मेघ - दूत : टॉमस ट्रांसट्रोमर



टॉमस ट्रांसट्रोमर विश्व प्रसिद्ध स्वीडिश कवि, लेखक अनुवादक हैं. उनकी कविताओं का अनुवाद ६० से अधिक भाषाओँ में हुआ है. उनकी कविताएँ प्रकृति की ओर लौटती हैं. २०११ का साहित्य का नोबेल पुरस्कार उन्हें मिला है. नेविल और होरवैथ ने उनसे उनकी रचनाशीलता और पसन्द नापसंद को लेकर लम्बी बात की है.
इसका अनुवाद अपर्णा ने किया है. जो अब इस मौके पर ख़ास है.



टॉमस ट्रांसट्रोमर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट स्थान बनाने वाले कवि हैं. उनका जन्म १९३१ में स्टॉकहोम में हुआ. १९८३ में वे कविता के प्रतिष्ठित  Bonnier Prize और १९८१ में Germany’s Petrarch Prize से नवाज़े गए.   ७ अप्रैल, १९८९ को ये साक्षात्कार Linda Horvath के साथ उस ऊंची इमारत में लिया गया था जो Indianapolis की चौकसी करती प्रतीत होती है.    उन्हें एकांत पसंद है, विशिष्ट तरह का एकान्त किन्तु साथ ही वे सभी के बीच रहकर काफी  प्रसन्न, तनावमुक्त और उदार दिखाई देते हैं. विनोदप्रियता और महत्वाकांक्षा उनमें संतुलन पाती हैं. वे जितना उन्मुक्त भाव से खिलखिलाते हैं, उतना गाम्भीर्य भी रखते हैं. बातचीत के दौरान मैंने महसूस किया कि वे मुझे खासी जगह दे रहे थे और मैं एक तरह से कम्फर्ट ज़ोन में थी. ये ही वातावरण उनकी कविताओं में मिलता है.
 पिछले वसंत उन दिनों मैं ट्रांसत्रोमर से मिली  जब मेरा MFA का प्रोग्राम समापन पर था; इस तरह ये मेरे लिए उल्लास और भ्रांतियों से मुक्ति का समय था. उनसे बात करते वक्त मुझे लगा जैसे मैं काव्य रस से सराबोर हो गयी.  
Tan Lin Neville


होरवैथ : क्या अनुवादकों के साथ भी आप वैसा ही जुड़ाव महसूस करते हैं जितना एक परिभाषित साहित्य की अपनी परंपरा सेब्लाय, स्वेनसन, फल्टन जैसे आपके अनुवादकों के साथ इस लगाव को मैं महसूस करती  हूँ, ये मेरा अपना अनुमान है.
  

ट्रांसट्रोमर  : हाँ, निस्संदेह. आप इसे कविता की महान परम्परा की आधुनिक शैली कह सकते हैं.  तथापि सब कुछ व्यापक रूप से सामने आना चाहिए. रॉबर्ट ब्लाय  वह पहले कवि हैं जिन्होंने वास्तव में मुझमें रुचि दिखाई. हम दोनों एक ही दिशा में कार्यरत थे इसलिए ऐसा हुआ होगा. वे नोर्वे आये हुए थे और स्केन्डिनेवियन लेखकों को पढ़ रहे थे. वे अमरीकियों को  बताना चाहते थे कि स्केंडिनेविया के कवियों का प्रकृति के प्रति ख़ास रुझान है. उदहारण के तौर पर पुस्तक Silence in the Snowy Fields (जो ब्लाय ने लिखी ) मुझे अपनी-सी लगती है. उनकी कविताएँ पूरी तरह अमरीकी हैं किन्तु प्रथम भेंट में ही मैंने उनमें कुछ ऐसा देखा जो तादात्म्य स्थापित कर रहा था. अतः ये एक  प्रेरणादायी अनुभव है कि आप उन लोगों द्वारा अनूदित हो रहे हैं जो आपकी तरह ही सोचते हैं और उसी तरह से काम कर रहे हैं, सामान्य रूप से ऐसा अनुभव अन्यों का अनुवादकों के साथ हो, जरुरी नहीं.

मैं भाग्यशाली हूँ. किस्मत की बात है कि जिन कवियों  ने मेरी रचनाओं का अनुवाद किया वे कुछ स्वीडिश जानते थे, स्वीडिश जैसी छोटी भाषा के लिए ये आम बात नहीं है. अन्यथा, जैसा कि अधिकांशतः होता है - आप उन भाषाविदों के हाथ में होते हैं जिनकी कविता में रूचि या लगाव लगभग नगण्य होता है.

नेविल : जैसा की कल रात आपने बताया कि आप इतने अधिक अनूदित हुए हैं कि इसमें आपका स्वभावगत स्वीडिश होना लुप्त हो गया है, आपकी स्वीडिश अब पहले वाली स्वीडिश नहीं रही. क्या ये सही है ?

ट्रांसट्रोमर : मेरे लिए ये जानना कठिन है, क्योंकि ऐसा आप जागरूक होकर तो नहीं ही कर रहे होते . मेरे ख्याल से एक बहुत एकांत प्रिय  लेखक के मन में भी उसका अपना विशिष्ट पाठक जरुर रहता है. अप्रत्यक्ष रूप से ये पाठक आपके अवचेतन में बसता है, जिसकी आपको प्रत्यक्षतः भनक तक नहीं होती, और इसमें आपके ख़ास मित्र एवं वे लोग शामिल होते हैं जो आपको अच्छी तरह समझते हैं. पर मेरा मानना है कि ये एक ख़ास शानदार अनुभव है जबकि आप नाना संस्कृतियों से जुड़ रहे हैं क्योंकि आप बाहर पढ़े जा रहे हैं. ऐसे में ये लोग भी आपकी ऑडीएन्स बन जाते हैं एवं आपको प्रभावित करते हैं. ये दुखद है कि हमारे बहुत अच्छे स्वीडिश कवि अनूदित नहीं हुए हैं. उनकी रचनाएँ अपनी भाषा में कुछ इस अंतरंगता के साथ ढली हैं कि उनका स्वीडिश भाषा से बाहर जाकर अनुवाद असंभव है, जबकि अन्यों का अनुवाद हो रहा है. ये बात सभी भाषाओँ पर लागू होती है.


नेविल : मैं एक बार फिर श्रोताओं से सम्बंधित इस प्रश्न पर लौटना चाहूंगी. अपने देश में कविता के श्रोताओं के बारे में आप क्या सोचते हैं ? जैसा मैं देख रही  हूँ, यहाँ वातावरण बहुत संकुचित है; अपने तक सीमित, घुटन भरा और आत्म-केन्द्रित, संकोच भरा. एक कवि हमेशा दूसरे कवियों तथा कविता के अध्येता के बारे में लिखता है. स्वीडन में ये कितना सच है; यही जानने की उत्सुकता है.

ट्रांसट्रोमर: अच्छा, कविता के पठन आदि को लेकर जो मौलिक अंतर दिखाई देता है, वह है : यहाँ इसका पठन विश्वविद्यालयों का कारोबार यानी उद्यम है जबकि स्वीडन में ये काम पुस्तकालय कर रहे हैं. वे ही आपके लिए पठन सामग्री जुटाएंगे. अगर आप इंडियानापोलिस जैसे स्थानों पर आयेंगे तो पढ़ने के लिए संभवतः आपको पुस्तकालय जाना पड़े, जहां आपको हर युग और पृष्ठभूमि के लोग मिलेंगे.

नेविल : लिहाज़ा यहाँ के पाठक अधिक खुले और मिश्रित किस्म के हैं ?

ट्रांसट्रोमर : हाँ. यहाँ की युवा पीढ़ी एक-दूसरे को प्रोत्साहित करती है. वे स्वयं लिखते हैं. कदाचित एक साथ पढ़ने जाते हैं. लेकिन हेप्साला (Uppsala ) जैसे स्थानों पर लोग अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं, इसलिए स्वाभाव से वे एकान्तप्रिय हैं और कविता के पाठक हैं, हाँ सभी ऐसे होंगे ऐसा नहीं है.

नेविल : पर सभी शिक्षक और विद्यार्थी तो नहीं होंगे ?

ट्रांसट्रोमर:  इनमें से कुछ हैं. हाँ, विश्वविद्यालयों में भी पठन होता है किन्तु शैक्षणिक स्तर उतना व्यवस्थित नहीं है , यहाँ ये काम विद्यार्थियों के साहित्यिक  क्लब्स करते हैं. और क्या अलग है ? मैं ये कहूँगा कि स्वीडन के लोग भावनाओं को दर्शाने में अनिच्छुक रहते हैं. वे पारंपरिक रूप से चुप रहना पसंद करते हैं. उनके चेहरों से  हाव-भाव व्यक्त नहीं होते. बैठकर वे न तो आह भरते हैं, न जोर से हँसते या चिल्लाते हैं. उनका मानना है कि भावों को व्यक्त न करना एक अच्छा आचरण है, किन्तु कभी-कभी इससे गहन निराशा उपजती है. आपको पता नहीं चलता कि लोग आपसे ऊब रहे हैं या आपको लेकर उत्साहित हैं. जबकि  यहाँ प्रतिक्रिया अधिक मुखर रहती है. यू.एस. में ये प्रान्तों के अनुसार है. जैसे Midwest कदाचित कम इक्स्प्रेसिव है. कम अर्थवत.

होर्वाथ : जहाँ तक मैं जानती हूँ, आपकी पहली किताब २२ वर्ष की उम्र में प्रकाशित हुई. आपको लगता है कि इस उम्र में आप जीवन के विकास की सभी अवस्थाएँ समझने में सक्षम रहे होंगे.

ट्रांसट्रोमर : (हँसते हुए ) शायद हाँ. पर इसका आकलन मुश्किल है. जब भी कोई किताब प्रकाशित होती है उस पर आलोचक अकसर कहते हैं कि ये हमेशा जैसा ही स्टफ है या फिर ये कहते हैं कि धीमे-धीमे मैंने विकास किया. वे इसमें सातत्य यानी कंटीन्यूअम देखते हैं. वे पाते हैं कि जो मेरी पहली पुस्तक में था वही लौटकर नए में भी दिखाई देता है. लेकिन मुझे तब और अब में ख़ासा अंतर दीखता है.

होर्वाथ : आपकी पुस्तक Selected Poems ने मुझे ये पूछने के लिए प्रेरित किया. समय के साथ आपकी कविताएँ अधिक पेचीदा हुई हैं, ऐसा मेरा मानना है .

ट्रांसट्रोमर : हो सकता है ये सच हो. लेकिन जहां तक भाषागत पेचीदगी का सवाल है, मैं आरम्भिक दिनों में ज्यादा जटिल था. ये अनुवाद में नहीं आया जबकि मेरी शुरूआती कविताएँ आज के मुकाबले कहीं अधिक पारंपरिक मीटर्स से लदी हुई थीं. मैं सोचता हूँ कि शुरू की इन कविताओं का अनुवाद ज्यादा मुश्किल है. अंग्रेजी में आप जो पाते हैं वह इन कविताओं का आसान भाषांतर है. लेकिन बाद की कविताएँ अनुवाद के लिए आसान हैं , कम से कम भाषा की दृष्टि से. एक और अंतर ....जिस पर बात करने से नफ़रत होती है : वह है रीति और विषय वस्तु, (हंसकर ) चलिए, ये भी कर लेते हैं. बाद की कविताओं में विषय वस्तु जटिल हो गई है क्योंकि उनमें अनुभव अधिक हैं. मैं अब सत्तावन का हूँ. बाईस और सत्तावन में बहुत बड़ा अंतर है. बाद की रचनाओं में पूरा का पूरा जीवन, समाज और बहुतेरी चीज़ें नितांत अलग हैं. पहली किताब के समय मैं एकदम जवान था और तब बचपन व प्रकृति के साथ मेरा गहन सम्बन्ध था. लेकिन ये एक सीमित बाह्य संसार था. पर अब मैं इन सबसे गुज़र चुका हूँ.

होर्वाथ : एक बात जो मुझे आपके काम में सर्वाधिक आकर्षित करती है, वह है : संसार को लेकर आपकी जागरूकता यानी आपकी ग्लोबल अवेयरनेस. वहाँ मुझे संसार के दुःख का भाव भी मिलता है . "Sketch in October " में मशरूम का उँगली के रूप में आया बिम्ब बहुत मारक है; जिसमें मशरूम उँगलियाँ बनकर मदद के लिए आगे बढ़ जाते हैं, उस एक के लिए जो लम्बे समय तक अपने अँधेरे में सिसकता रहा ."मुझे लगा जैसे अमन हमारी आज की सबसे बड़ी जरुरत है.  आपकी कविताएँ राजनीति से प्रेरित नहीं हैं, वे मानवीय हैं. इस पर आप क्या कहेंगे ?

ट्रांसट्रोमर: (हँसते हुए ) तुम कुछ अच्छा सुना रहे हो, मैं बीच में बाधा नहीं डालना चाहता . हाँ, मैं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बड़ा हुआ, जो एक बहुत बड़ा अनुभव था. यद्यपि स्वीडन तटस्थ राष्ट्र था, लेकिन वह चारों ओर से जर्मनी के आधिपत्य से घिरा हुआ था - नोर्वे जीता जा चुका था, डेनमार्क पर भी उसने कब्ज़ा कर लिया था. स्वीडन स्वतंत्र तो था लेकिन एकदम अलग-थलग था. यहाँ के लोग आपस में बँट गए थे - कुछ मित्र राष्ट्रों की तरफ थे, तो कुछ जर्मन्स की तरफ. ये बहुत बड़ा तनाव का कारण था जिसे मैंने एक बालक के रूप में महसूस किया. मेरे माता-पिता के बीच तलाक हो चुका था और मैं अपनी माँ के साथ रहता था. कुछ बहुत करीबी रिश्तेदार भी थे. वे सब हिटलर के खिलाफ थे और मैं अलाइज़ का एक लड़ाकू समर्थक था. मैं एक छोटा लड़का था जो एक प्रोफेसर की तरह बातचीत करता थाअमूमन बच्चे ऐसा नहीं करते. मैं लोगों को हर समय उपदेश देता. इस तरह मैं समाचार पत्रों का अनुगमन करते हुए बड़ी उग्रता से युद्ध में हिस्सा ले रहा था.

मेरा एक सपना था : खोजी बनने का. हमारे हीरो लिविंग्स्टन और स्टेनली जैसे लोग थे. अपनी कल्पना में मैं हमेशा अफ्रीका व विश्व के अन्य भागों की यात्रा पर होता. जबकि असल बात ये थी कि मैं स्टॉकहोम में था और गर्मियों में हम अर्किपेलेगो के टापुओं पर चले जाते थे, जो मेरा स्वर्ग था. हाँ, युद्ध के उपरांत मैं विदेश जाना चाहता था और संसार देखने का मेरा मन था  मेरी माँ अपने जीवनकाल में कभी विदेश नहीं गयीं, पर मैं जाना चाहता था. १९५१ में मैं अपने एक स्कूली मित्र के साथ आइसलैंड गया. ये एक तगड़ा अनुभव था . जब मैं लौटा तब न केवल गरीब था बल्कि मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी. १९५४ में मेरी प्रथम किताब प्रकाशन में आई और मुझे उस पर पुरस्कार मिला. पुरस्कार में मिली धनराशि को मैंने ओरियेंट देशों (पूर्वी गोलार्द्ध )- टर्की, नियर इस्ट को घूमने में लगा दिया जो उन दिनों पर्यटक स्थल तो कतई न थे, खासकर टर्की. ये एक साहसिक अभियान था. आजकल लोग अपनी पीठ पर सैचल लेकर घूमने निकल जाते हैं, जो मैंने उन दिनों किया जिसका तब प्रचलन नहीं था.

इस संसार को जानना एक विशिष्ट अनुभव था . उस समय लिखी हुई कुछ कविताएँ मेरी दूसरी प्रकाशित पुस्तक में हैं . उनमें से एक है "सीएस्ट" और एक अन्य " इज़मिर एट थ्री ओ क्लॉक " है .

१९५१ में मैं टर्की और ग्रीस में था, ५५ में इटली और युगोस्लाविया तथा ५६ में मोरक्को, स्पेन और पुर्तगाल में था .और तब से ही मैं लगातार यात्रा कर रहा था. लेकिन आजकल मैं तभी बाहर जाता हूँ या तो जब आमंत्रित किया जाऊं या फिर कोई काम आ पड़े . मेरी रुचि राजनीति में है किन्तु मानवीय रीत से, सैद्धांतिक रूप से नहीं.

नेविल : आपकी कविताओं में आपके घुमक्कड़ होने के भाव नहीं मिलते. आपकी जड़ें यहीं स्वीडन में है, यहाँ के मौसम से जुड़ी. क्या आप इससे सहमत हैं ?

ट्रांसट्रोमर : मैं सोचता हूँ कि मेरी जड़ें यहाँ के प्राकृतिक दृश्यों और अनुभवों में गहरे तक पैठी हैं .... आपने कहा मौसम . ये बहुत महत्त्वपूर्ण है हमारे लिए; विशेषकर उनके लिए जिन्हें कविताई आती है बल्कि कहूँगा सभी स्वीडनवासियों के लिए. यहाँ की विचित्र रोशनी... हम सुदूर उत्तर में हैं लेकिन गल्फ स्ट्रीम के कारण यहाँ की जलवायु खुशनुमा है ...और उत्तरी ध्रुवीय लाइट्स ..वे  संसार में केवल यहीं दृश्यमान हैं. यहाँ गर्मियों में खूब रोशनी होती है और सर्दियों में खूब अँधेरा.

नेविल : हाँ, लम्बी और अँधेरी सर्दियाँ. आपकी गर्मियों पर कुछ कविताएँ एकदम अनूठी हैं . ग्रीष्म का अहसास ही गहरा सुकून देता है. आपने पहले ही इस बात का उल्लेख किया है कि जब आप युवा थे तब आपका स्वीडन की प्रकृति और उसके बाह्य स्वरूपों से गहरा रिश्ता था . आपकी कविताओं में जो बात बहुत प्रभावित करती है वह है : कि ये कविताएँ अंदरूनी जीवन के ढांचे पर और एक आत्म पर खड़ी हैं तथापि इनका बाह्य खूब सजा-धजा है और बहुत कम इंटीरियर इनमें दिखाई देता है, यानी भीतरी सजावट बहुत कम है : यहाँ सादगी है . आपकी कविता "वरमीर" का ज़िक्र करुँगी , जहां आप वास्तव में भीतर तक गए हैं, एक स्टूडियो में, एक गुफा में ..  मेरे ख्याल से ऐसा "एलीजी "में भी हुआ है. आप जैसे ही कमरे में प्रविष्ट होते हैं आपका ध्यान तुरंत कमरे के बाहर चला जाता है; आप  खिड़की देखते हैं, बाहर की गली देखते हैं या उस पर चलता ट्रैफिक .. क्या आप इस पर बात करेंगे ? ये मुझे हमेशा आकर्षित करता है कि आपकी रुचि अभ्यंतर से बाह्य को जाती है.

ट्रांसट्रोमर : शायद ये ही तरीका मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है - एक ही स्थान पर एक ही समय में एक साथ होना ...या फिर ये अहसास होना कि आप जिस जगह हैं वह देखने में बहुत बंद है पर वास्तव में वहाँ सब कुछ खूब खुला-खुला है. यद्यपि ये एकदम अस्पष्ट सा है फिर भी ये ही मुझसे कविता लिखवाता है .

नेविल : अच्छा, मैं ये जानने के लिए उत्सुक हूँ कि ऐसे कौनसे हालात थे जो आपको कठिनाइयों के रहते भी पलायन, सोलिप्सिज्म (मस्तिष्क की वह दशा जो बाह्य विचारों को मिथ्या ठहराती है)  और वीतराग से लड़ने योग्य बनाते रहे ?

ट्रांसट्रोमर: (बहुत देर तक रुककर) मेरी माँ बहुत नेक थीं. (ज़ोर से हँसते हैं )

नेविल : मुझे इसी उत्तर की प्रतीक्षा थी .

ट्रांसट्रोमर: हाँ, वह मेरे बहुत करीब थीं. वे प्राथमिक शाला की टीचर थीं. मेरे नाना-नानी कमाल के थे - जहाज़ के पाइलेट और उनकी पत्नी. वे बहुत बूढ़े थे पर मेरे बहुत नज़दीक. हाँ, निकटतम रिश्तेदारों से बुनियादी तौर पर खूब सहारा मिल रहा था. लेकिन उन्हीं सबके बीच मैं बहुत अकेला था. मैं अकेली संतान था इसलिए सभी की भरसक कोशिश होती कि अपनी रुचियों के अनुरूप मैं खूब आगे बढूँ . जबकि मुझे लगता है कि अधिकतर छोटे बच्चों को हम उनकी अभिरुचि के लिए हतोत्साहित करते हैं. माँ-बाप को लगता है कि जैसे दूसरे बच्चे सामान्य तौर से पल रहे हैं, उसी तरह उनके बच्चों का भी विकास हो.. वे सामान्य रूप से बढ़ें और खेलें.

जब मैं छोटा था तब उन अभद्र बढ़ते बच्चों से अकसर आहत होता था जो मुझे बड़ा मानने को तैयार नहीं होते थे. वे मुझे बच्चा जानकार बर्ताव करते और मैं अपमानित होता. लेकिन वे लोग जो मेरे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण थे अकसर मेरे वजूद को सहन करते. स्कूल बहुत कठिन था मेरे लिए . कुछ टीचर्स को मैं पसंद करता और कुछ को बहुत नापसंद. सामान्य तौर से देखा जाए तो मेरा बचपन बहुत आसान नहीं था, लेकिन उतना बुरा भी नहीं था. जब ग्यारह-बारह साल का हुआ तो मेरी रुचि तरह-तरह के कीड़े एकत्रित करने की हो गई. जीवविज्ञान मेरे लिए महत्त्वपूर्ण था. मैं खासतौर से बीटल्स इकट्ठे करता . बहुत बड़ा संग्रह था मेरा. मैं अधिकतर तितली पकड़ने वाले जाल को लिए घूमता .

नेविल : आपकी कविताओं में तितलियाँ तो ढेर सी मिलेंगी पर गुबरैले और अन्य कीट कम ही हैं वहाँ .

होर्वाथ : " द गोल्डन वास्प " ?

ट्रांसट्रोमर : सोच रहा हूँ , इसमें एक बीटल होना चाहिए - जरुर है यहाँ . " On the humming electricity-post a beetle is sitting in the sun. Beneath the shining wing-covers, its wings are folded up ingeniously as a parachute packed by an expert.” (“The Clearing”) वाह! यहाँ एक बीटल है.

आप जानते हैं कि अगर आप अपने संग्रह के लिए इन कीटों के पीछे दौड़ते रहें और प्रकृति की हर चीज़ को गौर से देखें तो आपकी मौजूदगी खूब खुशनुमा हो जाती है. ये एक स्वीडिश परम्परा है जो हमें Karl Linnaeus (स्वीडिश वनस्पति शास्त्री ) से मिली. प्रकृति केवल आपकी चित्तवृति के लिए नहीं है, ये वह स्थान है जहां आप शोध का काम करते हैं. प्रकृति का सौन्दर्य - सीपियाँ , कीट -पतिंगे , चिड़ियाँ इन सबका आना मेरे लड़कपन में ही हो गया था. मैं इन्हें सौन्दर्य दृष्टि से नहीं देखता था बल्कि एक वैज्ञानिक की निगाह से देखता था (हंसकर). जो भी हो ये मेरे भीतर घर कर गईं  .

होवार्थ   : आपकी कुछ और रुचियाँ ?

ट्रांसट्रोमर : हाँ, मुझे इतिहास पसंद है. मैं इतिहास खूब पढ़ता हूँ. जब मैं तेरह -चौदह वर्ष का था तब संगीत मेरे लिए बहुत महत्त्व रखता था . संगीत के लिए ये उन्माद आज भी बरकरार है .

होवार्थ: आप खुद भी बजाते हैं ?
ट्रांसट्रोमर : हाँ, मैं यही देख रहा था कि आपके पास पिआनो है ...

होर्वाथ: मैं आश्चर्य कर रही थी कि आप अपनी कविताओं में चित्ताग्रही बिम्ब कैसे लाते हैं ?

होवार्थ : बिम्ब स्वतः आ जाते हैं. पर मैं उन पर काम करता हूँ ताकि मेरे पाठकों को वे अधिक स्पष्ट हो सकें . ये सपने की तरह होता है जिसमें दृश्य अपने आप आते रहते हैं .

होर्वाथ : क्या आप इन सपनों के साथ बने रहने की कोशिश करते हैं ?
ट्रांसट्रोमर : हाँ, किसी किसी समय. मैं बहुत सपने देखता हूँ, पर दुर्भाग्य से उन्हें तुरंत भूल जाता हूँ .

होर्वाथ : तो उन्हें लिखने के लिए आप रात में जागते नहीं ?

ट्रांसट्रोमर : नहीं, ये मेरी फितरत में नहीं है - मैं सोना चाहता हूँ (हंसकर ). लेकिन सपने इतने प्रभावशाली होते हैं कि वे दीखते रहते हैं और वे कविता हो जाते हैं.

होर्वाथ :जब कोई रूपक संवेदनाओं के गुच्छ से बाहर आता है तब आप उस पर काम करते हैं ताकि वह औरों के लिए अधिक साफ़ हो सके ....?

ट्रांसट्रोमर :  कभी-कभी . कभी- कभी कोई बिम्ब एक टुकड़े की तरह आता है जिसके केंद्र में एक स्पष्ट शब्द रहता है जो खास उसीके लिए बना होता है . पर कभी -कभी कोई बिम्ब शब्द विहीन होता है , ऐसे में उसके लिए शब्दों पर काम करना पड़ता है .

होर्वाथ : यानी , आपका अधिकांश काम अवचेतन की प्रक्रिया है न कि मात्र ये कहना , "मैं फलां -फलां पर कविता लिखने बैठ रहा हूँ ."

ट्रांसट्रोमर : हाँ, ये सब भीतर से होता है, आपके अवचेतन से. ये ही सभी चीज़ों का स्रोत है. मेरे अवचेतन ने मुझे बहुत से साधन दिए हैं जिनकी मुझे परवाह करनी है लेकिन मैं कभी भी खुद को किसी विषय पर लिखने का आदेश नहीं देता . मैंने कोशिश करके देखा है. ये उन दिनों की बात है जब मैं एक जेल में जवान लोगों के लिए मनोविशेषज्ञ के रूप में काम कर रहा था, मैं अपने इस अनुभव को कलमबद्ध करना चाहता था, मैंने एक महत्त्वाकांक्षी कविता लिखनी चाही, पर मैं संतुष्ट नहीं था क्योंकि ये एक महत्त्वाकांक्षा से उपजी थी . अंत में मैं केवल इतना कर सकता था कि बेचारे लड़कों की खातिर लिखी कुछ निश्चित पंक्तियों को जो कृत्रिम रीत से उस महत्वाकांक्षी कविता की उपज थीं, मैं  अपना लेता . ये कविता "On The Outskirts of Work.” थी. " “In the middle of work/we start longing fiercely for wide greenery/for the Wilderness itself, penetrated only/by the thin civilization of telephone wires.” उस लम्बी , गंभीर , महत्वाकांक्षी कविता से केवल ये पंक्तियाँ ही बची रहीं. इसलिए मैं तब तक लिखने का निर्णय नहीं ले पाता जब तक वह भीतर से न आये .

होर्वाथ : कविता के लिए क्या आपको किसी ख़ास स्थान, मनः स्थिति की जरुरत रहती है ?

ट्रांसट्रोमर: ये मेरे लिए कभी आसान नहीं रहा पर जब भी ये संभव होता है, उन पलों में एक किस्म की आनंददायी वृति होनी चाहिए और साथ ही गंभीरता भी. आनंद और महत्वाकांक्षा के बीच एक संतुलन होना चाहिए - जो बहुत मुश्किल होता है. और साथ में ढेर सारा समय रहना चाहिए, जो मेरे पास अमूमन नहीं होता मेरा मतलब है जैसे ये ट्रिप .. मुझे करना ये चाहिए था कि सारा दिन होटल के कमरे में बैठता और कहता, दिनभर  कुछ नहीं करूँगा सिवाय यहाँ बैठने के . लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता . लोग बुलावा देते हैं , आमंत्रित करते हैं .. आदि-आदि . और हवाई जहाज़ में मैं या तो बोर होता हूँ या सहमा रहता हूँ ऐसे में चितवृत्ति लिखने की नहीं रहती . रेलगाड़ियाँ कहीं बेहतर हैं , लम्बी रेलें .....

नेविल : और कार यात्रा. कार में आपकी कई शानदार कविताएँ हैं , Downpour in the Interior,” and “Tracks,” .

ट्रांसट्रोमर: हाँ, पर कारों को लेकर मेरे मन में दोहरे भाव रहते हैं. एक तरफ मैं कारों के खिलाफ हूँ क्योंकि वे आस-पास की चीज़ों को दूषित करती हैं पर साथ ही उनकी यात्रा प्रकृति की यात्रा है.

नेविल : मैं आपसे गद्य कविताओं के बारे में पूछना चाह रही थी. मैं खुद भी ये लिखती हूँ पर कई लोगों का मानना है कि ये बड़ी लिजलिजी होती हैं  और हमें उनकी परवाह नहीं करनी चाहिए. आप क्या कहेंगे . इन्होंने आपको क्या दिया ?

ट्रांसट्रोमर: जी , ये यूरोप की पुरानी परंपरा है, खासकर फ़्रांस की . मैंने १९४० के आखिरी में इन्हें लिखना शुरू किया था.  Nineteen Modern French Poets उन दिनों का सबसे महत्त्वपूर्ण संकलन था . Rene Char, Eliade, Reverdy आदि ऐसी कविताएँ लिख रहे थे. इसमें मेरे लिए कुछ नया नहीं था, ये बहुत सहज था मेरे लिए . स्कूल में मेरा एक बहुत अच्छा मित्र था, प्रतिभा का धनी. ३० वर्ष की उम्र में उसकी एक पुस्तक छपी. ये एक गद्य कविता की किताब थी, बहुत कुछ मैक्स जैकोब की तरह , अति यथार्थवादी . इसलिए ये मेरी परिचित शैली थी. पर इस शैली में मेरी पुस्तक देर से आई . मेरी माँ की मृत्यु हो चुकी थी और मैं बुककेस के सामने खड़े होकर उनके घर लौटने के बारे में लिख रहा था . (The Bookcase)

नेविल : गद्य और पद्य की अभिव्यक्ति में मूलभूत अंतर क्या है ?

ट्रांसट्रोमर: मैं आरम्भ से ही दोनों का अंतर जानने लगा था. दो सप्ताह पूर्व मेरी कविता की पुस्तक प्रकाशित हुई है . इसमें १७ कविताएँ हैं , इनमें से दो गद्य कविताएँ हैं . शायद उनमें से एक यहाँ भी है Selected Poems में .. ‘The Nightingale in Badelunda.” दूसरी मैंने कल ही पढ़ी थी.. “Madrigal.” ये दोनों बहुत छोटी कविताएँ हैं , पर गद्य कविताओं में सहज बहाव होता है .

ब्लाय के साथ ये मेरी एक और समानता है. उनकी गद्य कविताओं पर एक किताब छपी, उन्हीं दिनों मैं भी लिख रहा था. हम दोनों की रुचि फ्रांसिस पोंग में थी. उनकी गद्य कविताओं में तीव्रता है, चीज़ों को बहुत निकट से देखने की सूक्ष्म दृष्टि है और साथ में भी प्रकृति है . ये बहुत प्रेरणादायी हैं, पर आप पोंग की तरह ही करें ऐसी बाध्यता नहीं. आपका और मेरा अनुभव एक सा ही होगा - लेखन में एक किस्म की स्वतंत्रता रहनी चाहिए ताकि आप विस्तार से चीज़ें देख सकें और विषयांतर की गुंजाइश रहे .

होर्वाथ : तो आपको गद्य कविताओं पर फिर से काम नहीं करना पड़ता ?

ट्रांसट्रोमर: कभी -कभी करता हूँ. एक गद्य कविता है जिस पर मैं सालों -साल काम करता रहा. ये गद्य ही है - “Below Freezing.”(पढ़ते हुए ):

We are at a party that doesn’t love us. Finally, the
party lets the mask fall and shows what it is: a shunting
station for freight cars. In the fog cold giants stand on
the tracks. A scribble of chalk on the car doors.
One can’t say it out loud, but there is a lot of repressed
violence here….

और चीज़ों के रहते इसमें स्वीडन का निराशावादी हुलिया भी  है ..

नेविल : क्या ये वही कविता है जिसमें स्कूल बस की प्रतीक्षा में बच्चों की भीड़ जमा है ? मुझे वह बहुत पसंद है .

ट्रांसट्रोमर: ये वह कविता थी जिसे चीन के कवि बी दो ने खूब पसंद किया था .

नेविल : हाँ, चीन का हुलिया ऐसा ही है जैसा कविता में दिखाया गया है, नीरस, न्यूनतम में भरोसा रखने वाला और उपयोगितावादी. "Standing Up”मेरी पसंदीदा गद्य कविता है, खुशनुमा और हलकी -फुलकी.

ट्रांसट्रोमर: ये मेरे लिए प्रारंभिक कविता है, एक दस्तावेज़ है ये .. (लगभग बुदबुदाते हुए ) तब की जब हमारे बच्चे बहुत छोटे थे और गर्मियों में जब हमारे पास चूजे हुआ करते थे . कभी-कभी जी करता है कि इस पर फिर से लौटूं .

नेविल : क्या ये आपके बाल्टिक के पुश्तैनी मकान का विवरण है ?

ट्रांसट्रोमर: जी, (कविता का अंश पढ़ते हुए ) “I stopped, holding the hen in my hands. Strange, she didn’t really feel living: rigid, dry, an old white plume-ridden lady’s hat that shrieked out the truths of 1912.”तो ये सचमुच की हैट थी जो हमारे घर में हुआ करती थी . (ठहाका लगते हुए )

नेविल : "The Blue house "(पुश्तैनी घर ) के लिए आपके बच्चे भी वही भावना रखते हैं , जो आपकी हैं ? या अलग पीढ़ी होने से वे कुछ अलग सोचते हैं ?

ट्रांसट्रोमर: ये लगभग एक सी है. जैसे -जैसे वे बड़े होंगे वे इसको अधिक मान देंगे, इसकी ज्यादा वैल्यू करेंगे. बड़ा अभी २८ का है और सबसे छोटा २४ का . वे इन टापुओं के दीवाने हैं . इसलिए मैं खुद को बहुत सुरक्षित महसूस करता हूँ कि वे इसे बेचेंगे तो नहीं   .

होर्वाथ : एक विषय अछूता रह गया है. आपकी कविताओं पर धर्म का प्रभाव . मैंने महसूस किया कि आपकी कविताओं में पवित्र आवेग है, पर ये किसी धर्मशास्त्र से नहीं जुड़ा है.  बचपन में धर्म को लेकर क्या आपकी कोई ख़ास ट्रेनिंग हुई है .. विशेष प्रशिक्षण ?

ट्रांसट्रोमर: हाँ, एक बार फिर मेरी माँ.  अगर मैं कहता हूँ कि वह एक धर्मनिष्ठ महिला थीं तो ये एक तरह से गलत असोसिएशन होगा , एक बहुत पुरातनपंथी के हुलिए जैसा जो वे नहीं थीं. उनका ईश्वर से वैसा ही नाता था जैसा एक बालक का होता है. वे धार्मिक थीं किन्तु सकारात्मक रूप से. जब मैं बच्चा था तब बहुत शक्की था. मैं नैसर्गिक विज्ञान में भरोसा रखता था, १९वीं सदी में जब सब कुछ मशीनी हो चुका था. मुझे ठीक से याद नहीं, मैं शायद १५ का था. जो कुछ भी मेरी जेनरेशन का था उसे मैं अस्वीकार कर देता था . मेरा उन्हें करने में भरोसा नहीं था और माँ ने मेरे इस संकोच को स्वीकार किया. लेकिन कुछ समय उपरान्त मैं धर्म से बहुत जुड़ गया . इस तरह जब मुझे उसे स्वीकार करना चाहिए था तब मैं उसे नकार रहा था और कुछ सालों बाद मैं उसीमें विश्वास रखने लगा.

पर ऐसा सब किसी के भी जीवन में होता है. चर्च से मेरा नाता बहुत कम ही था . मैं इमारत से प्यार करता था, अब आपको मेरी भावनाओं का अनुमान हो गया होगा . मैं अकसर वहाँ जाया करता था, लेकिन समाजशास्त्रीय रूप से मैं चर्च का सदस्य नहीं था .. कहने के लिए ये ही है मेरे पास. यदि किसी धार्मिक समुदाय में मेरा भरोसा था तो वह था Quakers का समुदाय. स्वीडन में ये विशिष्ट समुदाय था , इसमें जाने का अर्थ था पूरी तरह संत हो जाना . मैं इस पर काम करने की कोशिश कर रहा हूँ. मेरा अभिप्राय है कि मृत्यु से पहले कोई न कोई समाधान मिल ही जाएगा.

नेविल : आपकी कविता The Golden Wasp "संस्थागत धर्म पर एक बहुत ताकतवर बयान है. इस विषय में आपके क्या प्रयास हैं ? क्या आप बहुत कुछ पढ़ते रहते हैं ? बाइबल ?

ट्रांसट्रोमर: वास्तव में मैं उस समुदाय का हिस्सा हूँ जो बाइबल का नया अनुवाद तैयार कर रहा है. मेरा जॉब  ध्वनियों पर काम करना है ... अगर मेरे लिए धर्म इतना महत्त्वपूर्ण नहीं होता तो मैं इन रुढ़िवादियों को लेकर बहुत हताश हो चुका होता. मेरा मानना है कि ये प्रेम की विकृति है . मैंने एक टी .वी. फिल्म देखी थी जिम जोन्स के बनाये पीपल्स टेम्पल समुदाय पर . जब मैं इसे लिख रहा था तब ये फिल्म  दिमाग में थी. ‘The divine brushes against a man and lights a flame/but then draws back./Why?” (" The Golden Wasp”, Ironwood, Vol. 16) इस ग्रुप ने बहुत अच्छा काम करना शुरू किया था. ये सैन फ्रेंसिस्को का सकारात्मक सोच रखने वाला समुदाय था . लेकिन जल्द ही ये एक तरह का आतंकी समुदाय बन गया जिसमें सभी को अपने नेता की आज्ञाओं का पालन करना होता है. और मैंने १९८६ में जब मैं अमेरिका में था , ओरल रोबर्ट्स के बारे में भी सुना था जो इसी समुदाय  का हिस्सा था  कुछ ऐसे ही उपदेशक स्वीडन में भी सुनने में आने लगे थे.

होर्वाथ : जिस तरह से वे लोगों पर उनका प्रभाव है, वह सच में भयावह है.

ट्रांसट्रोमर: और वह धन जो इसमें शामिल है .

होर्वाथ : क्या धर्म के अर्थ को (मान्यताओं को ) मनोविज्ञान ने बदला है ?

ट्रांसट्रोमर:  नहीं, ऐसा नहीं है. ये एक जटिल प्रश्न है. मनोविज्ञान कभी-कभी धर्म के करीब होता है पर ये मनोविज्ञानियों पर निर्भर करता है कि वे चीज़ों को किस परिप्रेक्ष्य में देख रहे हैं. बीसवीं सदी के मनोवैज्ञानिक धर्म को संदेह से देखते हैं  और अपनी तरह से इसकी व्याख्या करते हैं. पर सब ऐसा नहीं कर रहे . जुंग को मानने वालों का धर्म को लेकर दृष्टिकोण अधिक खुला हुआ है.

होर्वाथ : क्या आप भी इसी स्कूल का हिस्सा हैं ?

ट्रांसट्रोमर: नहीं, मैं किसी स्कूल का हिस्सा नहीं हूँ. मैं बहुत उदार हूँ और समकालिक भी. हाँ, कुछ प्रभाव हैं. जुन्गियन विचारधारा की हवा है ..

होर्वाथ : अहम्  का आपकी कविताओं में क्या स्थान है.

ट्रांसट्रोमर:  ये मेरी पहली किताब के लिए एकदम ठीक है.  इस "मैं " के प्रयोग से मुझे डर लगता था. पर दूसरी पुस्तक में "मैं" थोड़ा बहुत आया और ये बढ़ा. पहले की और बाद की कविताओं का ये मूलभूत अंतर है. पर इसका ये अर्थ नहीं कि पहले की कविताओं में कम अहम् है, ये केवल मेरा "मैं" के लिए एक संकोच था. अपने मिडिल पीरियड में मैंने "He " का प्रयोग अधिक किया है (हंसकर ). ‘”When he came down to the street after the rendezvous, and the air was swirling with snow.” (“C Major”) ये He "मैं "ही है . लेकिन अब मैं संकोच नहीं करता . तब मैं सोचता था कि वैयक्तिक रूप से कविताओं में मेरा होना ठीक नहीं , लेकिन अब सोचता हूँ कि "मैं " का प्रयोग ईमानदारी है . क्योंकि आप जो कुछ भी लिख रहे हैं वह आपके अपने अनुभवों से ही बाहर आया है .

(फ्रान क्विन , जो Indianapolis Writers Center के निदेशक हैं, साक्षात्कार के ख़त्म होने पर हमारे साथ थे )

क्विन: एक और बात आपसे पूछना चाहूँगा. कल रात एपसला में आपने अपने creative writing group के बारे में बताया था, जो आपने ही बनाया था और अब आप उस पर पुनर्विचार कर रहे हैं, इस पर आप क्या कहते हैं ?

ट्रांसट्रोमर: इसे लेकर मेरे मन में दुविधा है. मुझे नहीं लगता कि कोई टीचर कविता लिखना सिखा सकता है. ये विचार ही अपने आप में विचित्र है. हाँ, पर एक अध्यापक दोस्त की तरह कविता का माहौल बना सकता है साथ ही वह एक आलोचक भी हो सकता है, पैनी निगाहों से अनुकूल वातावरण बनाता हुआ . जब मैंने लिखना शुरू किया था तब ये ही बात मेरे मन में थी. मेरे कुछ दोस्त थे जो लिख रहे थे . हम लोग एक दूसरे की भरसक सहायता करते थे. मुझे लगता है ऐसे में आपको ऐसे श्रोताओं की जरुरत रहती है जो मित्र की तरह सह्रदय रहें पर साथ ही वे आपके पाठक भी हों, केवल दोस्त नहीं. जब आप लिखना शुरू करते हो तो बहुत साड़ी बातें इसमें शामिल रहती हैं; इसमें आपकी अपनी प्रेरणा रहती है और आप कदाचित ये नहीं जान पाते कि एक पाठक का नजरिया इनके प्रति क्या रहेगा. इसलिए ये बेहद जरुरी है कि आप अपने पाठक से मिलें और सामने से उसकी प्रतिक्रिया सुनें. लिखने की सबसे बड़ी समस्या ये है कि आप अपने अन्दर को बाहर लाते हो . लेकिन समस्या ये भी है कि आप जो कुछ भी लिख रहे हो वह पाठक उसी रूप में समझ भी सके जबकि वह एक अलग नज़रिए के साथ आपके सामने है , ठंडी निगाहों (उदासीनता) से आपको देख रहा है और प्रेरणा से शून्य है. एक नए कवि के लिए ये अप्रीतिकर होता है क्योंकि वह भी आपको उतना ही अनुप्राणित मानता है जितना अनुप्राणित वह खुद है. इस लिए एक ऐसे ग्रुप में जो मित्रवत है और जिसका उद्देश्य भी वही है , आप जल्दी सीखते हैं. पर ये सब आप एक टीचर से नहीं सीख सकते क्योंकि टीचर एक ऑथोरिटी होता है, आज्ञा देता जबकि आपको उदारमना की जरुरत होती है . अपने साथियों के बीच ही आप सीखते हैं और अध्यापक का काम वातावरण बनाने का होता है और सारे सर्कस को प्रेरित करने का होता है (हंसकर).

क्विन: क्या आप अपने उन मित्रों से अभी भी संपर्क में हैं जो आपकी युवावस्था में आपके साथ काम कर रहे थे ?

ट्रांसट्रोमर: हाँ, पर ... ठीक है , उम्र के साथ कुछ बुरी चीज़ें आती हैं. कुछ लोगों ने एकदम लिखना बंद कर दिया . कुछ एक उपेक्षित लेखक की तरह छूट गए. मैं शायद अधिक प्रसिद्ध हो गया , इसने संबंधों को उलट-पुलट किया है. जब हम मानव होने के नाते मिलते हैं तो कुछ फर्क नहीं पड़ता किन्तु जैसे ही हम लेखन पर आते हैं तो लगता है कि वह सुन्दर सम्बन्ध फिर से स्थापित करना असंभव है जो हमारे बीच हुआ करता था, जब हम एक सामान थे - आशावान और उदार. इन ३५  सालों में ये हाइआर्कि बन गई है, एक अनुक्रम , जिसे फिर से नहीं बनाया जा सकता.

होर्वाथ : आपको क्या लगता है कि आपको पढ़ना और उसकी समीक्षा करना उन लोगों को  मुश्किल लगता होगा और क्या ये स्वीकार करना उनके लिए मुश्किल होता होगा जबकि आप एक ऑथोरिटी की तरह उनके काम की समीक्षा कर रहे होंगे .

ट्रांसट्रोमर: नहीं , मैं इन सबसे बाहर आ चुका हूँ . मेरी पत्नी ही मेरी सबसे अच्छी समीक्षक है . वह मुझे बेहतर जानती है, यदि कुछ गलत होता है तो वह तुरंत जान लेती है . अनुवाद के दौरान बहुत सी बातें सामने आती हैं . पर जब मुझे अपनी गलतियाँ पता चलती हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है . (ठहाका लगाकर )

क्विन: क्या छपने के बाद आपने अपनी किसी कविता में परिवर्तन किये हैं ?

ट्रांसट्रोमर:नहीं , स्वीडिश किताबों में तो नहीं . हाँ , कुछ कविताएँ हैं जो पत्रिकाओं में प्रकाशित किताबों से भिन्न मिलती हैं .

क्विन: मैं मृत्यु शैया पर लेटे यीट्स के बारे में सोच रहा था जो अपने सारे काम को फिर से लिख रहा हो .

ट्रांसट्रोमर: अरे नहीं, मुझे इससे नफरत है. पुरानी कविताएँ मील के पत्थर की तरह होती है जिसे आपने तय कर लिया है.

क्विन: Robert Bly ने हाल ही में अपने संग्रह को फिर से लिखना तय किया है . मैं सोच रहा था क्या आप भी कभी ऐसी बात दिमाग में ला सकते हैं ?
ट्रांसट्रोमर: ओह! नहीं , ये तो बड़ा भयवाह विचार है. (हंसकर )

पोवेल : और अपनी चीज़ों को जलाना ? Borges अपनी पुरानी चीज़ों को जला देता था .

ट्रांसट्रोमर: जलाना ठीक है (ठहाका लगाकर ). लेकिन एक कविता को फिर से लिखना जो २५ साल पहले आपने लिखी थी ... ये पागलपन है .



                                                                                अपर्णा मनोज : कविताएँ, अनुवाद,ब्लॉगिंग


Tan Lin Neville: Journey Cake is Neville’s first full book of poetry. She is the recipient of a Master Artist Fellowship from the Indiana Arts Commission.
The interview with Tomas Tranströmer first appeared in Painted Bridge Quarterly, a literary journal in Philadelphia, in a special double issue Translation Issue, Number 40-41 in 1990.  वही. से साभार.

15/Post a Comment/Comments

आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.

  1. बहुत अच्छा काम, अपर्णा जी का आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही अच्छा अनुवाद है ऐसा अनुवाद जिसमे अनुवाद होने का कोई भी आभास नही है अपर्णा जी का बहुत-बहुत आभार टॉमस ट्रांसटोमर से साक्षात्कार कराने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी वर्ग के पाठकों के लिए पठनीय पाठ

    जवाब देंहटाएं
  4. टॉमस ट्रांसटोमर की बातें और उनके अनुभव और भी बहुत कुछ ,काफी मॉल-मसाला है पढने के लिए ! अपर्णा जी का धन्यवाद कि उन्होंने बड़े मनोयोग से इस बातचीत का अनुवाद किया ! निश्चित रूप से 'समालोचन' को समृद्ध किया है आपने अपने योगदान से !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत उम्दा काम! सचमुच! साक्षात्कार पठनीय !अपर्णा जी , आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. "लेकिन सपने इतने प्रभावशाली होते हैं कि वे दीखते रहते हैं और वे कविता हो जाते हैं.".....

    "मैं सोचता था कि वैयक्तिक रूप से कविताओं में मेरा होना ठीक नहीं, लेकिन अब सोचता हूँ कि "मैं " का प्रयोग ईमानदारी है . क्योंकि आप जो कुछ भी लिख रहे हैं वह आपके अपने अनुभवों से ही बाहर आया है."

    एक सार्थक कार्य संपन्न करने के लिए अपर्णा जी को तथा अरुण जी को बहुत-बहुत धन्यवाद एवं बधाइयां। साक्षात्कार का अनुवाद सचमुच सुंदर एवं सफल है। Karl Linnaeus का जिक्र करके टांसटोमर ने सचमुच दिल जीत लिया। विश्व का वह महान वनस्पति-शास्त्री स्वीडेन से था और यह कवि उस वैज्ञानिकता से अपने को जोड़ता है। हममें से कितने प्रकृति-प्रेमी कवि जगदीश चन्द्र बसु या बीरबल साहनी से अपने को जोड़ेंगे!

    जवाब देंहटाएं
  7. Aparna di aap sachmuch vilakshan hain, itna sunder aur jeevant anuvad ki kathan ki maulikta aur pran nikhar jayen, aap hi kar sakti hain....sadhuvad

    जवाब देंहटाएं
  8. मेहनत और दृष्टि दोनों का सुफल है यह अनुवाद. महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए गए हैं साक्षात्कार करने वालों ने,जबकि त्रान्स्रत्रोमर ने अपने विविधवर्णी विषद अनुभवों को साझा करते हुए बेहद सटीक बातें की हैं. एक शानदार और अत्यंत प्रासंगिक साक्षात्कार उपलब्ध कराने और सहज अनुवाद के लिए अपर्णा को बधाई. अरुण देव का आभार.

    जवाब देंहटाएं
  9. ‎'मै का प्रयोग अधिक इमानदारी hai. क्योंकि आप को कुछ भी लिख रहे हैं वह आपके अपने अनुभवों से ही बाहर आया है'......
    वाकई एक अद्भुत साक्षात्कार. सुन्दर अनुवाद. और टोमास को पढ़ना तो वैसा ही है जैसे आप इतिहास, भूगोल, धर्म, संस्कृति, बेजुबान पत्थरों, को एक अपने सबसे बेमिसाल रूप में देख रहे हो. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  10. अरुनदेवजी,अपर्नाजी आपलोगों का आभार प्रगट करती हूँ जो आपने इतनी सार्थक साक्झात्कार को पढाया ..........शब्द-दर-शब्द मन में उतरे हैं....इतनी सरल अभिव्यक्ति और अनुवाद..........एसे ही हमेशा पढ़ते रहिये....धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  11. Tomas ji se yah vartalap vakaie me rochak avam gyaanvardak hai..ia vartalaaap ko yaha padhne hetoo uplabdh karwane k liy vishesh AABHAAR..:)

    जवाब देंहटाएं
  12. मंजु महिमा12 अप्रैल 2014, 3:30:00 pm

    स्वीडन कवि टॉमस ट्रांसटोमर के बारे में काफ़ी जानकारी मिली, अपर्णा द्वारा किए सुंदर और प्रभावशाली अनुवाद के ज़रिए...ढेर सारी प्रशंसा ....

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आप अपनी प्रतिक्रिया devarun72@gmail.com पर सीधे भी भेज सकते हैं.