरामन :  इस प्रश्न का संक्षेप में उत्तर आप ने दे भी दिया है. मॉरीशसीय हिन्दी साहित्य में मेरा स्थान कहाँ है यह आप और पाठक निर्णय करेंगे ! मैं अपनी जगह खुद नहीं बनाता.
                   ‘ख़ाक से जन्मा हूँ,
                   ख़ाक ही मेरी मंजिल है

रही बात मेरी साहित्यिक यात्रा की वह देर से शुरु हुई, 1996 में जब मैं चालीस पार कर चुका था. आप शायद नहीं मानेंगे कि जिन दो सरकारी हिन्दी त्रैमासिकों का मैं उपसंपादक था (आज वरिष्ठ हूँ) उनमें मैं कभी छप नहीं पाया, जब तक कि उन के नामी साहित्यकार संपादक रिटायर नहीं हो गए. मेरे गुरु स्व. प्रोफेसर रामप्रकाश से मैं वचनबद्ध हूँ कि जब तक मेरा स्वास्थ्य मेरा साथ देगा तब तक हर वर्ष एक पुस्तक प्रकाशित कराऊंगा. अभी चौबीस पुस्तकों का मालिक हूँ. पचीसवीं पिछले साल से प्रेस में है.


संतोष अर्श : मॉरीशस के हिन्दू समाज के बारे में कुछ बताएँ ! क्या वहाँ भी दलित-सवर्ण या ब्राह्मणवाद-जातिवाद जैसी बातें हैं ?

राज हीरामन : यहाँ जाति-पाँति है पर भारत जैसा तीव्र नहीं. अभिमन्यु अनत को भारत ने इसलिए हाथोंहाथ लिया क्योंकि वह दलित नहीं था. रामदेव धुरंधर इसलिए दूसरे स्थान पर बना रहेगा क्योंकि वह ब्राह्मण नहीं है.

संतोष अर्श : मोदी सरकार के आने के बाद भारत से बाहर प्रवास कर रहे हिंदुओं में कट्टरता बढ़ी है या नहीं ? आप इसे किस तरह महसूस करते हैं ? क्या मॉरीशस में भी ऐसा कुछ है ?

राज हीरामन : मॉरीशस के हिन्दू हमेशा से कट्टर रहे हैं. तभी तो 1968, हमारी आजादी के लगभग 40 वर्षों में सिर्फ़ ढाई सालों के लिए सत्ता धोखे से ग़ैर के हाथ में थी ! वरना बागडोर हिन्दुओं के हाथों में ही रही थी और है भी. भारत की छत्रछाया में हम महफूज़ हैं. हम भारत के आर्थिक सहयोग के सब से बड़े पात्र हैं. पर मोदी जी के आने से लहर ऊँची हुई है. हिन्दी के विकास पर विश्वास बढ़ा है. हमारे सहयोग के लिए भारत चार कदम आगे बढ़ा है. हमारा सुरक्षा भार 'सेफ हैंड' में है. मॉरीशस की ओर भारत की कटिबद्धता अधिक पुख़्ता हुई है.


संतोष अर्श : मॉरीशस के हिन्दी कथा-साहित्य में लघुकथाओं को विशेष स्थान प्राप्त है। आपने भी बहुत सुंदर और सुग्राह्य लघुकथाएँ रची हैं। क्या आप लघुकथाओं में अपनी अनुभूतियों को अधिक रचनात्मकता और तरलता के साथ अभिव्यक्त कर पाते हैं ?
राज हीरामन : हिंदी साहित्य में ही लघुकथा कुछ देर से पर दुरुस्त आई. सारिका और कमलेश्वर के लम्बे संघर्षों के बाद ही यह विधा बनी तथा स्वीकृत भी हुई. जबकि गुलेरी, प्रेमचंद, प्रसाद आदि लघुकथा लिख भी चुके थे. मॉरीशस में 1935 से लघुकथा की पुट हस्तलिखित पत्रिका 'दुर्गा' में मिलती है. यहाँ अच्छी और स्तरीय लघुकथाएँ लिखी और प्रकाशित की जा रही हैं. यह विधा मुझे अतिप्रिय है. बिना गहरी अनुभूति के इस में एक कदम भी आगे नहीं जाया जा सकता. अपने लेखन अनुभवों को खँगालने का अच्छा अवसर है लघुकथा. 

संतोष अर्श : क्या आपने लंबी कहानियाँ भी लिखी हैं ? या इस तेज़ भागती दुनिया में आप भी महसूस करते हैं कि लंबी कहानियों का दौर समाप्त हो रहा है ? मॉरीशस के हिंदी साहित्य के पाठकों की क्या दशा है ? क्या साहित्य उसी गति से पढ़ा जा रहा है जैसे पिछली सदी में पढ़ा जाता था, या नई सदी में कुछ परिवर्तन हुए हैं ? 
राज हीरामन : एक साथ आप ने कई सवालात किए हैं. अपने पिछले कहानी संग्रह बर्फ सी गर्मी में, मैंने कई लम्बी कहानियाँ लिखी हैं. फास्ट फूड के ज़माने में भी पढ़ने वाले पाठक आज भी हैं. पर इस यथार्थ को भी मान लेना चाहिए कि कार में सफर करते जो विज्ञापन आप सेकंड भर में पढ़ लेते हैं वह सफल पोस्टर है. मॉरीशस में खरीद कर हिन्दी पढ़ने की संस्कृति नहीं है. बाकी जो कुछ है, वो भारत में है. 

संतोष अर्श : गाँधी आपकी रचनाओं में मुसलसल स्थान पाते हैं। गाँधी जी के चार बंदर, इंग्लैंड में गाँधी से मिला, गाँधी जयंती आदि आपकी सुंदर और प्रभावी लघुकथाएँ हैं। आप गाँधी को किस तरह देखते हैं ? गाँधी का आपके जीवन और लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
राज हीरामन :  भारत से बाहर एक विदेशी होने के नाते और एक ऐसे देश का निवासी होने के नाते, जहाँ की राष्ट्रीय भाषा अँग्रेज़ी हो, मैं यह कहने में कभी नहीं हिचकिचाऊँगा कि भारत की भी पहचान गाँधी और हिन्दी है. गाँधीवाद पूरी दुनिया और पूरी मानव जाति के लिए है. मेरी रचनाओं में गाँधी इसलिए भी उपस्थित हैं क्योंकि गाँधी मेरे देश की आज़ादी के पीछे प्रेरणा के स्रोत रहे हैं.

संतोष अर्श : वह कैसे ज़रा विस्तार से बताएंगे ?
राज हीरामन : भारतीय मूल के लोग 200 वर्ष पहले ठगकर अँग्रेज़ों द्वारा मॉरीशस टापू पर लाए गए थे कि वहाँ पत्थर उलटो तो सोना मिलता है. पर उनकी स्थिति यहाँ दास से कम नहीं थी 15 घंटे हर रोज़ बैल की तरह ईख के खेतों में जोते जाते. दयनीय स्थिति थी. व्यभिचार और अत्याचार रोज़ की बात थी. तभी 1901 में युवा बैरिस्टर करमचंद गाँधी इत्तेफाकन यहाँ आए. वे दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट रहे थे कि उन का जहाज 'नौशेरा' खराब हो गया था और मरम्मत के लिए पोर्ट लुईस बंदरगाह में 19-20 दिनों के लिए लंगर डाला था. उन्होंने भारतीयों की दु:खद स्थितियां देखीं और जाते-जाते तीन  बातें कह गए :

1-         अपने बच्चों को शिक्षित करो.
2-         उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित करो और
3-         भारत की ओर देखते रहो.


संतोष अर्श : फिर आगे....?
राज हीरामन :  क्या होना था ! फिर क्या होना था ? गिरमिटियों ने अपने बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया. 1901 के गए 1905 में उन्होंने इंग्लैंड से बने एडवोकेट, बड़ौदा के जन्मे मगनलाल मणिलाल डॉक्टरों को यहाँ भेजा. मणिलाल ने यहाँ आते ही भारतीय मजदूरों की सेवा के लिए कमर कसकर गोरों के खिलाफ जंग छेड़ दी. कोर्ट में हो रहे अन्याय का विरोध किया. उनकी पैरवी की. 1909 में अंग्रेज़ी, गुजराती और हिंदी में इस देश का पहला अख़बार ‘The Hindustani’ निकला. आर्य समाज में हिन्दी की पढ़ाई बैठकाओं में शुरू  हुई. वे ही बैठकाएँ हमारी एकता और आजादी का आधार बनीं. 

संतोष अर्श : मॉरीशस का समाज गाँधी को कैसी दृष्टि से देखता है ?
राज हीरामन : मॉरीशस को फ़ख्र है कि इत्तेफाकन और 19 दिन ही सही युवा करमचंद गाँधी 1901 नवम्बर में यहाँ आए थे और इस धरती पर चले थे...और भारतीय गिरमिटियों को दो वाक्यों में अपना संदेश सुना गए थे ! वे ही दो वाक्य मॉरीशस में मानसिक परिवर्तन, आज़ादी, सत्ता हस्तांतरण और विकास के कारण बने. वे दो वाक्य थे- अपने बच्चों को शिक्षित करो और उन्हें राजनीति में जाने के लिए प्रेरित करो. गाँधी ने सिर्फ कहा ही नहीं बल्कि 1907 में बड़ौदा में जन्मे तथा इंग्लैंड में पढ़े युवा बैरिस्टर मणिलाल मगनलाल डॉक्टर को गिरमिटयों की सहायता के लिए भेजा. उन्होंने यहाँ हिन्दुओं के पक्ष में भारी संघर्ष किया और जनता को एक करने तथा उन के कानों में आजादी का बिगुल सुनाने के लिए 'हिन्दुस्तानी' अखबार भी निकाला. गाँधी ने यह भी कहा था कि भारत की ओर देखते रहो !आज का भारत गाँधी का मायना बदल रहा है. पर मॉरीशस के घर-घर में गाँधी जी का टंगा फोटो यह कह रहा है कि गाँधी को आज भी हमने सीने से लगाए रखा है. वे हमारी स्वतंत्रता के मसीहा हैं....हमारे विकास की वजह हैं.

संतोष अर्श : भारत की हिन्दी की साहित्यिक दुनिया और यहाँ के साहित्यिकों से अपने सम्बन्धों के बारे में कुछ बताएँ. अपने प्रिय भारतीय हिन्दी रचनाकारों के बारे में भी कुछ बताएँ.
राज हीरामन :  भारत से कुछ मामलों में भले ही हम आगे हो सकते हैं पर हर विषय मे भारत हमारा मार्गदर्शन करता रहा है. तुलसीदास, सूर, कबीर, प्रेमचंद, प्रसाद, मुक्तिबोध, महादेवी निराला आदि को पढ़ते हम बड़े हुए और हिंदी सीखी. मध्यकालीन हिन्दी रचनाकार हमारे सिर-आँखों. जहाँ तक मेरा प्रश्न है साल में दो/तीन बार भारत तो जाता ही हूँ, सम्मेलनों और गोष्ठियों के बहाने नए साहित्यकारों से संबंध स्थापित कर के आता हूँ और पुराने संबंधों को सुदृढ़ कर के आता हूँ. मुझे कबीर और मुक्तिबोध भाते हैं. प्रेमचंद आज भी मेरे प्रिय हैं.

संतोष अर्श : मॉरीशस को हिन्दी का दूसरा देश कहा जाता है. आप इसको कैसे देखते हैं ?
राज हीरामन :  बड़ा ही इत्तेफाक प्रश्न है ! मेरी पिछली पुस्तक का शीर्षक है 'मॉरीशस : हिंदी का और एक देश' निश्चय ही आप का कथन सही हो सकता है ! एक तो हिंदी को लेकर हम मॉरीशसवासी भारत से अधिक सजग, कटिबद्ध और एकजुट हैं. दूसरी बात कि भारत के बाहर मॉरीशस ही ऐसा देश है जहाँ हिन्दी का प्रकाशन सब से अधिक हो रहा है. तीसरी बात, यहाँ की शिक्षा पद्धति में तथा सरकारी तंत्र में हिंदी का स्थान है. यानी बच्चा 5 साल की उम्र से विश्वविद्यालय तक पढ़ सकता है. इसका विकास यहाँ तक है कि पीएचडी तथा डी.लिट् का भी प्रवधान है. चौथी पर महत्वपूर्ण बात यह कि मॉरीशस में 'विश्व हिन्दी सचिवालय' का निर्माण हो चुका है और 9 वर्ष से कायर्रत है. पाँचवी और सब से महत्वपूर्ण बात यह कहना चाहूँगा कि मेरे देश में हिंदी रोटी की भाषा है और हिंदी बेटी की भाषा है....हिंदी नोट की भाषा है और हिंदी वोट की भाषा है.


संतोष अर्श : मॉरीशस से हमेशा हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाए जाने की बात उठती रही है. संयुक्त राष्ट्र की भाषा बन जाने से हिन्दी पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
राज हीरामन : हम इंग्लैंड और फ्रांस दोनों ही देशों के उपनिवेश रह चुके हैं. इसलिए मॉरीशस की राष्ट्रीय भाषा अँग्रेज़ी है और यहाँ फ्रेंच का वर्चस्व है ! पर हिंदी यहाँ हृदय की भाषा है और इस भाषा को कोई तोड़ नहीं सका क्योंकि यह भाषा सब को जोड़ती है. हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ तक ले जाने के लिए हमारे प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को वचन भी दे दिया है कि मॉरीशस संयुक्त राष्ट्र संघ में  आप का समर्थन करेगा. यूएन में मॉरीशस की सदस्यता के कारण हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के लिए मॉरीशस भारत से बेहतर स्थिति में है. हम OAU, Francophonie जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में हैं जिन में भारत नहीं है. हमारे संकल्प और इरादे भारत से तेज़ हैं. हम हिंदी देश न होते हुए भी 'विश्व हिंदी सचिवालय' अपने देश में बनाने का दम रख सकते हैं और हिंदी को माथे का चंदन बनाने का अखंड विश्वासी हैं. हिंदी का पहले से संसार में प्रभाव जबरदस्त है. चीनी भाषा के बोलने वाले अधिक हैं पर संसार के कोने-कोने में जहाँ हिंदी बोलने वाले हैं वहाँ औपनिवैशिक भाषा को छोइ और कोई अन्य भाषाएँ कहाँ हैं ? अरब भाषा संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा है न ! पर उस का प्रभाव कहाँ और कितना है ? और खाड़ी देशों के कुएं सूख गए तो ? बिना संयुक्त राष्ट्र संघ में पहुंचे ही अगर हिंदी का यह आलम है तो वहाँ पहुँच कर प्रभाव कम तो नहीं होगा !

संतोष अर्श : अपनी भविष्य की साहित्यिक योजनाओं के बारे में बताएँ।
राज हीरामन : मेरी  25वीं पुस्तक प्रेस में है और मैं अभी 64 वर्ष का हूँ. 50 कृतियाँ देकर ही मरना चाहता हूँ. ज़्यादा पर कम नहीं. उपन्यास लिख रहा हूँ. मॉरीशस में नाटक की ऐतिहासिकता पर शोध कर रहा हूँ. कविता, कहानी, लघुकथा लिखना जारी है. लेख लिखना और उन के संग्रह निकालना ज़ारी रख रहा हूँ. हिंदी की एक नई विधा पर कुछ 18/20 महीनों में मेरी एक पुस्तक आ जाएगी.

संतोष अर्श : किस विधा पर ?
राज हीरामन : ना! आप पढ़ कर ही जानिए और कहिएगा !
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राज हीरामन : rajheeramun@gmail.com     
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संतोष अर्श 
(1987, बाराबंकी, उत्तर- प्रदेश)
ग़ज़लों के तीन संग्रह ‘फ़ासले से आगे’, ‘क्या पताऔर अभी है आग सीने में’ प्रकाशित.
अवध के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक लेखन में भी रुचि
‘लोकसंघर्ष’ त्रैमासिक में लगातार राजनीतिक, सामाजिक न्याय के मसलों पर लेखन.
2013 के लखनऊ लिट्रेचर कार्निवाल में बतौर युवा लेखक आमंत्रित.
फ़िलवक़्त गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिन्दी भाषा एवं साहित्य केंद्र में शोधार्थी
 poetarshbbk@gmail.com         

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  1. जरूरी बातचीत। शुक्रिया संतोष।

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  2. बहुत मूल्यवान बातचीत है । आपको साधुवाद ।

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  3. बहुत अच्छी जानकारी दी,जिन लोगो को नहीं पता वो आपके माध्यम से "राज हीरामन"जी को जरूर जानेंगे।

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  4. बढ़िया साक्षात्कार। पढ़ना रोचक लगा। मेरी नजर में कुछ महत्वपूर्ण बातें जो इसमें से सामने निकालकर आयीं हैं, वे ये हैं:
    1.अभिमन्यु अनत को भारत ने इसलिए हाथोंहाथ लिया क्योंकि वह दलित नहीं था. रामदेव धुरंधर इसलिए दूसरे स्थान पर बना रहेगा क्योंकि वह ब्राह्मण नहीं है.
    2. मॉरीशस के हिन्दू हमेशा से कट्टर रहे हैं. तभी तो 1968, हमारी आजादी के लगभग 40 वर्षों में सिर्फ़ ढाई सालों के लिए सत्ता धोखे से ग़ैर के हाथ में थी ! वरना बागडोर हिन्दुओं के हाथों में ही रही थी और है भी. भारत की छत्रछाया में हम महफूज़ हैं. हम भारत के आर्थिक सहयोग के सब से बड़े पात्र हैं. पर मोदी जी के आने से लहर ऊँची हुई है. हिन्दी के विकास पर विश्वास बढ़ा है. हमारे सहयोग के लिए भारत चार कदम आगे बढ़ा है. हमारा सुरक्षा भार 'सेफ हैंड' में है. मॉरीशस की ओर भारत की कटिबद्धता अधिक पुख़्ता हुई है.
    3. आज का भारत गाँधी का मायना बदल रहा है. पर मॉरीशस के घर-घर में गाँधी जी का टंगा फोटो यह कह रहा है कि गाँधी को आज भी हमने सीने से लगाए रखा है. वे हमारी स्वतंत्रता के मसीहा हैं....हमारे विकास की वजह हैं.
    4. एक तो हिंदी को लेकर हम मॉरीशसवासी भारत से अधिक सजग, कटिबद्ध और एकजुट हैं. दूसरी बात कि भारत के बाहर मॉरीशस ही ऐसा देश है जहाँ हिन्दी का प्रकाशन सब से अधिक हो रहा है. तीसरी बात, यहाँ की शिक्षा पद्धति में तथा सरकारी तंत्र में हिंदी का स्थान है. यानी बच्चा 5 साल की उम्र से विश्वविद्यालय तक पढ़ सकता है. इसका विकास यहाँ तक है कि पीएचडी तथा डी.लिट् का भी प्रवधान है. चौथी पर महत्वपूर्ण बात यह कि मॉरीशस में 'विश्व हिन्दी सचिवालय' का निर्माण हो चुका है और 9 वर्ष से कायर्रत है. पाँचवी और सब से महत्वपूर्ण बात यह कहना चाहूँगा कि मेरे देश में हिंदी रोटी की भाषा है और हिंदी बेटी की भाषा है....हिंदी नोट की भाषा है और हिंदी वोट की भाषा है.
    5. हमारे संकल्प और इरादे भारत से तेज़ हैं. हम हिंदी देश न होते हुए भी 'विश्व हिंदी सचिवालय' अपने देश में बनाने का दम रख सकते हैं और हिंदी को माथे का चंदन बनाने का अखंड विश्वासी हैं. हिंदी का पहले से संसार में प्रभाव जबरदस्त है. चीनी भाषा के बोलने वाले अधिक हैं पर संसार के कोने-कोने में जहाँ हिंदी बोलने वाले हैं वहाँ औपनिवैशिक भाषा को छोइ और कोई अन्य भाषाएँ कहाँ हैं ? अरब भाषा संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा है न ! पर उस का प्रभाव कहाँ और कितना है ? और खाड़ी देशों के कुएं सूख गए तो ? बिना संयुक्त राष्ट्र संघ में पहुंचे ही अगर हिंदी का यह आलम है तो वहाँ पहुँच कर प्रभाव कम तो नहीं होगा !

    इन बिन्दुओं को व्यापक और निष्पक्ष नजरिए से विश्लेषित करने की जरूरत है तभी भारत की भारतीयता और भारत की हिन्दी अक्षुण्ण रह पाएगी। बधाई संतोष जी।

    -राहुल राजेश।

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  5. ज्ञानवर्धक साक्षात्कार 👌👌💐

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